देश में नारी शक्ति एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे लेकर सरकार हमेशा से यही कोशिश कर रही है कि पुरूष – महिला को भारत देश में सम्मान अधिकार मिले पर आज भी देखा जाए तो 50% तक महिलाओं को अपना अधिकार नही मिल पाता है अपने अधिकार के लिए आज भी लड़ती है देखा जाए तो कई महिलाए अपने अधिकार को पाने के लिए खुदखुशी तक कर लेती है जिसे देखते हुए सरकार कई योजनाए लाए वही आपको बता दें पुरूष –महिला को सम्मान अधिकार के लिए 26 अगस्त को Women’s Equality Day जैसे योजनाए लागू किया गया इस दिन को मनाने की शुरुआत तब हुई जब एक देश में महिलाओं को मतदान का अधिकार तक नहीं था।लेकिन आज भी लोगों के मन में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए दोहरी मानसिकता होती है।समाज में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर के अधिक नहीं मिलते हैं। हालांकि दुनियाभर में महिलाओं को समान अधिकार और स्थान दिलाए जाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। देश में लैंगिक समानता लाने का प्रयास करते हुए हाल ही में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने चार महिला सदस्यों (50 फीसदी) को उपाध्यक्षों के पैनम में नामित किया
कब मनाते हैं महिला समानता दिवस
महिला समानता दिवस हर साल 26 अगस्त को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1920 के बाद से हुई।
महिला समानता दिवस का इतिहास
महिला समानता दिवस पहली बार अमेरिका में मनाया गया। महिला अधिकारों की लड़ाई अमेरिका में 1853 से शुरू हुई। 50 साल तक महिला समानता की मांग को लेकर हुए आंदोलन का अंत 1920 में हुआ, जब महिलाओं को अधिकार मिलने शुरू हुई। उसके बाद से इस दिन को महिला समानता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा।
महिला समानता दिवस मनाने की वजह
अमेरिका में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था। इसके अलावा विवाहित महिलाओं ने संपत्ति के अधिकार की मांग भी शुरू कर दी थी। अधिकारों की मांग को लेकर चले आंदोलन का अंत 26 अगस्त 1920 के दिन वोटिंग का अधिकार मिलने से साथ हुआ।
भारत में महिलाओं को वोट करने का अधिकार ब्रिटिश शासन काल में ही मिल गया था। पहले अमेरिका और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा।
महिला समानता दिवस की थीम
इस साल महिला समानता दिवस 2023 की थीम ‘Embrace Quality’ है यानी समानता को अपनाओ। यह थीम 2021-26 रणनीतिक योजना का हिस्सा बनी हुई है। यह विषय लैंगिक समानता हासिल करने की जरूरत पर प्रकाश डालता है, जो न केवल आर्थिक विकास के लिए बल्कि मौलिक मानवाधिकारों के लिए भी आवश्यक है।