Kapil Sibal slams Himanta Sarma: राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa) के एक विवादास्पद बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. कपिल सिब्बल ने हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणी को ‘शुद्ध सांप्रदायिक जहर’ करार दिया और कहा कि ऐसे बयान का चुप रहकर जवाब नहीं दिया जा सकता. दरअसल, यह विवाद तब शुरू हुआ जब हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि ‘मिया मुसलमानों को असम पर कब्जा नहीं करने देंगे’, जो कि भारतीय राजनीति में एक गंभीर और विभाजनकारी टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है.
क्या कहा था हिमंत बिस्वा सरमा ने?
बता दे कि हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa) ने मंगलवार को असम विधानसभा में बोलते हुए यह टिप्पणी की थी. वह नागांव जिले में एक 14 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले पर विपक्ष द्वारा उठाए गए कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे. हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, “हम मिया मुसलमानों को असम पर कब्जा नहीं करने देंगे.” यह बयान विधानसभा में स्थगन प्रस्तावों की स्वीकार्यता पर बोलते हुए दिया गया, जिससे राज्य की राजनीति में एक नया विवाद पैदा हो गया.
कपिल सिब्बल का तीखा हमला
इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने कहा, “हिमंत का ‘मिया मुसलमानों’ वाला बयान शुद्ध सांप्रदायिक जहर है और यह कार्रवाई योग्य है. चुप रहना कोई जवाब नहीं है.” कपिल सिब्बल का यह बयान न केवल हिमंत सरमा के बयान की निंदा करता है, बल्कि इसके सांप्रदायिक प्रभावों की ओर भी इशारा करता है.
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‘मिया’ शब्द का सांप्रदायिक महत्व
आपको बता दे कि ‘मिया’ शब्द का उपयोग असम में विशेष रूप से बंगाली बोलने वाले मुसलमानों के संदर्भ में किया जाता है. शुरुआत में, यह शब्द एक अपमानजनक तरीके से इस्तेमाल किया जाता था और गैर-बंगाली भाषी लोग इसे बंगाली मूल के मुसलमानों को ‘बांग्लादेशी अप्रवासी’ कहकर अपमानित करते थे. हालांकि, हाल के वर्षों में, इस समुदाय के कार्यकर्ताओं ने इस शब्द को अपनाया है और इसे अपने पहचान के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया है. इस शब्द का सांप्रदायिक महत्व इसे और भी विवादास्पद बनाता है, खासकर जब यह एक मुख्यमंत्री द्वारा उपयोग किया जाता है.
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और इसका असर
हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa) के इस बयान के बाद, असम और देश भर में राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है. विपक्षी दलों ने इस बयान को नफरत फैलाने वाला और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाला करार दिया है. सिब्बल (Kapil Sibal) के अलावा, कई अन्य राजनीतिक नेताओं ने भी इस पर अपनी चिंता व्यक्त की है। कुछ ने तो इसे भारत की धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता के खिलाफ एक सीधा हमला माना है.
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राजनीति में सांप्रदायिक बयानबाजी का असर
हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa) के इस बयान ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक बयानबाजी का स्थान क्या होना चाहिए. क्या यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा नहीं है? क्या ऐसे बयान समाज को विभाजित नहीं करते? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या इस तरह के बयान राजनीतिक लाभ के लिए दिए जाते हैं, या इनका कोई और उद्देश्य होता है?
कपिल सिब्बल ने की कड़ी कार्रवाई की मांग
कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa) के बयान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है. उनका कहना है कि ऐसे बयान केवल विभाजनकारी नहीं होते, बल्कि वे देश की धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे के लिए भी खतरा हैं.कपिल सिब्बल का यह भी मानना है कि इस तरह के बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, और इसके खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिए.
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