Kannauj Lok sabha Election Seat : वैसे तो पूरा भारत इन दिनों सियासी अखाड़ा से कम नहीं है, लेकिन बात जब यूपी की हो तब एक सीट बेहद खास हो जाती है। भारत के परफ्यूम कैपिटल कन्नौज में सियासी दिग्गजों में जमावड़ा है। मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव तक को जनता ने जिताकर संसद भेजा लेकिन 2019 में रुक गया जीत का सिलसिला थम गईं एक कहानी और यकीन मानिए उस एक जीत ने बीजेपी के आत्मबल को इस कदर बढ़ा दिया कि बीजेपी ने उन्हीं सुब्रत पाठक को दोबारा मैदान ए कन्नौज में उतार दिया है और सीधा चैलेंज कर दिया है।
अखिलेश एंड कंपनी को 2012 से 2017 तक मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव ने कन्नौज को अपनी कर्मस्थली के रूप में विकसित किया। 2019 में डिंपल यादव के चुनाव हारने के बाद भी वो 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट को अपने लिए सबसे सुरक्षित मानते हैं, इसकी एक वजह बीते चुनाव में डिंपल यादव की दमदार फाइट रही थी।
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2019 में डिंपल ने दी थी कड़ी टक्कर
- बीजेपी
सुब्रत पाठक को कुल 5,63,087 वोट
- सपा
डिंपल यादव को 5,50,734 वोट
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समाजवादियों ने खो दी प्रतिष्ठा
23 सालों तक जो कन्नौज अभेद्य किला बना रहा उसे बीजेपी के सुब्रत पाठक ने ना सिर्फ चुनौती दी थी, बल्कि ऐसा ललकारा कि डिंपल यादव के पसीने छूट गए और आखिरकार डिंपल चुनाव तो हारीं ही साथ ही समाजवादियों ने खो दी प्रतिष्ठा भी। बीजेपी के सुब्रत पाठक एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं, उन्हें टिकट देकर बीजेपी ने अपनी पहली चाल चल दी है। अगली चाल समाजवादी पार्टी की ओर से चली जानी है। बात करें अगर यहां के जातीय समीकरण की।
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कन्नौज के जातीय समीकरण
- मुस्लिम- 16 फीसदी
- यादव- करीब 16 फीसदी
- ब्राह्मण- करीब 15 फीसदी
- राजपूत- करीब 10 फीसदी
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अन्य- 39 फीसदी
बीजेपी की ओर से यूपी की 80 सीटों पर जीत का दावा है। उस पर समाजवादी पार्टी की कोशिश पिछले लोकसभा चुनाव में मिली महज 5 सीटों के दर्द से उबरकर नए सिरे से दंगल में उतरना और साथ ही अपने सबसे महत्वपूर्ण किले कन्नौज में दोबारा वापसी की समाजवादी उम्मीदें कामयाबी कितनी मिलेगी ये वक्त के गर्त में छुपा हुआ है।