लोकसभा चुनाव 2024: जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव का समय करीब आता जा रहा है। वैसे-वैसे सियासी सरगर्मी तेज होती जा रही है। भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर मोदी मैजिक के जरिये केन्द्र की सत्ता पर हाईट्रिक लगाने में जुटी है तो, वहीं दूसरी तरफ मोदी मैजिक को टक्कर देने के लिये 26 सियासी दल मिलकर इंडिया गंठबंधन को अमलीजामा पहनाने की कवायद में जुटी हैं। दरअसल, देश में एनडीए के विकल्प के तौर पर पहले यूपीए आयी और अब यूपीए को समाप्त कर इंडिया गठबंधन देश की सियासत में अस्तित्व में आयी है। पटना से लेकर बंगलोर,मुंबई, दिल्ली बैठकों के जरिये मुहिम को आगे बढ़ाने की कवायद गठबंधन की ओर से अच्छा खासा सुर्खियों में रहा है और आज भी सुर्खियों में है, लेकिन इतने सियासी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर माथा पच्ची का दौर लगातार जारी है।
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आखिर ये पेंच है क्या?
बता दे कि जितने सियासी दल हैं उतनी हीं विचारधारा, उतनी हीं महत्वाकांक्षायें। इंडिया गठबंधन का हर एक सियासी दल बेशक मोदी लहर को रोकने की बात कर रहा है, लेकिन इस बात का दावा करने से भी नहीं चूक रहा है कि उसे कैसे ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवारी मिल सके। पेंच तो कई हैं। लेकिन आखिर ये पेंच है क्या?
महाराष्ट्र और यूपी का हाल
इसको लेकर गठबंधन में शामिल अलग-अलग दल कैमरे पर कुछ और बंद कमरे में कुछ और बयान देते नजर आते हैं। कांग्रेस ने गठबंधन में बड़े दल की भूमिका को स्वीकार भी कर लिया है। पिछले कुछ दिनों से अलग अलग सियासी दलों के साथ सीट शेयरिंग को लेकर वन टू वन बैठक का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। आम आदमी पार्टी से लेकर समाजवादी पार्टी, शिवसेना के साथ बैठक हो भी चुकी है, लेकिन परिणाम केवल शर्तों के इर्द गिर्द घूम रहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना ने साफ कर दिया कि उसे 2019 की हीं तर्ज पर 48 लोकसभा सीटों में से 23 सीटें मिले। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को लेकर समाजवादी पार्टी 80 में से 65 सीटों का दावा ठोंके बैठी है। साथी राष्ट्रीय लोकदल के लिये 12 अलग से सीटों का भी समाजवादी पार्टी का दावा है। जबकि कांग्रेस चाहती है उसे कम से कम देढ़ दर्जन सीटें तो मिल हीं जाये। आम आदमी पार्टी की बात की जाये तो बैठक में शर्त और तगड़ी है। पंजाब दिल्ली के अलावा आम आदमी पार्टी हरियाणा, गुजरात में भी सीट शेयरिंग की मांग रख दी है।
बिहार के हालात काफी पेचीदा
बिहार की बात करें तो वहां के हालात और पेचीदा नजर आ रहा है। सीएम नीतिश की पार्टी जनता दल यूनाईटेड यानि जेडीयू ने तो 40 लोकसभा सीटों में से 16-17 सीटों की डिमांड कर दी है। वहीं राजद 17 सीटें चाहती है। इतना हीं नहीं जो बात नेताओं के बयान से सामने आ रहा है। जेडीयू ने तो आरजेडी के हवाले कांग्रेस और वामदलों को कर दिया है। इन सबके बीच कांग्रेस 10 सीटों पर बिहार में चुनाव लड़ने की मंसा जाहिर कर दी है। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने सीटों की कम हिस्सेदारी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, अगर कांग्रेस केवल चार सीटों पर लड़ती है तो समग्र रूप से महागठबंधन को नुकसान होगा। ऐसे बहुत सारे पेंच हैं!
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सबसे बड़ी परेशानी पश्चिम बंगाल में?
पश्चिम बंगाल की बात करें तो कांग्रेस के लिए वहां पर सबसे बड़ी परेशानी नजर आ रही है। वहीं पर सीएम ममता बनर्जी पहले ही साफ कर चुकी है कि वे राज्य में बीजेपी का मुकाबला अकेले करेंगी। ‘INDIA’ गठबंधन के तहत सीट देने की बात भी हुई, तो TMC की ओर से सिर्फ 2 सीटें ऑफर की गईं। जबकि कांग्रेस की डिमांड 6 से 10 सीटों की है। TMC के ऑफर के बाद से कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी लगातार ममता सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि ममता बनर्जी का असली मकसद सबको पता चल गया। ये कह रहे हैं कि दो सीटें देंगे। ये दोनों सीटें हम ममता बनर्जी और बीजेपी को हराकर जीते थे। ऐसे में नया क्या मिल रहा है. कांग्रेस अपने दम पर इन दो सीटों पर लड़ेगी। इससे ज्यादा सीटों पर हम लड़ने का दम रखते हैं. दरअसल, 2019 में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस 2 लोकसभा सीटें जीती थी।
पंजाब का क्या है हाल?
अभी त्रिणमूल कांग्रेस से बैठक होना बाकि है। बंगाल में क्या हालात हैं कांग्रेस और टीएमसी कार्यकर्ताओं के ये तो सभी जानते हैं। कुछ वैसा ही नजारा पंजाब कांग्रेस यूनिट और आप के बीच देखने को मिल रही है। पेंच पर पेंच, सबकुछ केवल शर्तों के बीच गोता लगा रही हैं। कभी लगता है कि शायद कोई बीच का फार्मूला कांग्रेस निकाल लेगी तो कभी लगता है, मामला कहीं सिफर न हो जाये। सीमावर्ती पंजाब का हाल भी दिल्ली की तरह ही है। यहां पर कांग्रेस 13 में 6 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरना चाहती है। हालांकि पंजाब का मामला काफी पेचीदा दिख रहा है, क्योंकि यहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है और आम आदमी पार्टी सत्ता में है।