देश में लोकसभा चुनाव होने से पहले 6 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं इन 6 राज्यो के सीट पर जीत हासिल करना कही ना कही ये लोकसभा चुनाव में सभी पार्टीयों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा इसमें सबसे महत्वपूर्ण राज्य मध्यप्रदेश औऱ राजस्थान इन राज्यों में बीजेपी और काग्रेस में जोर –दार टक्कर देखने को मिलेगी अभी से ही दोनों पार्टीया तैयारीयों जुट गयी है आपको बता दें विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही भाजपा ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए पार्टी की पूर्व लोक सभा सांसद ज्योति मिर्धा को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह, भाजपा राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी, और राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी की मौजूदगी में पार्टी के दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मुख्ययाल में ज्योति मिर्धा ने सोमवार को भाजपा का दामन थाम लिया। इसके साथ ही रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और कांग्रेस के पूर्व विधायक के पुत्र सवाई सिंह चौधरी ने भी आज भाजपा का दामन थाम लिया
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आपको बता दें राजस्थान की राजनीति में मिर्धा परिवार का अपना एक राजनीतिक कद रहा है जिसका फायदा कांग्रेस को मिलता रहा है। ज्योति मिर्धा राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज जाट नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती हैं और 2009 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर नागौर सीट से चुनाव जीत कर वह सांसद भी रह चुकी हैं। लेकिन 2014 के लोक सभा चुनाव में उन्हें भाजपा उम्मीदवार सीआर चौधरी और 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा समर्थित एनडीए उम्मीदवार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी मुखिया हनुमान बेनीवाल से हार का सामना करना पड़ा था। यह माना जा रहा है कि राजस्थान के जाट समुदाय खासकर जाट मतदाता बाहुल्य लोक सभा क्षेत्र नागौर में वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कराया है ताकि विधान सभा चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाया जा सके।
राजस्थान में जाट क्यों है खास ..?
वही अब देखा जा रहा कि राजस्थान में राजनीतिक बिसात बिछाना शुरू कर दिया है ये विसात है जाट समुदाय को लेकर वही जाट सियासत चुनाव में किस करवट बैठेगी इसे लेकर राजनीतिक तपिश बढ़ गई है. जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में रविवार को हुए जाट महाकुंभ में जाट का वोट जाट को देने के संकल्प के साथ जाट समुदाय ने अपनी ताकत दिखाई. इतना ही नहीं जाट समुदाय के लोगों ने 2023 में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के साथ-साथ जातिगत जनगणना और ओबीसी आरक्षण को 21 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की मांग उठाई है
जाट महाकुंभ में शामिल हुए ये नेता
आपको बता दें राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने जाट महाकुंभ का आयोजन था, वही जिसमें कांग्रेस और बीजेपी सहित सभी दलों के जाट नेताओं ने शिरकत किया था. किसान नेता राकेश टिकैत, केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, गहलोत सरकार के मंत्री लालचंद कटारिया, विश्वेंद्र सिंह, बृजेंद्र ओला, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह, लोकसभा सदस्य दुष्यंत सिंह, भागीरथ चौधरी, सुमेधानंद सरस्वती सहित दो दर्जन से ज्यादा विधायक और पूर्व विधायक ने शिरकत किया. इस दौरान सभी ने सामाजिक एकता और सियासी विचारधारा से ऊपर उठकर जाट समाज को पहले प्राथमिकता देने का निर्णय लिया
जाट समुदाय की सियासत ताकत
बता दें राजस्थान में जाट समुदाय ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है. वही माना जाता है कि सूबे में करीब 12 फीसदी जाट समुदाय है, जिसका असर करीब 50 विधानसभा सीटों पर जीतने की ताकत रखते हैं तो 20 सीटों पर किसी दूसरे समाज के नेता को जीतने-हराने में अहम रोल अदा करते हैं. जाट समाज के दबदबे का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि राजस्थान में हर चुनाव में कम से कम 10 से 15 फीसदी विधायक जाट समाज के ही होते हैं.
राजस्थान में जाट विधायक और सांसद
राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में जाट समुदाय के 34 विधायक 2018 में जीतकर आए थे. कांग्रेस से 18 विधायक जीते जबकि बीजेपी के 10 जाट विधायक चुने गए थे, जिसमें वसुंधरा राजे भी शामिल हैं. इसके अलावा लेफ्ट पार्टी से दो जाट विधायक चुने गए थे और दो जाट समुदाय के नेता निर्दलीय जीते थे. इसके अलावा एक बसपा और एक आरपीआई से जीतने में सफल रहे थे. वहीं, आठ सांसद जाट समुदाय से हैं, जिनमें एक राज्यसभा सदस्य और बाकी सात लोकसभा में है.
जाट बहुल्य जिले और इलाके
राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बहुल माना जाता है, जहां पर जाट वोटर 25 से 35 फीसदी तक है. सूबे के हनुमानगढ़, गंगानगर, धौलपुर बीकानेर, चुरू, झुंझनूं, नागौर, जयपुर, चित्तोड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर, जोधपुर, भरतपुर में जाट समुदाय बड़ी संख्या में है. धौलपुर जाटों के सबसे बड़े गढ़ में से एक है और राज्य में सात जिलों की करीब 50 से 60 सीटों पर खासा प्रभाव होने के बावजूद जाट समाज को उतना महत्व नहीं मिला, जितने की इन्हें उम्मीद थी. अब जाट राजनीति में आए इस शून्य को भरने के लिए जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने पूरी बिरादरी को इकट्ठा कर राजनीतिक ताकत दिखाया.
जाट समुदाय के 50 विधायक का टारगेट
राजस्थान की जाट महासभा ने 2023 के विधानसभा चुनाव में 50 विधायक जाट समुदाय के बनाने का टारगेट तय कर रखा है. इसके लिए जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि समाज की सबसे अहम मांग 2023 के विधानसभा चुनाव में जाट समाज को टिकट के लिए है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों से 40-40 टिकट मांगे गए हैं ताकि जाट समुदाय से 50 विधायक विधानसभा पहुंच सके. 2018 में चुनाव में कांग्रेस ने 30 और बीजेपी ने 29 प्रत्याशी जाट समुदाय के दिए थे, लेकिन इस बार 40 से कम टिकट पर राजी नहीं होंगे. जाट समाज से 50 विधायक जीतकर आते हैं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जाट बैठेगा.
जाट समुदाय के सीएम की क्यों मांग?
जाट महासभा में जाट मुख्यमंत्री की भी मांग उठी है. इसकी वजह यह है कि प्रदेश की राजनीति में हमेशा से जाट सियासत का बड़ा महत्व रहा है, लेकिन सीएम अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के सियासी संघर्ष के चलते जाट राजनीति में सियासी शून्य कायम हो गया. हालांकि, वसुंधरा राजे जाट परिवार बहु है. 1998 के विधानसभा चुनाव में परसराम मदेरणा के चेहरे पर चुनाव लड़ा लड़ा गया था, जिसके नाते जाट समाज ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान किया था.
जातिगत जनगणना की डिमांड क्यों ?
जाट समुदाय ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई और साथ ही अन्य पिछाड़ा वर्ग के आरक्षण को 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग भी की है. राजस्थान में जाट समुदाय ओबीसी में आता है. ओबीसी में सबसे बड़ी संख्या जाटों की है. ऐसे में जातिगत की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी आबादी और उनके प्रतिधिनित्व का सही आंकड़ा सामने आ सके. जाट महासभा राजाराम मील कहते हैं कि जाट समुदाय की जितनी आबादी है, उस लिहाज से न तो उसे राजनीति में प्रतिनिधित्व मिल रहा है और न ही सरकारी नौकरियों में
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राजस्थान में प्रेशर पॉलिटिक्स
जाट समुदाय ने राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलना शुरू कर दिया है. राज्य में ओबीसी के अंदर सबसे बड़ी आबादी जाट समुदाय की है. जयपुर में अपनी सियासी ताकत दिखाकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों एहसास करा दिया है. इतना ही नहीं जाट समुदाय का वोट जाट को देने का ऐलान करके अपने विधायकों की संख्या को भी बढ़ाने के लिए सियासी दांव भी चल दिया है. इतना ही नहीं ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की मांग करके गहलोत सरकार पर भी दबाव बना दिया है.
कांग्रेस-बीजेपी दोनों के अध्यक्ष जाट
राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टी की नजर जाट समुदाय के वोटों पर है. इसीलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट की जगह जाट समुदाय से आने वाले गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया और अब उनके अध्यक्ष रहते हुए चुनावी मैदान में पार्टी उतरने जा रही है. बीजेपी ने भी जाट समुदाय से आने वाले सतीश पुनिया को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप रखी है. इसके अलावा हनुमान बेनीवाल भी जाट सियासत के बड़े चेहरे हैं और उनकी खुद की आरपीआई नाम से राजनीतिक पार्टी है. ऐसे में देखना है कि जाट सियासत 2023 में किस करवट बैठती है?
जानें, किस जाट नेता ने क्या कहा
बीजेपी सांसद दुष्यंत सिंह नेअपनी मां और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का संदेश पढ़कर सुनाया. वसुंधरा ने जाट समाज की एकता पर जोर दिया. गोविंद सिंह डोटासरा ने जाट समाज के नेताओं को नसीहत देते हुए कहा कि किसी भी दूसरे समाज के खिलाफ एक भी गलत शब्द नहीं बोलना चाहिए. सतीश पूनिया ने कहा कि जाट समाज गांव में सामाजिक सद्भाव के लिए जाना जाता था, उसे कायम रखना है. कांग्रेस नेता रामेश्वर डूडी ने जाट सीएम की मांग उठाते हुए कहा कि अगला मुख्यमंत्री किसान का बेटा, जाट का बेटा होना चाहिए. इस दौरान जातिगत जनगणना और ओबीसी के आरक्षण को बढ़ाने की मांग भी उठाई गई.