रायबरेली संवाददाता- बलवंत सिंह
रायबरेली: जहां एक ओर सरकारी पर्यावरण संरक्षण प्रदान करने के लिए हर जतन कर रही है। ताकि पर्यावरण संतुलन बने रहे। सभी लेकर सरकार पानी की तरह रूपा बहाकर लगातार नामांकन एवं जागरूकता अभियान चला रही है। ग्रीन यूपी, क्लीन यूपी बनाने के लिए सरकार सभी से आरक्षण की अपील कर रही है।चर्चा है कि वन विभाग और पुलिस के कुछ कर्मचारी साठगांठ से वन माफिया बेखौफ को प्रतिबंधित कर हरे पेड़ों पर आरा चला रहे हैं। जिसका जीता जगता उदाहरण डलमऊ तहसील क्षेत्र में देखा जा सकता है।
हैडलैल से हो रही पेड़ों की कटान…
जहां फलदार एवं हरे नीम,आम, के पेड़ों की कटान जोरो पर हो रही है। लेकिन आलम यह है कि डलमऊ तहसील क्षेत्र में बिल्कुल स्वस्थ्य हरे पूर्ण मोटे-मोटे आम,गूलर, महुआ,नीम, के पेड़ काटे जा चुके हैं।वन माफियाओं को ना तो वन विभाग को खतरा है और ना ही पुलिस का डर। लोगों का कहना है कि हैडलैल से हो रही पेड़ों की कटान कहीं और नहीं वन रक्षकों की भावना की ओर संकेत करती है। कोविड-19 संकटकाल में पड़े ऑक्सीजन के काल के बाद भी हो रही पेड़ की कटान चिंता का विषय बनी हुई है। डलमऊ तहसील क्षेत्र के ऐसे दर्जनों गांव हैं, जहां पर वन विभाग के मिली भगत से धड़ल्ले से सैकड़ों हरे प्रतिबंधित पेड़ों को वन माफियाओं द्वारा निशाना बनाया गया है।
वन परिक्षेत्र में तैनात वन प्रहरी स्वार्थ…
जिसके साक्ष्य मौजूद है।बड़े ही गैर जिम्मेदार है,वन विभाग में पदस्थ अधिकारी क्योंकि बरिष्ठ अपने अपने आफिस में बैठ कर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर लेते हैं,वन परिक्षेत्र में तैनात वन प्रहरी स्वार्थ के वसीभूत होने की वजह से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर पा रहे और नाहीं किसी पर कार्रवाई कर पा रहे हैं?, ऐसा लगता है हालत देखकर के जैसे इन्होने कसम खा ली है प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों को संरक्षण देने की अगर यही हालात आगे भी जारी रहे तो थोड़ा बहुत पेड़ बचे हुऐ हैं वह भी इनके स्वार्थ की भेंट चढ़ जायेंगे। लेकिन इनके स्वार्थ की पूर्ति कभी नहीं हो पायेगी क्योंकि रक्षक ही भक्षक जो बने हुऐ हैं।
जंगलों के नाम रह जायेगा और जंगल खत्म हो जायेंगे…
वन परिक्षेत्र की मिट्टी और पत्थर तो बिक ही रहा था लेकिन अब पेड़ों नं भी लग चुका है। क्योंकि जिस तरह से वन परिक्षेत्र से पेड़ों की कटाई चल रही उसे देखकर ऐसा लगता है कि वह दिन भी दूर नहीं जब सिर्फ जंगलों के नाम रह जायेगा और जंगल खत्म हो जायेंगे। इस बारे में जब वन रेंजर विजय सोनकर से बात की गई तो उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा।