One Nation One Election: केंद्र सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर शुक्रवार यानि आज बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार ने 18-22 सितम्बर को संसद का विशेष सत्र बुलाया है। बता दे कि सरकार ने इसको लेकर एक कमेटी का गठन किया है, कमेटी के सदस्यों को लेकर थोड़ी देर में नोटिफिकेश जारी किया जाएगा। वहीं पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है।
बताते चले कि केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर बड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेठी गठित की है, इस कमेटी का मकसद एक देश एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर गौर करेंगी। वहीं मिली जानकारी कि माने तो एक देश, एक चुनाव पर सरकार बिल ला सकती है। पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी कानून के सभी पहलुओं पर विचार करेगी और एक देश, एक चुनाव की संभावना का पता लगाएगी, साथ ही कमेटी लोगों की राय भी लेगी।
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फिलहाल पैनल में और कौन शामिल होंगे, इस बारे में अभी जानकारी सामने नहीं आई है। वहीं सदस्यों के बारे में अधिसूचना बाद में जारी की जाएगी। वन नेशन, वन इलेक्शन के विचार का मतलब देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने से है। फिलहाल ‘एक देश, एक चुनाव’ कमेटी गठन को लेकर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने निशाना साधा है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘एक देश, एक चुनाव पर केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं है। अभी इसकी जरूरत नहीं है। पहले बेरोजगारी और महंगाई का निदान होना चाहिए।’
संसद का विशेष सत्र
आपको बता दे कि केंद्र सरकार की ओर से 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। चर्चा है कि इस सत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ पर सरकार बिल (One Nation One Election Bill) ला सकती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को इस मुद्दे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। मुंबई में विपक्षी गठबंधन इंडिया में हिस्सा लेने पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे से सवाल किया गया कि सरकार स्पेशल सेशन बुला रही है और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल ला सकती है। इस पर उन्होंने कहा, ‘उन्हें लाने दीजिए, लड़ाई जारी रहेगी।” इससे पहले टीएमसी चीफ ममता बनर्जी समेत कई विपक्षी नेता समय से पहले लोकसभा चुनाव होने की आशंका जता चुके हैं।
जानें एक साथ कब हुए देश में लोकसभा और विधानसभा
आपको बता दें कि एक देश-एक चुनाव का मतलब है कि देश में सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं। देश की आजादी के बाद कुछ समय तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन बाद में इस प्रथा को खत्म कर दिया गया और विधानसभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग होने लगे।
देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसके तहत चार बार चुनाव हुए। 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे चेन टूट गई। साल 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए गए थे।
आगामी विशेष सत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के 9 वर्षों का पहला ऐसा विशेष सत्र होगा। इसके पहले 30 जून 2017 को जीएसटी लागू करने के लिए आधी रात को लोकसभा और राज्यसभा की विशेष संयुक्त बैठक बुलाई गई थी। 18 सितम्बर से बुलाया गया ये पांच दिनों का पूर्ण सत्र होगा, जिसमें पांच बैठकें होंगी। इसमें दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की अलग-अलग बैठकें होंगी, जैसे सामान्य सत्र के दौरान होती हैं।
बीजेपी के एजेंडे में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’
वन नेशन, वन इलेक्शन का मुद्दा बीजेपी के एजेंडे में रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता कई मौकों पर एक देश, एक चुनाव को लेकर बोल चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में भी ये शामिल रहा था। “बीजेपी अपराधियों को खत्म करने के लिए चुनाव सुधार शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है। बीजेपी अन्य दलों के साथ परामर्श के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की पद्धति विकसित करने की कोशिश करेगी। चुनाव खर्चों को कम करने के अलावा राजनीतिक दलों और सरकार दोनों के लिए, यह राज्य सरकारों के लिए कुछ स्थिरता सुनिश्चित करेगा। हम खर्च सीमा को वास्तविक रूप से संशोधित करने पर भी विचार करेंगे।”
जानें एक साथ चुनाव होने से क्या होगा फायदा
देश में अगर लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे खर्चा कम होगा। चुनाव की वजह से प्रशासनिक अधिकारी भी व्यस्त रहते हैं, उन्हें भी इस काम से निजात मिलेगी और अन्य काम पर फोकस कर सकेंगे। आंकड़े के मुताबिक, जब देश में पहली बार चुनाव हुए थे, उस वक्त तकरीबन 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। 17वीं लोकसभा में 60 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब लोकसभा चुनाव में इतने पैसे खर्च हुए तो विधानसभा चुनावों में कितने पैसे खर्च होते होंगे।
एक देश, एक चुनाव के पीछे उद्देश्य
लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने को लेकर तर्क दिया जाता है कि इससे पूरे देश में एक पार्टी का वर्चस्व कायम रहेगा, जो अन्य राजनीतिक दलों के खतरनाक सिद्ध होगा। इससे कई दलों पर संकट मंडरा सकता है और एक साथ चुनाव कराए जाने के परिणाम आने में काफी वक्त लगेगा।