Varanasi Loksabha Seat: बाबा भोलेनाथ की नगरी और अधयात्म का शहर कहा जाने वाला वाराणसी वो शहर है, जिसके अनेकों नाम है.कोई इसे काशी कहता,कोई इसे बाबा बोलेनाथ की नगरी कहता है. यूं तो इसे शांत रहने और श्रद्धालुओं के स्वागत वाला शहर कहा जाता है, लेकिन इसे समय काशी में जबरदस्त गर्मा-गर्मी है.लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उम्मीदवारों का ऐलान हो चुका है. तीसरी बार पीएम मोदी यहां से चुनाव लड़ेंगे.
पीएम मोदी के यहां से चुनावी मैदान में उतरने के बाद से ना वाराणसी बल्कि आस-पास की सीटों और बिहार की कई सीटों का केंद्र वाराणसी बन गया. यहां की लोकसभा चुनाव की सीट का चुनाव तो वैसे भी हर बार चर्चा का केंद्र रहता है, लेकिन साल 2004 में वो दौरे भी आया यहां पर पंजे को लोगों ने थामा. वहीं इतिहास को दोहराने के लिए राहुल गांधी ने कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए न्याय यात्रा लेकर वहां पहुंचे.यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कुछ ऐसा बयान दिया, जिसको लेकर सियासत शुरु हो गई.
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साल 2014 से पीएम मोदी अब तक कितने लोकप्रिय हुए?
वाराणसी लोकसभा सीट हमेशा से ही सुर्खियों में रही है. इस सीट पर बीजेपी का वर्चस्व रहा है. पीएम मोदी से पहले साल 2009 में बीजेपी से मुरली मनोहर जोशी सांसद बने थे,जिसके बाद साल 2014 में पीएम मोदी को इस सीट से प्रत्याशी बनाया गया. पीएम मोदी जब गुजरात से वाराणसी आए तो उन्होंने कहा था कि ‘मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है. तब से लेकर अबतक कितने लोकप्रिय हुए पीएम मोदी ?
पीएम मोदी और केजरीवाल चुनावी मैदान में
साल 2014 में जब पीएम चुनावी मैदान में आए तो हर एक दल ने ये कहते हुए निशाना साधा कि गुजरात का सीएम, आखिर वाराणसी से जीतकर देश का पीएम बन सकता है, लेकिन काशी में एक बात है कि यहां की जनता से जिसे दिल से प्यार दिया उसे अपना भी बनाया. साल 2014 में पीएम मोदी के मुकाबले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मैदान में उतरे, लेकिन पीएम मोदी के सामने केजरीवाल को हार का सामना करना पड़ा था.
काशी की जनता के चहेते बने पीएम मोदी
फिर क्या था…पीएम नरेंद्र मोदी ने काशी की जनता को जो वचन दिया था. पीएम मोदी ने उसे पूरा भी किया.काशी में विकास की धाराएं बही, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से बाबा बोलेनाथ के पास जाना आसान हुआ.घाटों का सौदर्यीकरण हुआ और जैसे-जैसे काशी में विकास हुआ, प्रधानमंत्री ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई. बस फिर क्या था, पीएम लोगों के चहेते बन गए.जिसकी झलक साल 2019 के नतीज़ों में देखने को मिली. दोबारा यहा की जनता ने पीएम मोदी पर प्यार बरसाया.
विपक्ष का दिखा दम या फिर पीएम मोदी का दिखा रुतबा
इस सीट को यू ही नहीं भाजपा का गढ़ कहते है. इतिहास बताता है कि वाराणसी लोकसभा सीट पर अभी तक 17 लोकसभा चुनाव हुए है. यहां से सात बार बीजेपी और सात पर कांग्रेस को विजय हासिल हुई है. एक-एक बार जनता दल और सीपीएम को भी जीत नसीब हुई है. भारतीय लोकदल ने भी इस सीट पर एक बार जीत हासिल की है. समाजवादी पार्टी और बसपा ने इस सीट पर कभी कोई जीत हासिल नहीं की है. बहरहाल, इतिहास तो नहीं बदला जा सकता, लेकिन भविष्य ज़रुर बदल सकता है.यही वजह है कि इस सीट पर हर दल पुरजोर कोशिश कर रहा है.ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे आखिर विपक्षी कुनबा कैसे और कितनी मज़बूती से खुद को पेश करता है.ये देखना भी काफी ज्यादा रोमांचक होगा.
वाराणसी की जनता से पीएम का लगाव, विपक्षियों के लिए मुश्किल!
पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र माने जाने वाले बनारस में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा होने के बाद यूपी में सियासी हलचल बढ़ गई है. बीजेपी ने प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी को टिकट देकर पूर्वांचल में अपनी पकड़ तीसरी बार मजबूत कर ली है.ऐसे में विपक्षी एकता यहां कैसे टक्कर देगी.अब ये देखना बहुत ही दिलचस्प होगा.वाराणसी के सियासी समीकरण की बात करें तो यहां पर ब्राह्मण वोटर लगभग 3 लाख, मुस्लिम वोटर- लगभग 2.5 लाख, गैर यादव OBC वोटर- लगभग 2 लाख, कुर्मी जाति – लगभग 2 लाख, वैश्य वोटर – लगभग 1.5 लाख, भूमिहार वोटर- लगभग 1.5 लाख, यादव वोटर- लगभग 1 लाख, अनुसूचित जाति- लगभग 1 लाख है.
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