संवाददाता:अनुराग त्रिपाठी
Loksabha Election 2024:उत्तर प्रदेश की सियासत में अस्सी के दशक में बाहुबली नेताओं का सियासी दखल बढ़ना शुरू हुआ और नब्बे के दौर में उनकी तूती बोलती थी. हालत यह हो गई थी कि बाहुबली नेताओं के सामने कोई चुनावी संग्राम में उतरना ही नहीं चाहता था.यूपी में 80 और 90 के दशक में नई-नई पार्टियां बन रही थीं…इन्हें फंड के साथ इलाके में अच्छी पैठ वाले लोग चाहिए थे.इस फेहरिस्त में सपा और बसपा टॉप पर थी.दूसरी तरफ बाहुबलियों को पॉलिटिकल पावर के बारे में पहले से पता था इसलिए उन्हें राजनीतिक संरक्षण चाहिए था…दोनों की जरूरत के चलते राजनीतिक गलियारों के दरवाजे इनके लिए आसानी से खुल गए।
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चुनाव में कम हुआ बाहुबलियों का वर्चस्व
पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक में बाहुबली नेताओं का पूरी तरह से दबदबा कायम था.हालांकि,सूबे की सियासत ने करवट ली और माननीयों से जुड़े मुकदमों में तेज हुई पैरवी ने बाहुबलियों की कमर तोड़ने में अहम भूमिका निभाई.अब या तो बाहुबली इस दुनिया में नहीं हैं और जो हैं भी वो सलाखों के पीछे हैं.यूपी से इस बार एक भी बाहुबली लोकसभा चुनाव में नहीं है लेकिन एक दौर था जब एक साथ 16 विधायक-सांसद बाहुबली थे.ये खुद तो जीतते ही थे आसपास की सीटों पर भी अच्छा खासा असर डालते थे अब इनका दौर खत्म हो रहा है.इस बार के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 3 बाहुबली ऐसे हैं जिनके परिवार के सदस्य मैदान में हैं इनमें से दो के बेटे और एक का भाई चुनाव लड़ रहा है।
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2000 से 2014 तक चुने गए 16 बाहुबली सांसद और विधायक
यूपी की राजनीति में बाहुबलियों की एंट्री की बात करें तो पहला नाम हरिशंकर तिवारी का है.इसके बाद ये सिलसिला लगातार चल पड़ा.नेताओं को जिताने का काम करने वाले माफिया सियासत में उतरने लगे.1980 के बाद 10 साल में वीरेंद्र प्रताप शाही,रमाकांत यादव और डीपी यादव ने राजनीति में एंट्री ली.बाहुबलियों का यूपी पॉलिटिक्स में सबसे ज्यादा दबदबा साल 2000 से 2014 तक रहा.इन 14 साल में 16 बाहुबली विधायक और सांसद चुने गए।
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राजनीतिक दलों ने बनाई बाहुबलियों से दूरी
लोकसभा चुनाव 2024 के आगाज से पहले माफिया बाहुबली मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है तो वहीं माफिया अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की भी हत्या हो चुकी है.मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी जरुर गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं लेकिन अतीक अहमद के परिवार से चुनाव में कोई भी किस्मत नहीं आजमा रहा है।वहीं अगर बात बाहुबली विजय मिश्रा,रमाकांत यादव, अतुल राय और रिजवान जहीर की करें तो ये सभी सलाखों के पीछे हैं तो डीपी यादव, गुड्डू पंडित, करवरिया बंधु जैसे बाहुबलियों से भी राजनीतिक दल कन्नी काट रहे हैं।
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1991 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद चर्चा में आए कैसरगंज से बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर 40 से ज्यादा केस दर्ज हैं.हाल ही में महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों में घिरे बृजभूषण सिंह का टिकट काट कर बीजेपी ने उनके बेटे करण भूषण को थमा दिया है.वहीं कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह का भी कोई करीबी इस बार चुनावी मैदान में नहीं है।
मौत के साथ खत्म हो गया अतीक का राजनीतिक सफर
एक दौर था जब माफिया अतीक अहमद की दबंगई का आलम ये था कि,प्रयागराज के इलाके में उसकी मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था.प्रयागराज की फूलपुर सीट से अतीक अहमद कई सालों तक सांसद रहा लेकिन पिछले साल प्रयागराज में उसकी और उसके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई.अतीक के दो बेटे अभी भी जेल में बंद हैं और उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन अभी भी फरार है….अतीक के परिवार से कोई भी सदस्य इस बार के चुनावी मैदान में नजर नहीं आ रहा है.अतीक का सियासी साम्राज्य अब खत्म होता नजर आ रहा है।
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गाजीपुर में खत्म होगा अंसारी परिवार का वर्चस्व?
वहीं पूर्वांचल में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की एक समय तूती बोलती थी खासकर गाजीपुर, मऊ, बलिया और आजमगढ़ क्षेत्र में.गाजीपुर से मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी सांसद हैं तो उसके करीबी अतुल राय घोसी से चुनाव जीत चुके हैं.मुख्तार अंसारी का हाल ही में निधन हो गया है लेकिन उसके भाई अफजाल गाजीपुर से चुनाव लड़ रहे हैं.अतुल राय जेल में बंद हैं और घोसी सीट से उन्हें किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है जिसके चलते इस बार वो चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हो गए।
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बसपा और सपा ने भी बाहुबलियों से बनाई दूरी
इसी तरह एक समय में पश्चिमी यूपी में डीपी यादव का सियासी दबदबा था.नोएडा के रहने वाले पूर्व मंत्री डीपी यादव बदायूं से चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन बसपा और सपा ने किनारा किया तो उसकी सियासी जमीन खिसक गई.डीपी यादव इस बार अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे लेकिन सपा और बीजेपी दोनों ने ही उन्हें टिकट नहीं दिया.इसी तरह गुड्डू पंडित बुलंदशहर के रहने वाले हैं लेकिन अलीगढ़ से लेकर फतेहपुरी सीकरी तक से चुनाव लड़ चुके हैं.इस बार उन्हें किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया है.डीपी यादव और गुड्डू पंडित दोनों ने ही पश्चिमी यूपी के बड़े बाहुबली नेताओं के रूप में पहचान बनाई थी लेकिन इस बार चुनावी पिच से ये दोनों ही बाहर हैं।
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धनंजय सिंह की उम्मीदों पर फिरा पानी
इसी तरह पूर्वाचंल की जौनपुर लोकसभा सीट पर भी इस बार खेला हो गया.अपहरण,रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह 7 साल की सजा होने के चलते सियासी पिच से बाहर हो गए हैं.धनंजय सिंह जौनपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे बीजेपी से डील के बाद धनंजय सिंह जेल से तो बाहर आ गए मगर बीएसपी के टिकट पर चुनावी समर में किस्मत आजमा रही श्रीकला रेड्डी ने नाम वापस ले लिया और फिर बीजेपी का दामन थाम कर रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।
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न्यूट्रल मूड में दिख रहे राजा भैया
कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी ने जेल में रहते हुए अपने भाई अजीतमणि त्रिपाठी को लोकसभा चुनाव लड़ाया था.बेटे अमनमणि को विधायक बनवाया था लेकिन इस बार उनके साथ भी खेला हो गया.अमनमणि त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन थामा और महराजगंज सीट से टिकट मांग रहे थे लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह चौधरी बीरेंद्र को प्रत्याशी बना दिया.इसके चलते अमरमणि के परिवार से कोई भी चुनावी रण में नहीं है।उन्नाव के भी बाहुबली कुलदीप सेंगर जेल में बंद हैं जबकि एक समय उनकी तूती बोलती थी.इसी तरह प्रतापगढ़ जिले में रघुराज प्रताप सिंह की तूती बोला करती थी उनके रिश्ते में भाई अक्षय प्रताप सिंह सांसद रह चुके हैं.इस बार वो भी चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं।