MUSKAN
फ्री की चलाया जा रहा दांव, लगता है आ गयी चुनाव. चुनाव आते ही सभी सियासी दल फ्री-फ्री के वादों की बरसात करने लगते है. कहीं फ्री में बिजली, तो कहीं पानी और अगर कुछ नहीं मिला तो फ्री की जुबानी शायरी तो सुनने को मिल ही जाती है. उसी फ्री को लेकर अब एक नया शब्द भी मार्केट में ट्रेंड कर रहा है ‘रेवड़ी कल्चर’. खुद देश के पीएम ने इस रेवड़ी कल्चर को देश के लिए हानिकारक बताया है.
चुनावी राज्यों में इस तरह ‘मुफ्त बांटने’ की योजनाएं आम बात है. विरोध करने वाले इन्हें ‘फ्रीबीज’ और रेवड़ी कल्चर कहते हैं तो समर्थन वाले इन्हें ‘कल्याणकारी योजनाएं’ बताते हैं. विरोध करने वालों का अक्सर कहना होता है कि इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ेगा, कर्जा बढ़ेगा और सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा किया जा रहा है. तो ऐसी योजनाएं लाने वाले कहते हैं कि इसका मकसद गरीब जनता को महंगाई से राहत दिलाना है. खास बात ये है कि एक पार्टी जिस तरह की योजना को एक राज्य में रेवड़ी कल्चर कहती है, वही दूसरे राज्य में उसे कल्याणकारी योजना कहकर लागू कर रही होती है.इस रेवड़ी कल्चर को उसी दीमक की तरह समझिए, जो किसी लकड़ी के सामान को खोखला कर देता. ठीक वैसे ही जब आप किसी को लगातार मुफ्त में चीजें देने लग जाएंगे, तो इंसान खुद को लाचार और आलसी भी समझ बैठता है. जिस योजना को पीएम ने खुद हानिकारक बताया है, तो अब उन्ही की पार्टी के नेता वोटबैंक के लिए फ्री की ऐलान करते हुए दिखाई देते है.
खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी हाल ही में ‘लाडली बहना योजना’ के तहत सवा करोड़ गरीब महिलाओं के खाते में एक हजार रुपये जमा कराए हैं. अब कांग्रेस कह रही है कि उसकी सरकार आई तो हजार नहीं बल्कि 1,500 रुपये दिए जाएंगे. शिवराज ने युवाओं को लुभाने के लिए 12वीं कक्षा के कुल 9000 टॉपर्स को एक-एक स्कूटी देने का भी ऐलान कर दिया है. तो वहीं कर्नाटक चुनाव से पहले नंदिनी दूध देने का वादा भी भाजपा सरकार ने किया.
राज्यों के घटते राजस्व में इजाफे के लिए एन.के. सिंह की अगुआई वाले 15वें वित्त आयोग ने संपत्ति कर में धीरे-धीरे बढ़ोतरी, पानी जैसी विभिन्न सरकारी सेवाओं का शुल्क नियमित तौर पर बढ़ाने के साथ शराब पर उत्पाद कर बढ़ाने और स्थानीय निकायों तथा खाता-बही में सुधार करने की सलाह दी है.आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने मीडिया में एक लेख में लिखा था, ‘चाहे निजी कंपनी हो या सरकार, आदर्श तो यही है कि किसी कर्ज का भुगतान भविष्य में राजस्व पैदा करके खुद करना चाहिए. दूसरी तरफ, अगर कर्ज की रकम मौजूदा खपत में खर्च की जाती है और भविष्य की वृद्धि पर कोई असर नहीं होता, तो हम कर्ज भुगतान का बोझ अपने बच्चों पर डाल रहे हैं. इससे बड़ा पाप और कुछ हो नहीं सकता.’पिछले साल जून में आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में श्रीलंका के आर्थिक संकट का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने कर्ज में स्थिरता लाने की जरूरत है, क्योंकि कई राज्यों के हालात अच्छे संकेत नहीं हैं.आरबीआई का सुझाव है कि सरकारों को गैर-जरूरी जगहों पर पैसा खर्च करने से बचना चाहिए और अपने कर्ज में स्थिरता लानी चाहिए. इसके अलावा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने की जरूरत है. इसमें सुझाव दिया गया है कि सरकारों को पूंजीगत निवेश करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में इससे कमाई हो सके.