Mukhtar Ansari: माफिया मुख्तार अंसारी का अंत हो चुका है. यह पूर्वांचल का वह नाम है जिसको लेने से बड़े-बड़े नेता और माफिया कांप जाया करते थे. यूपी में सरकार चाहे जिसकी रही हो,लेकिन 90 के दशक से लेकर साल 2017 माफिया की तूती बोलती थी. लेकिन सबसे हैरत करने वाली बात यह है कि माफिया मुख्तार अंसारी के परिवार के बारे में जब लोगों को पता चलता है तो लोगों का इस बात पर यकीन करना बहुत कठिन हो जाता है कि ये माफिया उसी परिवार से तालूकात रखता है. दरअसल, माफिया एक बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखता था.
कार्डियक अरेस्ट से हुई मौत
बता दे कि बीते दि बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई. जेल में तबीयत बिगड़ने के बाद गंभीर हालत में उन्हें दुर्गावती मेडिकल कॉलेज लाया गया था. जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. यूपी मनें सरकार चाहे जिसकी भी रही हो, लेकिन माफिया का रुतबा कायम ही रहा. माफिया मुख्तार मऊ की सदर सीट से मुख्तार अंसारी लगातार 5 बार विधायक रह चुका है. साल 2022 में छठवीं बार उसका बेटा विधायक बना. बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और मऊ दंगा समेत करीब 61 मुकदमे मुख्तार अंसारी पर दर्ज हैं, इनमें से कई में मुख्तार को सजा भी मिल चुकी थी.
इन शहरों में माफिया की तूती बोलती थी
यूपी की राजनीति तो बहुत ही अहम है, ये तो जगजाहिर है. यूपी में करीब दो दर्जन लोकसभा सीट और 120 विधानसभा सीटों पर माफिया मुख्तार का सीधा कहे या फिर आंशिक प्रभार माना जाता है. एक समय था जब वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर और मऊ में माफिया के नाम से ही लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते है.
आम लोगों और राजनेताओं के बीच माफिया का खासा दबदबा था. इन जगहों पर माफिया का इतना ज्यादा रुतबा था कि वोट के लिए लोगों को झुकना ही पड़ता था.मायावती ने तो मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा तक कह दिया था. मुख्तार ऐसा डॉन था कि जेल उसके लिए घर था, जेल में रहकर ही मुख्तार राजनीति करता था, चुनाव जीतता था और अपने गैंग का संचालन भी जेल से ही करता था.
कैसा रहा माफिया का राजनीतिक सफर?
बताते चले कि मुख्तार अंसारी का जन्म तो गाजीपुर में हुआ लेकिन उसकी कर्मस्थली मऊ रही. पहली बार साल 1996 में बसपा की टिकट पर मुख्तार मऊ की सदर सीट से विधायक बना और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मुख्तार ने मऊ को अपना गढ़ बनाया और लगातार पांच बार साल 2022 तक विधायक रहा.
बसपा से टिकट न मिलने के कारण मुख्तार ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की. मुख्तार ने कौमी एकता दल के नाम से खुद की पार्टी बनाई और फिर दो बार विधायक बना. साल 2017 में मुख्तार ने अपनी पार्टी का बसपा में विलय कर लिया और बसपा से चुनाव लड़ा. मोदी की लहर में भी मुख्तार ने जीत हासिल की. साल 2022 में मुख्तार ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया, जिसके बाद मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी मऊ की सदर सीट से विधायक बना.
कैसे लगी माफिया पर लगाम?
लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब इसकी तूती पर लगाम लगी. एक समय था जब लोग माफिया के साथ अपना नाम जोड़ने को बेताब रहते थे, लेकिन एक दौर आया जब लोग उस नाम के साथ अपना नाम जोड़ने में तकराने लगे. ये दौर तब आया जब यूपी में योगी की सरकार आई. योगी सरकरा आते ही माफिया मुख्तार पर इस कदर शिकंजा कसा गया कि लोग इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
जिस मुख्तार का नाम लेने पर ठेके खुल जाते थे, जिसका नाम लेकर अवैध वसूली की जाती थी आज सब बंद हो गया. 90 के दशक से शुरू हुआ मुख्तार रसूख साल 2017 तक ध्वस्त हो गया. साल 2024 तक मुख्तार गैंग के लगभग सभी गुर्गों को जेल भेज दिया गया या फिर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए. मुख्तार अंसारी की अब तक करीब 500 करोड़ की संपत्ति कुर्क की जा चुकी है. 30 जून 1963 को गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में जन्मे मुख्तार अंसारी की हृदय गति रुकने से बांदा मेडिकल कॉलेज में 28 मार्च को मृत्यु हो गई.
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