Ram Mandir Pran Pratishtha: 500 सालों बाद करोड़ो रामभक्तों का सपना पूरा होने जा रहा है। 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी, जिस का सभी लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे है। ऐसे में बहुत से लोगों की काफी पुरानी आस्था पूरी हो रही है, जिनमें से एक है जम्मू के महंत रामस्वरूप दास, जिनका 3 दशकों का पुराना लिया हुआ प्रण अब पूरा होने जा रहा है।
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राम मंदिर बनने तक रामलला के दर्शन न करने का प्रण लिया
जिस समय बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, उस समय महंत रामस्वरूप दास के दो शिष्य पुलिस फायरिंग में शहीद हो गए थे, जिसके बाद उन्होंने राम मंदिर बनने तक रामलला के दर्शन न करने का प्रण लिया था। लेकिन अब उनका दशकों पुराना निया हुआ वो प्रण होने जा रहा है।
महंत रामस्वरूप दास को भेजा निमंत्रण
बता दे कि राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम 22 जनवरी को है, जिसके देश और दुनिया के कई दिग्गजों को निमंत्रण भेजा गया है। इसी निमंत्रण कड़ी में जम्मू के अखनूर के समा क्षेत्र में आश्रम के महंत रामस्वरूप दास को भी निमंत्रण भेजा गया है। जैसे ही उन्हें अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। 92 साल के महंत रामस्वरूप दास का स्वास्थ्य इन दोनों ठीक नहीं रहता और वह अक्सर बातें और घटनाएं भूल जाते हैं लेकिन पिछले करीब दो दशकों से उनकी सेवा में लगे महंत द्वारका दास को वे सब घटनाएं याद हैं जिन्होंने महंत रामस्वरूप दास को रामलला के दर्शन न करने का प्रण लेने पर मजबूर कर दिया था।
दोनों शिष्यों ने अपने प्राण गंवा दिए
90 के दशक के समय में महंत रामस्वरूप दास अपने दो शिष्यों राम भगत दास और राम अशरीय दास को लेकर कार सेवा में जम्मू से अयोध्या पहुंचे थे। महंत द्वारका दास बताते हैं कि उसी समय सभी कार सेवकों को सरयू नदी के पास ही रोका गया था। महंत रामस्वरूप जी महाराज जैसे ही अगले दिन सरयू नदी से विवादित ढांचे की तरफ कुछ करने लगे तो वहां पर मौजूद सुरक्षा बलों ने फायरिंग की, जिसमें उनके दोनों शिष्यों ने अपने प्राण गंवा दिए।
महंत रामस्वरूप दास को लगी गोली
उस घटना के दौरान महंत रामस्वरूप दास को भी गोली लगी थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। फिर वहां से उन्हें सीधे जेल में डाल दिया गया था। उसके कुछ महीनों बाद जैसे ही जेल से महंत रामस्वरूप दास बाहर आए तो उन्होंने अपने शिष्यों के बारे में तहकीकात की और उन्हें पता लगा कि उनके शिष्यों के पार्थिव शरीर सरयू नदी में बहा दिए गए हैं।
इस पूरी घटना को सुनकर उन्हें काफी आहत हुआ और महंत रामस्वरूप दास ने उस समय प्रण लिया कि वह तब तक रामलला के दर्शन नहीं करेंगे जब तक कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो जाता। इस प्रण के बाद वह अयोध्या से सीधे जम्मू आए और तब से इंतजार कर रहे हैं कि कब राम मंदिर बने और उनके दोनों शिष्यों को सच्ची श्रद्धांजलि मिले। महंत रामस्वरूप दास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने राम मंदिर बनाकर न केवल करोड़ों राम भक्तों को तोहफा दिया है बल्कि इस संघर्ष में शहीद हुए लोगों को भी सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
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