Mahakumbh 2025: रविवार को 150 महिलाओं ने घर-परिवार की मोह-माया त्यागकर वैराग्य पथ पर कदम रखा। श्री पंच दशनामी जूना अखाड़ा ने उन्हें नागा संन्यासिनी (Naga Sanyasini) के रूप में स्वीकार किया। इस दौरान विधि-विधान से उनकी संन्यास की प्रक्रिया पूरी कराई गई। महिलाएं भोर में गंगा स्नान के बाद सफेद वस्त्र पहनकर उनके मुंडन कराए गए, और फिर उनका पिंडदान हुआ।
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फ्रांस, नेपाल और इटली से आई महिलाएं भी शामिल
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महाकुंभ (Mahakumbh) में देश-विदेश से आए लोगों पर सनातन धर्म का प्रभाव साफ दिखाई दे रहा है। इसका अद्भुत दृश्य महाकुंभ के 13 प्रमुख अखाड़ों में देखा जा सकता है। यहां मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसी क्रम में रविवार को श्री पंच दशनामी जूना अखाड़े में सौ से अधिक महिला नागा साधुओं ने नागा संस्कार की दीक्षा ली। इनमें फ्रांस, नेपाल और इटली से आई महिलाएं भी शामिल थीं।
संन्यास की प्रक्रिया में होती है कड़ी जांच
अखाड़ों में महिलाओं को संन्यास देने की प्रक्रिया अत्यंत कड़ी होती है। कोई भी महिला सीधे संन्यास नहीं ले सकती। इसके लिए उनके घर-परिवार, कार्य और चारित्र की गुप्त रूप से जांच की जाती है। यह जांच अखाड़े के पंच परमेश्वर के आदेश पर की जाती है। महिलाओं को अखाड़े के महिला आश्रम में रखा जाता है, जहां वे भजन-पूजन करती हैं। कुछ महिलाओं को उन मंदिरों में रखा जाता है, जहां महंत महिलाएं रहती हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही महिलाओं को नागा संन्यासिनी बनने की दीक्षा मिलती है।
नागा संन्यासिनी बनने के बाद रिश्तों से पूरी तरह से विरक्त
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नागा संन्यासिनी बनने वाली महिलाओं ने सुबह गंगा नदी में 108 बार डुबकी लगाई। इसके बाद पिंडदान करके उन्होंने अपने पूर्व के सभी रिश्ते और संबंध समाप्त कर दिए। इसके बाद धर्मध्वजा के नीचे विजय हवन किया गया। अंत में सभी महिलाओं को विधिवत दीक्षा दी गई, और उन्हें अब माई, अवधूतानी, संन्यासिनी या साध्वी के रूप में संबोधित किया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान महिलाओं ने मंत्रोच्चार के बीच अपनी संन्यास यात्रा की शुरुआत की।
नागा संन्यासियों की जीवनशैली
नागा संन्यासियों की जीवनशैली बहुत संयमित होती है। पुरुषों की तरह महिलाएं भी गुफाओं और कंदराओं में रहती हैं, और वह अधिकतर बिना सिले हुए सिर्फ एक वस्त्र धारण करती हैं, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। यह वस्त्र भगवा या सफेद रंग का होता है। नागा संन्यासियों का जीवन तपस्या, संयम और आत्म साधना पर केंद्रित होता है, और वे सांसारिक वासनाओं से दूर रहते हैं।
नागा संन्यास की प्रक्रिया में उपवास और साधना की महत्वपूर्ण भूमिका
नागा संन्यास लेने के बाद, महिला और पुरुषों ने 48 घंटे का उपवास रखा। इस दौरान वे केवल जल और फल का सेवन करते थे, और कुछ लोग गाय का दूध भी पीते थे। इस साधना के दौरान वे अखाड़े के आराध्य की पूजा और ध्यान में लीन रहते थे। 48 घंटे की साधना पूरी करने के बाद ही उन्हें संन्यास की दीक्षा दी गई।
संन्यास की दीक्षा के दौरान अखाड़ा परिषद के सदस्य भी मौजूद रहे
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नागा संन्यास (Naga Sanyas) की दीक्षा के दौरान श्री महंत रवींद्र पुरी और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के सदस्य उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में महंत रामरतन गिरि, महंत दिनेश गिरि, महंत राधे गिरि, महंत भूपेंद्र गिरि और अन्य प्रमुख महंतों ने संन्यास की प्रक्रिया को पूरा कराया।
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