Maharashtra Politics: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति ने शानदार जीत हासिल की है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री पद को लेकर अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है। शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रमुख एकनाथ शिंदे ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री के चयन को लेकर जो भी फैसला भाजपा हाईकमान करेगा, उसे वे पूरी तरह से स्वीकार करेंगे। शिंदे ने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का निर्णय उनके लिए अंतिम होगा। हालांकि, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि शिंदे केंद्र की राजनीति से जुड़ने के इच्छुक नहीं हैं।
“मुझे दिल्ली क्यों भेजना चाहते हो?”
बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब मीडिया ने शिंदे से दिल्ली जाकर केंद्र में जिम्मेदारी संभालने के सवाल पर प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने हंसते हुए कहा, “भाई, मुझे दिल्ली क्यों भेजना चाहते हो?” इस बयान से साफ हो गया कि शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति से दूर नहीं जाना चाहते। उनका फोकस राज्य की राजनीति पर है, जहां वे अपनी पार्टी को और मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व शिंदे को केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय का प्रभार सौंपने की योजना बना रहा है। साथ ही, शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे को महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री पद दिए जाने की भी अटकलें हैं। हालांकि, शिंदे ने स्पष्ट कर दिया है कि वे राज्य की राजनीति से अलग नहीं होना चाहते।
पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिंदे की पार्टी ने 57 सीटें जीतकर बड़ी सफलता हासिल की है। हालांकि मुख्यमंत्री की कुर्सी न मिलने से पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति पैदा हो सकती है। शिंदे अब अपने संगठन को मजबूत और एकजुट बनाए रखने के प्रयास में जुटे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री पद न मिलने के बावजूद शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं।
बीएमसी चुनाव पर शिंदे की नजर
शिंदे की राज्य में सक्रिय रहने की इच्छा का एक मुख्य कारण आगामी निकाय चुनाव हैं। विशेष रूप से उनकी नजर मुंबई नगर निगम (बीएमसी) पर है, जिसे देश की सबसे अमीर महापालिका माना जाता है। बीएमसी का 60,000 करोड़ रुपये का बजट इसे रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। शिवसेना (उद्धव गुट) का बीएमसी पर लंबे समय से प्रभुत्व रहा है। शिंदे इस चुनाव के जरिए उद्धव ठाकरे को करारी चुनौती देने की योजना बना रहे हैं। 2022 से बीएमसी का प्रशासन प्रशासक के अधीन चल रहा है, और जल्द ही चुनाव कराए जाने की संभावना है।
शिंदे की रणनीति साफ है—बीएमसी चुनाव में अपनी पार्टी का दबदबा साबित करना। वे न केवल अधिक से अधिक सीटें जीतना चाहते हैं, बल्कि बीएमसी में भाजपा और अपने गुट का प्रभाव बढ़ाकर विपक्ष को कमजोर करना चाहते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि एकनाथ शिंदे की रणनीति स्पष्ट है। वे केंद्र की राजनीति के बजाय महाराष्ट्र में रहकर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं। शिंदे के लिए बीएमसी चुनाव और उनकी पार्टी को सशक्त करना प्राथमिकता है।
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सीएम पद का फैसला हाईकमान पर छोड़ा
एकनाथ शिंदे ने अपने बयान से यह तो साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री पद को लेकर अंतिम निर्णय भाजपा हाईकमान का होगा। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ और बीएमसी चुनावों पर फोकस यह दिखाता है कि शिंदे लंबे समय तक राज्य की राजनीति का अहम हिस्सा बने रहेंगे। महाराष्ट्र की सियासत में आने वाले दिनों में क्या बदलाव होंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।