One Nation One Election Issue: ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने उच्च स्तरीय समिति को एक पत्र लिखा है. इस बात की जानकारी उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स के जरिए दी है. लेकिन आखिर उन्होंने पत्र में लिखा क्या है. तो आपको बता दे कि उन्होंने अपने पोस्ट में कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन भारतीय लोकतंत्र और संघवाद के लिए एक आपदा होगा.
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उच्च स्तरीय समिति के सचिव नितेन चंद्र को पत्र लिखा
असदुद्दीन ओवैसी ने वन नेशन वन इलेक्शन पर उच्च स्तरीय समिति के सचिव नितेन चंद्र को संबोधित करते हुए पत्र में लिखा, ”मैं संसद सदस्य और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष के रूप में एक राष्ट्र एक चुनाव के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए आपको लिख रहा हूं. मैंने संवैधानिक कानून पर आधारित प्रस्ताव पर अपनी ठोस आपत्तियां संलग्न कर दी हैं. इन्हीं आपत्तियों से 27 जून, 2018 को भारत के विधि आयोग को भी अवगत कराया गया था, जब उसने इस मुद्दे पर सुझाव मांगे थे.”
ऐसा कदम उठाने की आवश्यकता क्यों..
आपको बता दे कि असदुद्दीन ओवैसी ने लिखा, ”यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरी आपत्तियां – प्रारंभिक और मूल दोनों – एचएलसी के समक्ष दोहरानी पड़ेंगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस मुद्दे पर हर परामर्श ने लोकतंत्र में कानून बनाने की पहली आवश्यकता को नजरअंदाज कर दिया है, यह उचित ठहराते हुए कि नीति क्यों बनाई जानी चाहिए. सरकार की ओर से कोई औचित्य नहीं दिया गया है न तो संसदीय स्थायी समिति, नीति आयोग या विधि आयोग ने यह प्रदर्शित किया है कि ऐसा कदम उठाने की आवश्यकता क्यों है इसके बजाय चर्चा इस बात पर केंद्रित है कि इसे कैसे लागू किया जा सकता है.”
प्रशासनिक ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया
ओवैसी ने लिखा, ”दुर्भाग्य से एचएलसी की संदर्भ शर्तों में भी वही दोष मौजूद है. स्थायी आधार पर एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उचित कानूनी और प्रशासनिक ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पता नहीं लगाया गया है कि क्या भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में ऐसे मूलभूत परिवर्तन संवैधानिक रूप से स्वीकार्य हैं. यह किसी समस्या की खोज में एक समाधान है.
मैं दोहराना चाहूंगा कि चुनाव महज औपचारिकता नहीं..
एआईएमआईएम प्रमुख ने लिखा, ”मैं दोहराना चाहूंगा कि चुनाव महज औपचारिकता नहीं है. मतदाता रबर स्टांप नहीं हैं. चुनावी लोकतंत्र वह स्तंभ है जिस पर भारत का संवैधानिक भवन खड़ा है. चुनाव प्रशासनिक सुविधा या आर्थिक व्यवहार्यता जैसे कमजोर विचारों के अधीन नहीं हो सकते. अगर संवैधानिक आवश्यकताएं वित्तीय या प्रशासनिक विचारों के अधीन होतीं तो इसके बेतुके परिणाम होते. क्या किसी को लागत के कारण स्थायी सिविल सेवाओं या पुलिस को खत्म कर देना चाहिए? क्या लंबित मामलों के कारण जजों की भर्ती बंद कर देनी चाहिए?”
अंत में उन्होंने लिखा, ”मैं एचएलसी से इस निष्कर्ष को विधिवत दर्ज करने का आग्रह करता हूं कि एक साथ चुनाव न तो संवैधानिक रूप से स्वीकार्य हैं, न ही आवश्यक हैं, न ही व्यवहार्य हैं.”
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