RBI Monetary Policy Repo Rate: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक इस समय चल रही है, जो शुक्रवार को समाप्त होगी. इस बैठक के दौरान लिए गए निर्णयों का ऐलान केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) करेंगे. नोमुरा इंडिया के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बैठक में सर्वसम्मति से 25 बेसिस पॉइंट (0.25 प्रतिशत) की रेपो रेट में कटौती की जा सकती है. यदि ऐसा होता है, तो रेपो दर 6.25 प्रतिशत तक गिर जाएगी.
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रेपो रेट पर यथास्थिति या कटौती?
वहीं कुछ अन्य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आरबीआई (RBI) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करेगी. इसका मतलब है कि रेपो रेट में न तो इजाफा होगा और न ही किसी प्रकार की कटौती की जाएगी। इसके बजाय, आरबीआई के सदस्य कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में कटौती या ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) जैसे उपायों पर विचार कर सकते हैं, जो लिक्विडिटी को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं.
महंगाई और विकास दर का असर
आपको बता दे कि, नोमुरा इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कमजोर विकास दर और आगामी महंगाई की संभावनाओं के मद्देनज़र, आरबीआई नीति निर्माता रेपो रेट में कटौती करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।.शेयर बाजार के निवेशक शुक्रवार को आरबीआई (RBI) के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. नोमुरा का अनुमान है कि आरबीआई अपनी जीडीपी वृद्धि दर के पूर्वानुमान को कम कर सकता है और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई दर का अनुमान बढ़ा सकता है.
नकद प्रबंधन और महंगाई की चुनौती
नोमुरा ने आगे कहा कि इस बात की उम्मीद की जाती है कि आरबीआई 2025 के मध्य तक 100 बेसिस पॉइंट्स की कटौती करेगा, जिससे रेपो रेट 5.50 प्रतिशत के टर्मिनल रेट तक पहुंच जाएगा. इसमें दिसंबर में की गई कटौती भी शामिल है. उन्होंने यह भी कहा कि मौद्रिक नीति में लंबे समय तक काम करने के कारण अब तटस्थ नीति दरों पर जाना पर्याप्त नहीं होगा। ऐसे में मौद्रिक नीति में कटौती की कोई नीतिगत कमजोरी नहीं दिखाई देती है. नोमुरा के अनुसार, आरबीआई का मुख्य उद्देश्य भारतीय रुपये की स्थिरता बनाए रखना और खुदरा महंगाई को 4 प्रतिशत के आसपास रखना है, जिसमें 2 प्रतिशत की दोनों ओर विचलन की अनुमति हो. इसके साथ ही, विकास को भी प्राथमिकता दी जाती है.
विकास दर में गिरावट का असर
नोमुरा ने यह भी कहा कि आरबीआई (RBI) की सख्त मौद्रिक नीति और अन्य कई कारकों के चलते आर्थिक विकास में गिरावट आई है. विशेष रूप से खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति पर आरबीआई की आक्रामक टिप्पणियों ने इसे और बढ़ावा दिया है. रिपोर्ट में बताया गया कि पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत हो गई, जो एक बड़ा झटका है. यह दर्शाता है कि घरेलू निजी मांग में कमजोरी महत्वपूर्ण रूप से बढ़ी है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंता का विषय है.
इस संदर्भ में आरबीआई (RBI) के आगामी फैसले का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण हो सकता है. हालांकि, इन फैसलों से पहले सभी की नजरें शुक्रवार के आरबीआई के घोषणाओं पर रहेंगी, जो भारतीय आर्थिक नीति के दिशा-निर्देशों को तय करेंगे.