Ajmer: राजस्थान (Rajasthan) के अजमेर (Ajmer) में 1992 में हुए सबसे बड़े ब्लैकमेल और गैंगरेप कांड के मामले में बचे हुए 6 आरोपियों को अदालत ने दोषी ठहराया है. आज दोपहर 2 बजे कोर्ट ने इन सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, साथ ही प्रत्येक पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है. दोषी ठहराए गए आरोपियों में नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी, और सैयद जमीर हुसैन शामिल हैं.
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1992 का भयावह ब्लैकमेल कांड
आपको बता दे कि यह मामला 1992 में अजमेर में घटित हुआ था, जहां एक गैंग ने स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाली लगभग 250 लड़कियों की नग्न तस्वीरें प्राप्त की थीं. इन तस्वीरों को सार्वजनिक करने की धमकी देकर गैंग ने 100 से अधिक छात्राओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. इस गिरोह के सदस्य स्कूलों की छात्राओं को फार्महाउस पर बुलाते और उनके साथ अमानवीय कृत्य करते थे. इन स्कूलों में अजमेर के प्रतिष्ठित निजी स्कूल भी शामिल थे. इस घिनौने कृत्य का खुलासा तब हुआ जब एक स्थानीय अखबार ने इस घटना की रिपोर्ट प्रकाशित की, जिससे पूरा मामला सार्वजनिक हो गया. इस घटना की शिकार लड़कियों की उम्र उस समय 11 से 20 साल के बीच थी.
पहले भी हो चुकी है सजा
बताते चले कि इस मामले में कुल 12 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की थी. इनमें से 4 आरोपी पहले ही अपनी सजा काट चुके हैं. कोर्ट के फैसले को लेकर अजमेर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे, और कोर्ट के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था.
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पुलिस ने 12 आरोपियों को गिरफ्तार किया था
पुलिस ने इस मामले में 12 आरोपियों – कैलाश सोनी, हरीश तोलानी, फारुख चिश्ती, इशरत अली, मोइजुल्लाह उर्फ पूतन इलाहाबादी, परवेज अंसारी, नसीम उर्फ टारजन, पुरुषोत्तम उर्फ बबली, महेश लुधानी, अनवर चिश्ती, शम्सू उर्फ माराडोना, और जहूर चिश्ती को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने 30 नवंबर 1992 को अजमेर की DJ कोर्ट में पहली चार्जशीट 8 आरोपियों के खिलाफ पेश की थी. इसके बाद 4 अन्य आरोपियों के खिलाफ 4 अलग-अलग चार्जशीट दाखिल की गईं। हालांकि, पुलिस ने जांच के दौरान कुछ महत्वपूर्ण गलतियां कीं, जिसके कारण यह मामला 32 सालों तक न्यायालय में लंबित रहा.
अंततः मिली न्याय की राह
अब, 32 सालों के लम्बे इंतजार के बाद, अदालत ने शेष बचे 6 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई है. इस फैसले से पीड़ितों और उनके परिवारों को कुछ हद तक न्याय की अनुभूति हो सकती है. हालांकि, इस केस में देरी ने न्याय प्रणाली की कमजोरियों को भी उजागर किया है, जिससे भविष्य में ऐसे मामलों को तेजी से निपटाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है.
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