Sambhal Violence: संभल (Sambhal) की जामा मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल (1526-1530) में हुआ था. इसे बाबर के सिपाहसालार हिंदू बेग कुचिन की देखरेख में दिसंबर 1526 में बनाया गया. यह मस्जिद मुगल स्थापत्य शैली का प्रतीक है, जिसमें बड़ा चौकोर हॉल और गुंबद है. मस्जिद के अंदर के फारसी शिलालेख इसकी मुगल उत्पत्ति को दर्शाते हैं। हालांकि, इतिहासकारों के एक वर्ग का दावा है कि यह मस्जिद हिंदू मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी.
संभल का धार्मिक महत्व
संभल (Sambhal) को हिंदू धर्म में विष्णु के दसवें अवतार, कल्कि के संभावित जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने यहां ‘कल्कि धाम’ का शिलान्यास करते हुए इस स्थान के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया.
मस्जिद विवाद: याचिका और सर्वेक्षण आदेश
अदालत में वकील विष्णु शंकर जैन (Vishnu Shankar Jain) ने याचिका दाखिल की, जिसमें दावा किया गया कि जामा मस्जिद (Jama Masjid) भगवान कल्कि के मंदिर के खंडहरों पर बनी है.याचिकाकर्ताओं ने बाबरनामा और अकबरनामा जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों का हवाला देते हुए मंदिर के विनाश के प्रमाण दिए. 19 नवंबर 2024 को अदालत ने मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया. अधिवक्ता आयुक्त रमेश राघव ने जिला प्रशासन और पुलिस के साथ सर्वेक्षण किया. यह निर्णय कई पक्षों द्वारा न्यायिक अधिकार के दुरुपयोग और प्रक्रियागत अनियमितताओं के आरोपों के साथ आलोचना का विषय बना.
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मुस्लिम समुदाय और राजनीतिक प्रतिक्रिया
जामा मस्जिद (Jama Masjid) प्रबंधन समिति और मुस्लिम समुदाय ने सर्वेक्षण का विरोध किया. उन्होंने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला दिया, जो धार्मिक स्थलों की 1947 की यथास्थिति बनाए रखने की बात करता है. समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर रहमान बरक ने इस कदम को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करार दिया.
24 नवंबर: हिंसा और दंगों की शुरुआत
मस्जिद के पास दूसरे सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी. प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी और आगजनी की. पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया. हिंसा में चार लोगों की मौत हुई और 30 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए. स्थिति बिगड़ने पर इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं और स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा.
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) ने सरकार की निष्क्रियता की आलोचना की। जियाउर रहमान बरक ने समुदाय से कानूनी रूप से लड़ने और शांति बनाए रखने की अपील की. अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने एएसआई से मस्जिद की पूरी जांच करने की मांग की. यह विवाद धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती को उजागर करता है. ऐसे मामलों में 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के महत्व को समझते हुए संवेदनशीलता से निपटना आवश्यक है.