लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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जानें प्रेम नगरी मथुरा का इतिहास
मथुरा जिसका नाम सुनते ही और लेते ही मन में प्रेम घुल जाता कान्हा और राधा की प्रेम की नगरी मधुरा वृद्धावन जो हमारी प्रेम की नगरी कही जाती हैं। मथुरा भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म, दर्शन कला और साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, चैतन्य महाप्रभु आदि से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है।
मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की प्राचीन नगरी है। पुराण कथा अनुसार शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। यह नगरी यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। मथुरा ऐतिहासिक रूप से कुषाण राजवंश द्वारा राजधानी के रूप में विकसित नगर है। वहीं लोगों का यह भी मानना है की उससे पूर्व भगवान कृष्ण के समय काल से भी पहले यानि की लगभग 7500 वर्ष से यह नगर अस्तित्व में है। यह धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
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इस नगरी को लेकर यह भी कहा जाता है कि वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहाँ लवणासुर की राजधानी बताई गई है। इस नगरी को इस प्रसंग में मधुदैत्य द्वारा बसाया गया है। लवणासुर, जिसको शत्रुघ्न ने युद्ध में हराकर मारा था इसी मधुदानव का पुत्र था। इससे मधुपुरी या मथुरा का रामायण-काल में बसाया जाना सूचित होता है। रामायण में इस नगरी की समृद्धि का वर्णन है। इस नगरी को लवणासुर ने भी सजाया संवारा था। प्राचीनकाल से अब तक इस नगर का अस्तित्व अखण्डित रूप से चला आ रहा है।
मथुरा को लेकर यह भी कहा जाता है कि मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर हैं- पूर्व दिशा में पिपलेश्वर का, दक्षिण दिशा में रंगेश्वर का और उत्तर दिशा में गोकर्णेश्वर का और पश्चिम दिशा में भूतेश्वर महादेव का मन्दिर है। चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण भगवान शिव को मथुरा का कोतवाल कहते हैं और इसी के चलते मथुरा को आदि वाराह भूतेश्वर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
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वहीं श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने श्री केशवदेवजी की मूर्ति स्थापित की थी पर औरंगजेब के काल में वह रजधाम में पधरा दी गई व औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ डाला और उसके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी। बाद में उस मस्जिद के पीछे नया केशवदेवजी का मंदिर बन गया है। प्राचीन केशव मंदिर के स्थान को केशवकटरा कहते हैं। खुदाई होने से यहाँ बहुत सी ऐतिहासिक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान ने कंस वध के पश्चात् यहीं विश्राम लिया था।
मथुरा की परिक्रमा और सप्तपुरियों की गाथा
भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक एकादशी और अक्षय नवमी को मथुरा की परिक्रमा होती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-गरुड गोविन्द-वृन्दावन की एक साथ परिक्रमा की जाती है। यह परिक्र्मा 21 कोसी या तीन वन की भी कही जाती है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को रात्रि में परिक्रमा की जाती है, जिसे वनविहार की परिक्रमा कहते हैं। श्री दाऊजी ने द्वारका से आकर, वसन्त ऋतु के दो मास व्रज में बिताकर जो वनविहार किया था तथा उस समय यमुनाजी को खींचा था, यह परिक्रमा उसी की स्मृति है।
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भारतवर्ष के सांस्कृतिक और आधात्मिक गौरव की आधारशिलाऐं इसकी सात महापुरियां हैं। ‘गरुडपुराण’ में इनके नाम इस क्रम से वर्णित हैं – इनमें मथुरा का स्थान अयोध्या के पश्चात अन्य पुरियों के पहिले रखा गया है। पदम पुराण में मथुरा का महत्व सर्वोपरि मानते हुए कहा गया है कि यद्यपि काशी आदि सभी पुरियाँ मोक्ष दायिनी है। यह पुरी देवताओं के लिये भी दुर्लभ है।
संगीत नगरी भी है ब्रज
मथुरा में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है, बांसुरी ब्रज का प्रमुख वाद्य यंत्र है, इसी को लेकर उन्हें ‘मुरलीधर’ और ‘वंशीधर’ आदि नामों से पुकारा जाता है। वर्तमान में भी ब्रज के लोक संगीत में ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज, एकतारा आदि वाद्य यंत्रों का प्रचलन है। 16 वीं शती से मथुरा में रास के वर्तमान रूप का प्रारम्भ हुआ। यहाँ सबसे पहले बल्लभाचार्य जी ने स्वामी हरदेव के सहयोग से विश्रांत घाट पर रास किया। रास ब्रज की अनोखी देन है, जिसमें संगीत के गीत गद्य तथा नृत्य का समिश्रण है।
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अष्टछाप के कवियों के समय ब्रज में संगीत की मधुरधारा प्रवाहित हुई। सूरदास, नन्ददास, कृष्णदास आदि स्वयं गायक थे। इन कवियों ने अपनी रचनाओं में विविध प्रकार के गीतों का अपार भण्डार भर दिया। तानसेन जैसे प्रसिद्ध संगीतज्ञ भी उनके शिष्य थे। सम्राट अकबर भी स्वामी जी के मधुर संगीत- गीतों को सुनने का लोभ संवरण न कर सका और इसके लिए भेष बदलकर उन्हें सुनने वृन्दावन आया करता था। मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, गोवर्धन लम्बे समय तक संगीत के केन्द्र बने रहे और यहाँ दूर से संगीत कला सीखने आते रहे।
वहीं अगर बात करें ब्रज के लोक गीत की तो ब्रज में अनेकानेक गायन शैलियां प्रचलित हैं और रसिया ब्रज की प्राचीनतम गायकी कला है। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से सम्बन्धित पद, रसिया आदि गायकी के साथ रासलीला का आयोजन होता है। श्रावण मास में महिलाओं द्वारा झूला झूलते समय गायी जाने वाली मल्हार गायकी का प्रादुर्भाव ब्रज से ही है। लोकसंगीत में रसिया, ढोला, आल्हा, लावणी, चौबोला, बहल–तबील, भगत आदि संगीत भी समय –समय पर सुनने को मिलता है। इसके अतिरिक्त ऋतु गीत, घरेलू गीत, सांस्कृतिक गीत समय–समय पर विभिन्न वर्गों में गाये जाते हैं।
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मथुरा से गोवर्धन तक दर्शनीय स्थल
- कृष्ण जन्म भूमि
- द्वारकाधीश मंदिर
- बाँकेबिहारी मंदिर
- श्री गरुड् गोविन्द मन्दिर, शाडान्ग वन (छटीकरा)
- शांतिकुंज
- बिडला मंदिर
- राधावल्लभ मंदिर
- ठकुरानी घाट
- नवनीतप्रिया जी का मंदिर
- रमण रेती
- 84 खम्बे
- बल्देव
- बह्मांड घाट महावन
- चिंताहरण महादेव महावन
- गोवर्धन
- जतीपुरा
- बरसाना
- नंदगाँव
- कामवन
- लोहवन
- कोकिलावन
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अन्य: निधिवन, रंगजी का मंदिर, गोविंद देव मंदिर व गीता मंदिर (बिड़ला मंदिर) आदि वृंदावन के प्रमुख मंदिर हैं। इनके अलावा मथुरा जिले के नंदगाँव, बरसाना व बलदेव के दाऊजी मंदिर का भी अपना विशेष महत्व है।
मथुरा के सांसद
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मथुरा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है।
1952- गिरराज सरण सिंह (निर्दलीय)
1957- राजा महेन्द्र प्रताप सिंह (निर्दलीय)
1962- चौधरी दिगम्बर सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1967- गिरराज सरण सिंह (निर्दलीय)
1971- चकलेश्वर सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977- मनीराम बागड़ी (भारतीय लोक दल)
1980- चौधरी दिगम्बर सिंह (जनता पार्टी -धर्मनिरपेक्ष)
1984- मानवेन्द्र सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989- मानवेन्द्र सिंह (जनता दल)
1991- स्वामी साक्षी जी (भारतीय जनता पार्टी)
1996- चौधरी तेजवीर सिंह (भारतीय जनता पार्टी)
1998- चौधरी तेजवीर सिंह (भारतीय जनता पार्टी)
1999- चौधरी तेजवीर सिंह (भारतीय जनता पार्टी)
2004- मानवेन्द्र सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2009- जयंत चौधरी (राष्ट्रीय लोक दल)
2014- हेमा मालिनी (भारतीय जनता पार्टी)
2019- हेमा मालिनी (भारतीय जनता पार्टी)
मथुरा का राजनीतिक सफर
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भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में एक हॉट सीट है जिसे एक ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थल के लिए जाना जाता है। मथुरा लोकसभा सीट पर शुरू में कांग्रेस पार्टी का कब्ज़ा रहा। मगर बीते दो दशक से भारतीय जनता पार्टी मथुरा लोकसभा सीट पर परचम लहरा रही है। वहीं बीजेपी से जीत कर वतर्मान में बीजेपी की हेमा मालिनी मथुरा से सांसद हैं।
मथुरा सीट पर आजादी के बाद पहली बार 1952 में लोकसभा के चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की। आपको बतादें कि मथुरा के पहले दो चुनावों में निर्दलीय उमीदवाओं ने ही जीत हासिल की। जिसके बाद 1962 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के चौधरी दिगम्बर सिंह ने जीत हासिल की। 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस पार्टी ने मथुरा से विजय हासिल की। 1989 में जनता दल के प्रत्याशी ने मथुरा का मैदान मारा।
उसके बाद लगातार 1991, 1996, 1998 और 1999 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मथुरा सीट पर अपना कब्ज़ा जमाया। 2004 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर वापसी की और कांग्रेस पार्टी से मानवेन्द्र सिंह ने जीत दिलाई थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी रालोद के जयंत चौधरी ने बड़ी जीत हासिल की। इसके बाद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अभिनेत्री हेमा मालिनी ने बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की।
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अटल बिहारी वाजपेयी की जब्त हुई थी जमानत
1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक सदस्य रहे दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश की मथुरा और बलरामपुर सीट नामांकन दाखिल किया। चुनाव नतीजों में अटल बिहारी बलरामपुर सीट जीतने में कामयाब रहे लेकिन मथुरा सीट पर जमानत भी जब्त हो गयी। उस चुनाव में मथुरा में कांग्रेस और जनसंघ के उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए स्वतंत्र रूप से लड़े राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की थी।
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मथुरा का जातीय समीकरण
मथुरा लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो मथुरा वेस्टर्न यूपी में आती है। वहीं इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व माना जाता है। लोकसभा चुनाव को लेकर मथुरा के जातीय समीकरण तो लेकर यह भी कहा जाता है कि 2014 में इस सीट के जाट और मुस्लिम वोट अलग-अलग बंट गए थे, जिसका फायदा बीजेपी को हुआ। वहीं इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव आती हैं। यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में मांट सीट पर बीएसपी को जीत मिली थी, जबकि बाकी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।