Input- Muskan
उत्तर प्रदेश: पूर्वांचल में एक पुरानी कहावत है कि यहां कब किसके समर्थन में पुरवइया बह जाए ये कोई नहीं कह सकता, तो उसी पूर्वांचल को साधने के लिए हर एक पार्टी ने ज़ोर आज़माइश शुरु कर दी है. जहां के दो बड़े शहर गोरखपुर और काशी की जनता को पीएम मोदी सौगात देने के साथ ही पूर्वांचल से चुनावी शंखनाद भी करने वाले है..
पूर्वांचल के 27 लोकसभा क्षेत्रों में कुर्मी, मौर्य, राजभर, निषाद, यादव सहित अन्य जातियों का गढ़ हैं. लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में इनमें से यादव और राजभर को छोड़कर अधिकांश जातियों का रुख भाजपा की ओर रहा है. वहीं दलित वर्ग में कोरी, पासी, सोनकर, जाटव और कोल जाति के मतदाताओं भी निर्णायक संख्या में हैं.
मोदी लहर के बावजूद 2019 में हुआ नुक्सान
सीएम योगी और पीएम मोदी का गढ़ होने के बाद भी बीजेपी को लोकसभा चुनाव 2019 में पूर्वांचल के क्षेत्र में एकतरफा जीत नहीं मिल पाई थी. पार्टी ने इस हिस्से की कुल 26 में से 17 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि 2 सीटें सहयोगी अपना दल (एस) के खाते में गई थीं. इसीलिए बीजेपी अब अभी से ही 2024 की सियासी जमीन तैयार करने में जुटी है, ताकि अपने सियासी किले को दुरुस्त कर सके.
बीजेपी के लिए यहां चुनौती मोदी मैजिक के साथ-साथ जातिगत समीकरण सही बैठाने की भी है. यही कारण है कि पिछले बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने यहां अपने खाते में 7 सीटें डाली थीं. इतना ही नहीं साल 2022 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के कई इलाकों में बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका था।
Read More: बारिश में करें सिर्फ वॉटरप्रूफ मेकअप, जानिए 5 आसान टिप्स
जिसमें आजमगढ़, अंबेडकरनगर जिले शामिल थे. इसके अलावा गाजीपुर, मऊ व जौनपुर में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत खराब था. पूर्वांचल के श्रावस्ती, गाजीपुर, मऊ, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर और अंबेडकरनगर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को 2019 में हार मिली थी. हालांकि, आजमगढ़ सीट बीजेपी उपचुनाव में जीतने में सफल रही थी.
क्या कहता है पूर्वांचल का जातीय समीकरण?
पूर्वांचल के बड़े हिस्से में ब्राह्मण वोटरों का प्रभाव है, लेकिन यहां ओबीसी जातियों के पास सत्ता की चाबी भी है. साल 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव, हर मोर्चे पर बीजेपी ने जातियों के समीकरण को साधा है तभी वह सत्ता में बरकरार रही है. अब एक बार फिर यह चुनौती सामने आई है, खासकर ओबीसी जातियों को साधने की चुनौती.
पूर्वांचल की सीट पर ओबीसी में यादव, कुर्मी, निषाद, कुशवाहा, राजभर और नोनिया समुदाय का बड़ा प्रभाव है जबकि सवर्ण जातियों में ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहारों का दबदबा है तो दलित समुदाय भी अहम भूमिका में है. पूर्वांचल के कई जिलों में मुस्लिम वोटर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं. ऐसे में यादव और मुस्लिम सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है, जिसमें कोई दूसरी कुर्मी या फिर कोई अन्य प्रभावी जाति जुड़ जाती है तो राजनीतिक रूप से जीत का आधार बन जाता है.