Lucknow News: झांसी मेडिकल कॉलेज में लगी आग में 10 मासूमों की मौत ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। जहां एक तरफ जिम्मेदार अधिकारी जांच और कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लखनऊ के प्रमुख सरकारी अस्पतालों की फायर सुरक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। झांसी की घटना के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल, वीरांगना झलकारी बाई महिला चिकित्सालय, और बलरामपुर अस्पताल में फायर सुरक्षा की पड़ताल से हैरान करने वाली हकीकत सामने आई है।
सिविल अस्पताल: फायर NOC के बिना हो रहा संचालन
हजरतगंज स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल में रोजाना हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं। बावजूद इसके, अस्पताल में फायर सुरक्षा के मानकों की घोर अनदेखी की जा रही है। फायर विभाग ने अस्पताल को NOC नहीं दी है क्योंकि यहां वाटर स्प्रिंकलर तक नहीं लगे हैं। हालांकि, अस्पताल के CMS डॉ. राजेश श्रीवास्तव का कहना है कि परिसर में 50 से अधिक फायर एक्सटिंग्विशर लगाए गए हैं और फायर एग्जिट भी बनाए गए हैं। लेकिन मौके पर की गई जांच में हाइड्रेंट सिस्टम और फायर अलार्म की खामियां उजागर हुईं। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि कुछ जरूरी व्यवस्थाएं पूरी की जा रही हैं, लेकिन सवाल यह है कि बिना पूर्ण फायर सुरक्षा के अस्पताल कैसे संचालित हो रहा है?
झलकारी बाई महिला चिकित्सालय: सुरक्षा के नाम पर सिर्फ बहाने
झलकारी बाई महिला चिकित्सालय, जो विधानसभा के नजदीक स्थित है, गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए राज्य का प्रमुख केंद्र है। लेकिन यहां की फायर सुरक्षा भी लचर स्थिति में है। अस्पताल में न तो फायर अलार्म काम कर रहे हैं, न ही वाटर हाइड्रेंट या होज रील जैसी व्यवस्थाएं मौजूद हैं। अस्पताल की CMS डॉ. निवेदिता कर ने बताया कि फायर अलार्म लगाने का काम UPCLDF के जिम्मे था, लेकिन कंपनी के ब्लैकलिस्ट होने के कारण काम अधूरा रह गया। इमरजेंसी निकासी के लिए SNCU वार्ड से आंगन तक स्टील की सीढ़ियां बनाई गई हैं, लेकिन फायर NOC अब तक नहीं मिल पाई है।
बलरामपुर अस्पताल: इमरजेंसी वार्ड में स्प्रिंकलर नदारद
बलरामपुर अस्पताल के CMS डॉ. संजय तेवतिया ने दावा किया कि अस्पताल को फायर NOC मिल चुकी है और समय-समय पर फायर ऑडिट भी होता है। लेकिन, पड़ताल में सामने आया कि अस्पताल की इमरजेंसी बिल्डिंग में स्थित वार्ड में स्प्रिंकलर तक नहीं लगे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि NOC कैसे जारी की गई। अस्पताल में फायर हाइड्रेंट की मौजूदगी और फायर ऑडिट के दावों के बावजूद मौके पर कई जरूरी उपकरण गायब पाए गए।
CFO ने नहीं दी स्पष्ट जानकारी
फायर सुरक्षा को लेकर लखनऊ के चीफ फायर ऑफिसर (CFO) मंगेश कुमार से संपर्क किया गया, लेकिन वह अस्पतालों की फायर NOC और फायर ऑडिट की स्थिति स्पष्ट नहीं कर सके। तीन बार फोन करने के बावजूद उन्होंने जानकारी देने के बजाय यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वह “जल्द जानकारी देंगे।”
फायर सेफ्टी ऑडिट में खुली खामियां
केजीएमयू शताब्दी अस्पताल
केजीएमयू शताब्दी अस्पताल में केवल एंट्री गेट पर ही रैंप बना है। हालांकि, नई इमारत होने के बावजूद सीढ़ियां ढाई मीटर से कम चौड़ी बनाई गई हैं, जबकि निकास के लिए बनाए गए गेट भी मानकों के विपरीत हैं।
केजीएमयू पुरानी बिल्डिंग
केजीएमयू की पुरानी बिल्डिंग में एक भी लिफ्ट सही नहीं है। एंट्री और एक्जिट गेट की चौड़ाई बेहद कम है, और अस्पताल का फायर फाइटिंग सिस्टम इतना पुराना हो चुका है कि वह अब कार्यशील नहीं है।
सिविल अस्पताल
पुरानी ओपीडी बिल्डिंग में फायर फाइटिंग से संबंधित कोई भी उपकरण मौजूद नहीं हैं। कुछ पुराने फायर एक्सटिंग्यूशर लगाए गए हैं, जो अब निष्क्रिय हो चुके हैं। इसके अलावा, इमरजेंसी बिल्डिंग के पीछे निकास गेट मानकों के खिलाफ है।
रानी लक्ष्मीबाई हॉस्पिटल
रानी लक्ष्मीबाई हॉस्पिटल में एंट्री और निकास के लिए केवल एक ही गेट है। यह बिल्डिंग पुरानी है, और आने वाले मरीजों की संख्या के हिसाब से सभी गेट और सीढ़ियों की चौड़ाई भी पर्याप्त नहीं है।
अवंतीबाई अस्पताल
अवंतीबाई अस्पताल में फायर फाइटिंग मानकों का पालन नहीं किया गया है। यहां न तो वाटर हाइड्रेंट सिस्टम है और न ही पंपिंग स्टेशन। वार्डों और स्टाफ रूम्स का निर्माण भी मानकों के खिलाफ किया गया है।
भाऊराव देवरस हॉस्पिटल
भाऊराव देवरस हॉस्पिटल की बिल्डिंग भी फायर फाइटिंग मानकों के अनुसार नहीं बनाई गई है। अस्पताल की सीढ़ियां और रैंप सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं हैं।
परिवार कल्याण निदेशालय
परिवार कल्याण निदेशालय की बिल्डिंग की हालत बेहद खराब है। यहां न तो बिजली के उपकरण सही हैं और न ही फायर हाइड्रेंट्स पर्याप्त मात्रा में लगे हैं। जिनमें से अधिकांश में पानी की सप्लाई के लिए पंपिंग स्टेशन भी नहीं है।
सामुदायिक केंद्र
गोसाइगंज, मलिहाबाद, चिनहट और बीकेटी के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में फायर फाइटिंग के कोई भी उपकरण नहीं लगाए गए हैं।
शेखर हॉस्पिटल और एफआई हॉस्पिटल
शेखर हॉस्पिटल और एफआई हॉस्पिटल, दोनों निजी अस्पतालों में आग से सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए गए थे, जिसके कारण इनके खिलाफ सीजेएम कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया गया है।
अतिक्रमण बना आपातकालीन स्थितियों में बड़ी चुनौती
सिविल अस्पताल और बलरामपुर अस्पताल के आसपास अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है। अस्पताल के प्रवेश द्वार और आसपास की सड़कों पर ठेले-खोमचे, ऑटो और ई-रिक्शा कतारबद्ध खड़े रहते हैं, जिससे आपातकालीन वाहनों का आना-जाना बाधित होता है। झलकारी बाई अस्पताल के सामने भी पार्किंग की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। यहां सड़क पर वाहन पार्क किए जाने से अक्सर जाम लग जाता है, जिसमें एम्बुलेंस तक फंस जाती हैं।
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से झांसी जैसी घटनाओं की आशंका
झांसी मेडिकल कॉलेज की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अस्पतालों में फायर सुरक्षा को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं है। लखनऊ के इन प्रमुख सरकारी अस्पतालों में भी सुरक्षा के मानकों की अनदेखी से बड़ी घटनाओं की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। कल को अगर राजधानी में कोई बड़ा हादसा ही जाए तो इस बात की जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार और प्रशासन को चाहिए कि अस्पतालों में फायर सुरक्षा के मानकों का सख्ती से पालन कराएं और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करें। वरना झांसी जैसे दर्दनाक हादसे बार-बार दोहराए जाएंगे।