Haryana Election Results: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के (Haryana Election Results) नतीजे आज शाम को साफ हो गए है नतीजे भारतीय जनता पार्टी के हक में आये है। बीजेपी इस बार फिर से सरकार बना ली है। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा था, इसलिए यह विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए साख की लड़ाई बन गया था। इस चुनाव में बीजेपी की संभावित जीत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की कड़ी मेहनत है।
आरएसएस की मेहनत से बदले समीकरण
हरियाणा चुनाव में आरएसएस ने जमीनी स्तर पर व्यापक अभियान चलाया, जिसने चुनाव के नतीजों को भाजपा के पक्ष में मोड़ने में अहम भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अन्य भाजपा नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियों के साथ-साथ आरएसएस ने चुपचाप हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में मतदाताओं को साधने का काम किया। RSS ने पिछले चार महीनों में राज्य में 16,000 से अधिक छोटी सभाएं आयोजित कीं, जिनके जरिए गैर-जाट मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में एकजुट करने का प्रयास किया गया। यह संगठन पारंपरिक तौर-तरीकों से आगे बढ़ते हुए इस बार सार्वजनिक स्थलों और घर-घर जाकर सरकार की नीतियों के बारे में मतदाताओं को जागरूक कर रहा था।
गहनता से किया गया बूथ प्रबंधन का कार्य
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और आरएसएस के बीच कई महत्वपूर्ण बैठकें हुईं, जिनमें उम्मीदवारों के चयन से लेकर बूथ स्तर तक के प्रबंधन पर चर्चा की गई। इस चुनाव में आरएसएस ने खासतौर पर उन सीटों पर ध्यान केंद्रित किया जहां बीजेपी की स्थिति कमजोर थी। संघ के कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर सक्रिय रहते हुए पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया। इसके साथ ही, आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) ने चुनाव से ठीक पहले हिंदू समाज को एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने जाति, भाषा और प्रांत के मतभेदों को भुलाकर एकता की अपील की, जिसका सकारात्मक असर चुनाव पर देखने को मिला। भागवत के इस संदेश ने विशेष रूप से भाजपा के परंपरागत मतदाताओं में उत्साह भरा और उन्हें एकजुट किया।
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गैर-जाट मतदाताओं को साधने की रणनीति अपनायी
इस चुनाव में आरएसएस ने जिस तरह से गैर-जाट मतदाताओं पर फोकस किया, वह बीजेपी के लिए एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। हरियाणा की राजनीति में जाट और गैर-जाट विभाजन हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, और बीजेपी ने इस चुनाव में गैर-जाट मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए हर संभव प्रयास किया। आरएसएस की छोटी-छोटी सभाओं और स्थानीय स्तर पर की गई जनसंपर्क की रणनीति ने गैर-जाट मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में मोड़ा, जिसका परिणाम रुझानों में साफ देखा जा सकता है। यह रणनीति इसलिए भी अहम रही क्योंकि जाट मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा पारंपरिक रूप से कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों का समर्थन करता रहा है।
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केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों का किया प्रचार
आरएसएस ने इस बार प्रचार के दौरान केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को भी जोर-शोर से उठाया। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोक कल्याणकारी योजनाएं, जैसे उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, और किसान सम्मान निधि, को जनता के बीच प्रमुखता से रखा गया। इन योजनाओं का लाभ प्राप्त करने वाले मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया गया। साथ ही, हरियाणा सरकार की विकास परियोजनाओं और प्रशासनिक सुधारों को भी आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने लोगों तक पहुंचाया। इस तरह, संघ ने सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने में एक पुल का काम किया, जिससे बीजेपी को बड़ा लाभ मिला।
मोहन भागवत का एकजुटता का आह्वान
चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान भी खासा प्रभावी साबित हुआ। भागवत ने हिंदू समाज से अपील की थी कि वे अपने बीच के मतभेदों को भुलाकर एकजुट हों और समाज की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाषा, जाति और प्रांत के नाम पर बंटवारे से सिर्फ नुकसान होता है, और समाज को इन विवादों से ऊपर उठकर अपनी एकता की ताकत दिखानी होगी। भागवत के इस आह्वान ने भाजपा के पक्ष में मतदाताओं को और अधिक संगठित किया और पार्टी की जीत की संभावनाओं को मजबूत किया। हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बढ़त का सबसे बड़ा कारण आरएसएस और भाजपा का संयुक्त प्रयास है। आरएसएस के जमीनी स्तर पर किए गए काम और भाजपा के शीर्ष नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियों ने मिलकर चुनावी समीकरण को बीजेपी के पक्ष में कर दिया।