Ayodhya: रामभक्तों के 500 सालों के लंबे इंतजार के बाद 22 जनवरी को करोड़ों रामभक्तों का सपना तो पूरा होने जा रहा है, लेकिन इन्ही रामभक्तो की भावनाओं के साथ एक नारा जुड़ा हुआ है,’राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे’…ये नारा तो काफी सालों से चला आ रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि इसके पीछे की कहानी क्या है। अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे, कि आखिर ये नारा किसने दिया और ये कब से सुर्खियों में आया।
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किसी साधू संत या नेता ने नहीं दिया ये नारा..
अक्सर क्या होता है लोगों को ये पता होता है कि सुर्खियों में कौन सा नारा चल रहा है, लेकिन लोगों को ये नहीं पता होता है कि उसके पीछे की कहानी क्या है। बता दे कि ,’राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे’…ये नारा किसी साधू संत, सिंगर या किसी नेता ने नहीं दिया है, बल्कि ये नारा 22 साल के एक लड़के ने दिया है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर वो 22 साल का लड़का कौन है, जिसका नारा पूरे रामभक्तों के बीच छाया हुआ है।
37 साल पुराना ताला खुला
दिन 1 फरवरी साल 1986 वो दिन था यूपी के फैजाबाद के जिला जज केएम पांडेय के आदेश पर बाबरी मस्जिद-जन्म स्थान पर जड़ा करीब 37 साल पुराना ताला खुल गया। वहीं अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ये फैसला किया था, लेकिन ताला खुलने से मुस्लिम समुदाय नाराज हो गया। नाराजगी जाहिर करने और बाबरी मस्जिद पर अपना हक कायम करने के लिए 1986 में बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी बना दी गई।
सत्यनारायण मौर्य ने दिया नारा..
रामभक्तों के लिए वो खुशी का पल था जब कोर्ट के आदेश पर ताला खुला। इसी समय से राम लला की पूजा भी शुरू हो गई। इस दौरान विश्व हिंदू परिषद की ओर से राम जन्म भूमि के लिए आंदोलन चलता रहा। इसी साल यानी कि साल 1986 में उज्जैन में बजरंग दल का शिविर लगा था। उस शिविर में एम कॉम की पढ़ाई कर रहा एक शख्स सत्यनारायण मौर्य भी मौजूद था। उसी शिविर के दौरान शाम को जब सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे थे, सत्यनारायण मौर्य ने एक नारा उछाला, जो था….राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे।
सत्यनारायण मौर्य का एक नारा उछालना फिर क्या वहां मौजूद देखते ही देखते पूरी भीड़ इस नारे को जोर जोर से लगाने लगी। जिसके बाद से धीरे-धीरे ये नारा राम जन्म भूमि आंदोलन का प्रतीक बन गया, लेकिन इस नारे पर राजनीति भी खूब हुई है।
लोकतांत्रिक देश हो, सुर्खियों में कोई नारा हो, और राजनीति ना हो ये कहां संभव। इस नारे को सुर्खियों में आने के बाद से भाजपा की विपक्षी पार्टियों ने इस नारे को लेकर पैरोडी भी लगाई, हर एक संभव कोशिश की भाजपा को घेरने की, अंज में विपक्षी दलों ने इस नारे में एक लाइन और भी जोड़ी दी। इसे साथ ही विपक्ष का नारा, राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे…ये विपक्ष का नारा हो गया। बहरहाल, ये बात सच भी हो गई क्योंकि 1986 में बने इस नारे के बाद साल 1989 में पालमपुर में हुए अधिवेशन में बीजेपी ने राम मंदिर को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल कर लिया। तब से यानी कि 1989 से 2019 के बीच लोकसभा के कुल 9 चुनाव हुए।
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भाजपा का क्या है अजेंडा?
तब से लगाकर भाजपा अभी तक राम मंदिर को चुनावों को लेकर प्राथमिकता देती आई है। हर चुनाव में जीतने के अजेंडा में बीजेपी के पास राम मंदिर का मुद्दा टॉप पर रहा। शुरुआत में 1996 में 13 दिन, फिर 1998 में 13 महीने और फिर 1999 में पूरे पांच साल के लिए बीजेपी की सरकार रही। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे, लेकिन राम मंदिर नहीं बना। 2014 में और फिर 2019 में लगातार दो बार नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री बने। उनके भी चुनावी घोषणा पत्र में राम मंदिर का मुद्दा शामिल रहा, लेकिन मंदिर नहीं बना।
22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा
विपक्ष लगातार भाजपा को को ताने देता रहा कि राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे…लेकिन तारीख भी आ गई, क्योंकि फैसला सुप्रीम कोर्ट का था। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 5 अगस्त 2020 को मंदिर के शिलान्यास की तारीख आई और अब 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा की भी तारीख तय है। सत्यनारायण मौर्या का दिया नारा, राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे…सच साबित हो गया है और विपक्ष के तारीख नहीं बताएंगे वाले सवाल का जवाब भी अब पूरी दुनिया को पता है।
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