स्विट्जरलैंड सरकार ने भारत और स्विट्जरलैंड के बीच दोहरे कराधान से बचाव समझौते (DTAA) में सबसे पसंदीदा राष्ट्र (MFN) खंड को निलंबित कर दिया है। इस फैसले से भारत में स्विस निवेश पर संभावित असर पड़ सकता है, और यूरोपीय राष्ट्र में काम करने वाली भारतीय कंपनियों पर अधिक कर लगाया जा सकता है।MFN खंड निलंबित करने का मतलब है कि अब स्विट्जरलैंड द्वारा भारत में निवेश करने वाली कंपनियों को लाभांश और अन्य आय पर 10 प्रतिशत कर देना होगा, जबकि पहले यह 5 प्रतिशत था। यह नया कर 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होगा।
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विभाग ने बयान किया था जारी
स्विस वित्त विभाग ने 11 दिसंबर को एक बयान जारी किया, जिसमें इस कदम को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से जोड़ा गया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि यदि कोई देश OECD में शामिल होने से पहले भारत सरकार के साथ कर संधि पर हस्ताक्षर करता है, तो MFN खंड स्वतः लागू नहीं होता। इस बदलाव का असर स्विस निवेशकों और भारतीय कंपनियों के लिए बड़ा हो सकता है, क्योंकि उन्हें अब अतिरिक्त कर का सामना करना पड़ेगा।
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क्या है MFN?
MFN (Most Favoured Nation) का दर्जा एक महत्वपूर्ण व्यापारिक सिद्धांत है जो विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत लागू होता है। इसका अर्थ है कि एक देश अपने किसी विशेष व्यापारिक साझेदार को जो फायदे देता है, वही फायदे अन्य सभी साझेदारों को भी देने होंगे। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी व्यापारिक पार्टनर्स को समान और निष्पक्ष व्यापारिक शर्तें मिलें। यदि एक देश किसी अन्य देश को किसी विशेष प्रकार की छूट या कम शुल्क प्रदान करता है, तो वही छूट अन्य देशों को भी मिलनी चाहिए।
इसका निवेशकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
स्विट्जरलैंड द्वारा MFN दर्जा निलंबित करने से भारतीय कंपनियों, विशेषकर जिनकी उपस्थिति स्विट्जरलैंड में है, उन्हें कई व्यापारिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। इन बाधाओं में बढ़े हुए शुल्क, व्यापार के लिए कड़ी शर्तें, और बाजार तक कम पहुंच शामिल हो सकते हैं। विशेष रूप से वित्तीय सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी जैसे क्षेत्रों की कंपनियां प्रभावित हो सकती हैं। निवेशकों को इन क्षेत्रों में संभावित जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अपने निवेश निर्णय लेने की आवश्यकता होगी।
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भारत सरकार का क्या कहना है?
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के सदस्य देशों के साथ व्यापार समझौतों को ध्यान में रखते हुए स्विट्जरलैंड के साथ अपनी दोहरी कराधान संधि पर पुनः बातचीत की आवश्यकता हो सकती है। भारत का विदेश मंत्रालय इस संबंध में यह भी कह रहा है कि EFTA के कारण इस संधि की समीक्षा की जाएगी।