गाजियाबाद संवाददाता : प्रवीन मिश्रा
गाजियाबाद : 30 अगस्त को जहां पूरा देश रक्षाबंधन का त्यौहार मना रहा होगा और हर भाई की कलाई पर बहन पवित्र धागा बंधेगी। वहीं भाई भी उसे धागे का वचन निभाते हुए बहन की रक्षा का वादा करेगा। लेकिन दिल्ली के पास गाजियाबाद में एक ऐसा गांव है जहां भाइयों की कलाई सुनी रहेगी और रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाएगा। इस गांव में सैकड़ो वर्षों से यह त्यौहार नहीं मनाया गया है। अगर गलती से कोई इस त्यौहार को मना लेता है तो माना जाता है कि अपशगुन हो जाएगा। आईए जानते हैं यह गांव कौन सा है और क्यों यहां पर सैकड़ो वर्षों से रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता।
शहर की आबादी से दूर गांव
दिल्ली से सटे गाजियाबाद के मुरादनगर से भी कई किलोमीटर की दूरी पर बसा है गांव सुराना। यहां हर साल रक्षाबंधन के त्योहार से पहले ही एक गम का माहौल होता है। इलाके में कोई रौनक नहीं होती। क्योंकि यहां पर भाई-बहन का यह खूबसूरत त्यौहार नहीं मनाया जाता है। सैकड़ो वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। इस अनोखी परंपरा की वजह बेहद चौंकाने वाली है।
हाथियों से कुचलवा दिया
गांव की प्रधान रेनू यादव ने बताया कि 12वीं सदी में यहां कुछ ऐसा हुआ था जिसकी वजह से भाई बहन के बीच के रिश्ते का यह खूबसूरत त्यौहार रक्षाबंधन या नहीं मनाया जाता है। बताया जाता है कि उस समय के शासक मोहम्मद गौरी ने गांव का लगान बढ़ा दिया था और जब उसे मनचाहा लगान नहीं मिला तो उसने यहां रहने वाले हर व्यक्ति को हाथियों से कुचलवा दिया था।
गांव में हुई थी अनहोनी
वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। जब मोहम्मद गौरी पूरे गांव का अस्तित्व खत्म करना चाहता था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। हालांकि उसके बाद से कभी भी गांव वासियों ने रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया। क्योंकि इसे अपशगुन माना जाने लगा। अगर किसी ने रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की कोशिश की तो गांव में अनहोनी हो गई।
रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते
गांव के सभी लोग इस प्रथा को मानते हैं और रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं। आज की पीढ़ी के बच्चे अपने माता-पिता से पूछते हैं कि हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते तो उन्हें भी यही बात बताई जाती है। बच्चे काफी ज्यादा निराश हो जाते हैं। बच्चों से भी हमने बात की। उनका कहना है कि रक्षाबंधन का त्योहार मनाना चाहते हैं लेकिन जैसा पूर्वज और उनके बड़े कह रहे हैं वह उसे पर चलते हैं।
ऐसे बचा था गांव का अस्तित्व
गांव के पुरोहित ने बताया कि गांव का अस्तित्व इस तरह से बचा था। दरअसल जिस समय मोहम्मद गौरी ने सभी लोगों को हाथी से कुचलवा दिया था उस समय गांव की एक गर्भवती महिला अपने मायके गई हुई थी और बाद में महिला ने दो बच्चों को जन्म दिया। इसके बाद धीरे-धीरे गांव फिर से अस्तित्व में आया जिसका नाम सुराना रखा गया। पहले गांव का नाम सुराना नहीं था। पहले गांव को सोहनगढ़ के नाम से पहचानते थे।