UP OBC Commission: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग में लंबे समय से रिक्त अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कर दी है. इस कड़ी में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 24 सदस्यों की नियुक्ति की गई है. यह नियुक्ति राज्य सरकार की तरफ से महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है, खासकर लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद.
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति
बताते चले कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीतापुर के पूर्व सांसद राजेश वर्मा की नियुक्ति की है. इसके अलावा, दो उपाध्यक्षों की नियुक्ति भी की गई है. उपाध्यक्षों के रूप में सोहन लाल श्रीमाली और सूर्य प्रकाश पाल को नामित किया गया है. यह नियुक्तियां सरकार की ओर से पिछड़ों और अति पिछड़ों को साधने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही हैं.
24 सदस्यों की नियुक्ति
- चंदौली: सत्येंद्र कुमार बारी, शिव मंगल बियार
- सहारनपुर: मेलाराम पवार
- अयोध्या: वासुदेव मौर्य
- कुशीनगर: फूल बदन कुशवाहा
- मऊ: विनोद यादव
- कानपुर: अशोक सिंह
- गोरखपुर: चिरंजीवी चौरसिया, जनार्दन गुप्ता, रवींद्र मणि
- झांसी: कुलदीप विश्वकर्मा
- लखनऊ: लक्ष्मण सिंह, रामशंकर साहू, विनोद सिंह
- गाजीपुर: डॉ. मुरहू राजभर
- सुल्तानपुर: घनश्याम चौहान
- जालौन: बाबा बालक
- शामली: रमेश कश्यप, प्रमोद सैनी
- कासगंज: महेंद्र सिंह राणा
- प्रयागराज: राम कृष्ण सिंह पटेल
- सीतापुर: करुणा शंकर पटेल
ये नियुक्तियां एक साल के लिए की गई हैं और इसमें बीजेपी ने उन लोगों को शामिल किया है जो पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों से आते हैं, साथ ही सहयोगी दलों के नेताओं को भी स्थान दिया गया है.
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चुनावी हार के बाद महत्वपूर्ण कदम
लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पिछड़ों के वोटों के बंटवारे के कारण कई जगह हार का सामना करना पड़ा था. इस परिदृश्य में, योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग में इन नियुक्तियों को डैमेज कंट्रोल के तौर पर देखा जा रहा है. यह कदम बीजेपी की ओर से पिछड़ों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने और आगामी चुनावों में अपनी खोई हुई ground को पुनः प्राप्त करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
नए नियुक्तियां राजनीतिक रणनीति का हिस्सा
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग में किए गए ये नए नियुक्तियां राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं. यह नियुक्तियां न केवल सरकार की ओर से पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों के प्रति अपनी संवेदनशीलता को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि सरकार ने चुनावी हार के बाद सुधारात्मक कदम उठाने की दिशा में काम किया है. इस प्रकार की नियुक्तियों को आगामी चुनावों में बीजेपी की संभावनाओं को सुधारने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.