Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की अश्लील फिल्में देखने और डाउनलोड करने के मामले में बड़ा और सख्त फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों की अश्लील फिल्में देखना और डाउनलोड करना दोनों अपराध हैं और इन्हें यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (POCSO Act) अधिनियम के तहत माना जाना चाहिए। इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी को केवल देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो एक्ट और सूचना प्रौद्योगिकी (IET) अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।
मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे, ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्री को डाउनलोड करना और अपने पास रखना एक गंभीर अपराध है। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री को हटाता नहीं है या पुलिस को इसकी सूचना नहीं देता, तो यह पॉक्सो एक्ट की धारा 15 के तहत दंडनीय होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार की सामग्री को मिटाने में असफल रहता है या इसके बारे में पुलिस को सूचित नहीं करता है, तो उसे कानून के तहत दोषी माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पॉक्सो एक्ट की धारा 15 की उपधारा 1 के तहत, बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री रखना अपराध है, जिसके लिए 5000 रुपये जुर्माना और तीन साल की सजा का प्रावधान है।
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केंद्र सरकार को अधिनियम में संशोधन का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने संसद और केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि पॉक्सो अधिनियम में संशोधन किया जाए और ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘चाइल्ड सेक्सुअली एब्यूसिव एंड एक्सप्लॉइटेटिव मटेरियल (CSAEM)’ से बदल दिया जाए। कोर्ट का मानना है कि इस प्रकार के संशोधन से कानून और स्पष्ट हो जाएगा और बच्चों की सुरक्षा के लिए और अधिक प्रभावी प्रावधान स्थापित किए जा सकेंगे।
बाल पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्री रखना भी अपराध
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि बच्चों की अश्लील सामग्री डाउनलोड करना, देखना, स्टोर करना या अपने पास रखना अपने आप में अपराध है, चाहे इसे किसी और को शेयर किया गया हो या नहीं। कोर्ट ने कहा कि उपधारा 1 अपने आप में पर्याप्त है और इसके तहत किसी भी प्रकार की अश्लील सामग्री को स्टोर करना दंडनीय है।
हाईकोर्ट ने पहले 28 साल के एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज केस को यह कहकर खारिज कर दिया था कि उसने केवल सामग्री डाउनलोड की थी, उसे शेयर नहीं किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि केवल डाउनलोड करना और देखना भी अपराध है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बाल संरक्षण संगठनों ने दी थी सुप्रीम कोर्ट में दलील
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का द्वारा दी गई दलीलों पर गौर किया, जो बाल संरक्षण संगठनों जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस और बचपन बचाओ आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने तर्क दिया कि मद्रास हाईकोर्ट का फैसला कानून के विपरीत है और इससे बच्चों की सुरक्षा कमजोर होती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि इस प्रकार के अपराधों को गंभीरता से लेना जरूरी है ताकि बच्चों के प्रति यौन अपराधों पर रोक लगाई जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने किया समाज को जागरूक करने का आह्वान
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में समाज और सरकार दोनों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी या बच्चों से संबंधित किसी भी प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री से समाज को सुरक्षित रखने के लिए एक मजबूत और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि यह समय है जब समाज बच्चों की सुरक्षा के प्रति और अधिक संवेदनशील बने और ऐसे अपराधों को लेकर सख्त कदम उठाए।
पॉक्सो एक्ट में बदलाव के सुझाव पर हो सकता है बड़ा प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बाल यौन अपराधों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है। बच्चों की सुरक्षा के लिए इस कानून में संशोधन की आवश्यकता पर कोर्ट ने जो सुझाव दिया है, उससे भविष्य में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े मामलों को और गंभीरता से निपटने का रास्ता खुल सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश, बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ सख्त कदम उठाने का संकेत है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा के प्रति समाज और सरकार की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों से संबंधित किसी भी प्रकार की अश्लील सामग्री को देखना, डाउनलोड करना या स्टोर करना गंभीर अपराध है और इसे किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।