Historic decision of Supreme Court: जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव (Discrimination on the basis of caste) को असंवैधानिक करार देते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता सुकन्या शांता द्वारा दाखिल की गई थी, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत 11 राज्यों के उदाहरण दिए थे। याचिका में कहा गया था कि इन राज्यों में कैदियों को उनकी जाति के अनुसार काम और रहने की व्यवस्था दी जाती है। विशेष रूप से, उच्च जातियों के कैदियों को रसोई का काम और निम्न जातियों के कैदियों को सफाई का काम सौंपा जाता था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जेलों में जाति के आधार पर काम का बंटवारा संविधान के अनुच्छेद 15 और 17 का उल्लंघन (Violation of Articles 15 and 17 of the Constitution) है। अनुच्छेद 17 छुआछूत पर रोक लगाता है, जबकि अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है। पीठ ने यह भी कहा कि यह प्रावधान जेलों में भी लागू होते हैं, और कैदियों की जातीय पहचान को कोई महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।
जेल मैनुअल में संशोधन के दिए निर्देश
कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे अपने जेल मैनुअल (Prison Manual) में तीन महीने के भीतर संशोधन करें ताकि जेलों में किसी भी प्रकार का जाति आधारित भेदभाव न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि कैदियों की जाति को दर्ज करने के लिए कोई कॉलम नहीं होना चाहिए, और जेलों में कैदियों को उनकी जाति के आधार पर काम देना पूरी तरह गलत है।
आदतन अपराधियों पर ब्रिटिश कानून की समाप्ति सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्रिटिश शासनकाल में कुछ जनजातियों को आदतन अपराधी घोषित किया गया था, जिसे स्वतंत्र भारत में भी मान्यता दी गई थी। लेकिन आज से ऐसे सभी प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया गया है। अदालत ने इस प्रथा की आलोचना की और कहा कि किसी जाति या जनजाति को आपराधिक प्रवृत्ति का मानना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
डॉ. अंबेडकर का दिया संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) का उल्लेख करते हुए कहा कि वे हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि किसी वर्ग की सामाजिक या आर्थिक स्थिति को उसके उत्पीड़न का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर बल दिया कि समाज में सबको बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए, और किसी भी प्रकार का भेदभाव अस्वीकार्य है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वास्तव में देश में उपस्थित जेल की सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला न केवल जेलों में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकार का पालन किया जाए।