UP Board Exam 2025: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक घटना सामने आई है, जहाँ दसवीं की परीक्षा देने आईं कुछ मुस्लिम छात्राओं को परीक्षा केंद्र पर हिजाब हटाने को कहा गया। इस आदेश के बाद छात्राओं ने हिजाब उतारने से इंकार करते हुए परीक्षा छोड़ दी। उनका कहना था कि वे परीक्षा तो नहीं देंगी, लेकिन हिजाब नहीं उतारेंगी। यह मामला अब चर्चा का विषय बन गया है।
परीक्षा केंद्र पर हिजाब उतारने का आदेश

जौनपुर के खेतासराय इलाके के मॉडर्न कॉन्वेंट स्कूल का परीक्षा केंद्र सर्वोदय इंटर कॉलेज में स्थित था। जब छात्राएं परीक्षा देने आईं, तो उनसे गेट पर चेकिंग के दौरान हिजाब उतारने को कहा गया। कुछ छात्राओं ने बिना हिजाब हटाए परीक्षा देने का निर्णय लिया, लेकिन कुछ ने इसे सिरे से नकार दिया और परीक्षा छोड़ दी।
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परीक्षा देने पर अड़ गईं छात्राएं

इस दौरान चार मुस्लिम छात्राएं हिजाब हटाने से इंकार करते हुए परीक्षा देने के बजाय वापस घर लौट गईं। इस पर एक छात्रा के पिता अहमदुल्लाह परीक्षा केंद्र पर पहुंचे और कारण जानने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि जब उन्हें बताया गया कि वेरिफिकेशन के लिए हिजाब हटाना अनिवार्य है, तो उन्होंने साफ कह दिया कि अगर उनकी बेटियों को हिजाब पहनने के बावजूद परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो वे उन्हें वापस भेज देंगे।
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कांग्रेस का बयान
इस घटना पर यूपी कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस ने लिखा, “यह किस नियम में लिखा हुआ है कि हिजाब पहनकर परीक्षा नहीं दी जा सकती? सरकार और सरकारी नुमाइंदों को अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने का बहाना चाहिए होता है बस! अब इन बच्चियों के एक साल के नुकसान की भरपाई कौन करेगा?”
धार्मिक संवेदनशीलता और परीक्षा के नियम

यह मामला केवल परीक्षा केंद्र के नियमों और धार्मिक संवेदनशीलता का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसे एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न के रूप में देखा जा रहा है। जहां कुछ लोगों का मानना है कि हिजाब एक धार्मिक प्रतीक है और इसे हटाना छात्राओं के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, वहीं दूसरी ओर कुछ का कहना है कि परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा और वेरिफिकेशन के कारण यह नियम लागू करना जरूरी होता है।
भविष्य में क्या होगा?
यह घटना उत्तर प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में और धार्मिक धारा के बीच सामंजस्य बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। शिक्षा संस्थाओं को इस प्रकार के मामलों को समझदारी से सुलझाना होगा, ताकि छात्र-छात्राओं का भविष्य प्रभावित न हो और सभी का धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी सुरक्षित रहे।