लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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आगरा का राजसी सफर
आगरा जिसे हम ताजनगरी के नाम से भी जानते है जहां का ताजमहल प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं। आम तौर पर यह स्वीकार किया जाता है कि आगरा महाभारत के समय से एक प्राचीन शहर था और फिर भी दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासक सुल्तान सिकंदर लोदी ने 1504 में आगरा की स्थापना की। सुल्तान की मृत्यु के बाद, शहर अपने बेटे सुल्तान इब्राहिम लोदी को पास कर दिया। उन्होंने आगरा से अपने सुल्तानत पर शासन किया जब तक वह 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में मुगल बदशा (सम्राट) बाबर से लड़ने तक गिर गए।
वहीं मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, शहर मराठों के प्रभाव में आया और 1803 में ब्रिटिश राज के हाथों गिरने से पहले आगरा कहा जाता था। 1835 में जब अंग्रेजों द्वारा आगरा की प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई, तो शहर सरकार की सीट बन गई, और केवल दो साल बाद यह 1837-38 के आगरा अकाल का साक्षी था।
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आगरा का इतिहास
ताजनगरी आगरा मुगलों के साथ शहर की सुनहरी उम्र शुरू हुई। इसे अकबरबाद के रूप में जाना जाता था और बादशाह (सम्राट) अकबर, जहांगीर और शाहजहां के तहत मुगल साम्राज्य की राजधानी बना रहा। अकबर ने इसे अपने मूल बारह उपहास, सीमावर्ती (पुरानी) दिल्ली, अवध, इलाहाबाद, मालवा और अजमेर सुहाहों में से एक का नामित सीट बना दिया। शाहजहां ने बाद में 1649 में अपनी राजधानी शाहजानाबाद में स्थानांतरित कर दी।
“तौलमी” नामक व्यक्ति ने इस नगर को सबसे आगरा के नाम से संबोधित किया था। इस शहर को सिकंदर लोदी ने सन् 1506 ई. में बसाया था। 1526 से 1658 ई. तक यह शहर मुग़ल साम्राज्य की राजधानी भी रहा था। यह जिला यहाँ पर स्थित मुगलकालीन ताज महल, लाल किला, फ़तेहपुर सीकरी के कारण एक प्रसिद्द पर्यटन स्थल भी है।
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अकबरबाद मुगलों के अनुसार भारत के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में से एक था, मुगल राजवंश के संस्थापक बाबर ने यमुना नदी के तट पर पहला औपचारिक फारसी उद्यान रखा बताते चले कि बगीचे को अराम बाघ या आराम का बाग कहा जाता है। उनके पोते अकबर द ग्रेट ने महान लाल किले के विशाल किनारे उठाए, आगरा को सीखने, कला, वाणिज्य और धर्म के लिए केंद्र बनाने के अलावा। अकबर ने फतेहपुर सिक्री नामक अकबरबाद के बाहरी इलाके में एक नया शहर भी बनाया। यह शहर पत्थर में एक मुगल सैन्य शिविर के रूप में बनाया गया था।
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उनके बेटे जहांगीर को वनस्पतियों और जीवों का प्यार था और लाल किले के अंदर कई बगीचे रखे थे। शाहजहां, वास्तुकला में उनकी गहरी रूचि के लिए जाने जाते हैं, ने अकबरबाद को सबसे अधिक मूल्यवान स्मारक, ताज महल दिया। अपनी पत्नी मुमताज महल की प्रेमपूर्ण स्मृति में निर्मित, मकबरा 1653 में पूरा हो गया था। जिसके बाद में शाहजहां ने राजधानी को अपने शासनकाल के दौरान दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया, लेकिन उनके बेटे औरंगजेब ने राजधानी को अकबरबाद में वापस ले जाया, अपने पिता को उतार दिया और उन्हें किले में कैद कर दिया। औरंगाजेब के शासनकाल के दौरान अकबरबाद भारत की राजधानी बने रहे जब तक कि वह इसे 1653 में दक्कन में औरंगाबाद में स्थानांतरित नहीं कर लेते।
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मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, मराठों के प्रभाव में आया शहर
आपको बतादें कि मुगल साम्राज्य के पतन के बाद 1835 में जब अंग्रेजों द्वारा आगरा की प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई, तो आगरा शहर सरकार की सीट बन गई और केवल दो साल बाद यह 1837-38 के आगरा अकाल का साक्षी था। वहीं 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान पूरे भारत में ब्रिटिश शासन को धमकी दी गई थी। जिसके बाद विद्रोह की खबर 11 मई को आगरा पहुंची थी और 30 मई को मूल पैदल सेना आगरा पहुंच गई थी। 44 वें और 67 वें रेजिमेंट की दो कंपनियों ने विद्रोह किया और दिल्ली चले गए।
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आगरा में अगली सुबह देशी भारतीय सैनिकों को 15 जून को ग्वालियर पर विद्रोह करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जिसके बाद 3 जुलाई तक, अंग्रेजों को किले में वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1947 में भारत की आजादी तक इस ब्रिटिश शासन को फिर से शहर में सुरक्षित कर लिया गया था।
बताते चले आगरा धर्म का जन्मस्थान है जिसे दीन-ए इलाही कहा जाता है, जो अकबर के शासनकाल और राधास्वामी विश्वास के दौरान विकसित हुआ, जिसमें दुनिया भर में लगभग दो लाख अनुयायी हैं। आगरा के पास जैन धर्म के शौरीपुर और 1000 ईसा पूर्व हिंदू धर्म के रनुका के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं।
आगरा के प्रमुख पर्यटन स्थल
आगरा अपनी कई मुगलकालीन इमारतों के कारण एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। जिसमें सबसे ज्यादा विशेष ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी के लिये, जो सभी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। दिल्ली और जयपुर के साथ आगरा गोल्डन ट्राइंगल टूरिस्ट सर्किट में शामिल है, और लखनऊ और वाराणसी के साथ यह उत्तर प्रदेश राज्य के एक पर्यटक सर्किट, उत्तर प्रदेश हेरिटेज आर्क का हिस्सा है। सांस्कृतिक रूप से आगरा ब्रज क्षेत्र में स्थित है।
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आगरा उन ऐतिहासिक और वास्तुकला से परिपूर्ण स्मारकों से भरा पड़ा है जो शहर के इतिहास को बयां करते हैं। यहां ऐतिहासिक स्मारकों और भव्य वास्तुकला से बने मंदिर, किले और मकबरे हैं। सभी मध्यकालीन युग की खूबसूरत और आश्चचर्यजनक रचनाओं की वजह से आगरा को देश के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है। आज भी आगरा मुग़लकालीन इमारतों जैसे – ताज महल, किला, फ़तेहपुर सीकरी आदि की वजह से एक विख्यात पर्यटन-स्थल है। ये तीनों इमारतें यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सुची में शामिल हैं।
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ताजमहल
आगरा का ताजमहल दुनिया के सातवें अजूबों में से एक है। यह 1653 में बना है। इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। यहीं मुमताज महल का मकबरा भी है। इसलिए ताजमहल को प्यार का प्रतीक भी माना जाता है। ताजमहल भारतीय, पर्सियन और इस्लामिक वास्तुशिल्पीय शैली के मिश्रण का उत्कृष्ट उदाहरण है।
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आगरा फोर्ट
यह किला 1565 में महान मुगल सम्राट अकबर के समय में बना था। शाहजहां के शासनकाल में इसे लाल पत्थरों से फिर से बनवाया गया। इसलिए इसे लाल किला भी कहा जाता हैं। लाल किले में मोती मस्जिद, जहांगीर महल, दिवान—ए—आम, दिवान—ए—खास, शीश महल, खास महल बने है। यहां संगमरमर और पीट्रा ड्यूरा नक्काशी का महीन कार्य किया गया है।
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फतेहपुर सिकरी
मुगल सम्राट अकबर ने फतेहपुर सीकरी बसाई, व अपनी राजधानी वहां स्थानांतरित की। यह आगरा से 35 कि॰मी॰ दूर है। यहां अनेकों भव्य इमारतें बनवायीं। बाद में पानी की कमी के चलते, वापस आगरा लौटे। यहां भी बुलंद दरवाजा, एक विश्व धरोहर स्थल है।
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जामा मस्जिद
जामा मस्जिद 1648 में शाहजहां ने बनवाया। जो आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन के पास है। यह मस्जिद शाहजहाँ की पुत्री, शाहजादी जहाँआरा बेगम़ को समर्पित है।
मोती मस्जिद
आगरा में पवित्र स्थानों में एक स्थान मोती मस्जिद भी है। शाहजहां ने इस मस्जिद का निर्माण अपने शाही दरबार के लिए करवाया था। जों 1648 से 1654 में बनी है। जिसकी लागत 1,60,000 आई थी। विश्व में स्थिती सभी मस्जिदों के मंच में तीन सीढ़ियां होती हैं, परन्तु ये एक मात्र ऐसी मस्जिद है, जिसमें चार सीढ़ियां हैं। बताया जाता है कि मोती मस्जिद मुगल युग में बनी सबसे मंहगी वास्तुकला परियोजना में से एक है।
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सिकंदरा (अकबर का मकबरा)
आगरा किला से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर, सिकंदरा में महान मुगल सम्राट अकबर का मकबरा है। सिकंदरा स्थित यह मकबरा 119 एकड़ में फैला हुआ है। यह मकबरा उसके व्यक्तित्व की पूर्णता को दर्शाता है। अकबर ने स्वयं ही अपने मकबरे की रूपरेखा तैयार करवाई थी और स्थान का चुनाव भी उसने स्वयं ही किया था। 8 साल में बने इस मकबरे का निर्माण कार्य अकबर के द्वारा 1605 में शुरू करवाया गया था और उनके बेटे जहांगीर ने इसके निर्माण को 1605 में पूरा करवाया।
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एतमादुद्दौला का मकबरा
मुगल बादशाह अकबर के बेटे जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के पिता मिर्जा गियास बेग को एतमादुद दौला का खिताब दिया था। एतमादुद दौला और उनकी पत्नी अस्मत जहां का यह मकबरा 1622 से 1628 के बीच उनकी बेटी नूरजहां ने बनवाया था। मुगल काल के अन्य मकबरों से अपेक्षाकृत छोटा होने से, इसे कई बार श्रंगारदान भी कहा जाता है। यहां के बाग, पीट्रा ड्यूरा पच्चीकारी, व कई घटक ताजमहल से मिलते हुए हैं।
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मेहताब बाग
महताब बाग का अर्थ होता है चांद की रोशनी का बाग। यमुना नदी के किनारे 25 एकड़ में फैले इस बाग का निर्माण 1631 से 1635 के बीच करवाया गया था। यह उद्यान ताजम़हल से लगभग ढाई किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में बना है। यह भारत का सबसे पुराना मुग़ल उद्यान हैं।
स्वामी बाग और दयाल बाग
स्वामीबाग समाधि हुजूर स्वामी महाराज का स्मारक/समाधि है। यह नगर के बाहरी क्षेत्र में है, जिसे स्वामी बाग कहते हैं। वे राधास्वामी मत के संस्थापक थे। उनकी समाधि उनके अनुयाइयों के लिये पवित्र है। इसका निर्माण 1908 में आरम्भ हुआ था और कहते हैं कि यह कभी समाप्त नहीं होगा।
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चीनी का रोजा
आगरा स्थित चीनी का रोजा शाहजहाँ के मंत्री, अल्लामा अफज़ल खान शकरउल्ला शिराज़, को समर्पित है और अपने पारसी शिल्पकारी वाले चमकीले नीले रंग के गुम्बद के लिये दर्शनीय है। 1635 में बनी इस खूबसूरत मकबरे का नाम इसको बनाने में इस्तेमाल हुए पत्थरों के नाम पर पड़ा।
बागेश्वर नाथ मंदिर
आगरा में स्थित मंगलेश्वर मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर, आर्य समाज मंदिर और दयाल बाग में स्वामी जी महाराज को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर प्रमुख है।
कांच महल
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सिकंदरा में अकबर के मकबरे के बगल में स्थित वर्गाकार कांच महल मुगल वास्तुशिल्प की विशेषताओं का जीता-जागता उदाहरण है। इसका निर्माण 1605 से 1619 के बीच किया गया था।
लोकसभा संसद सदस्य
- 1952 – सेठ अचल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1957 – सेठ अचल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1962 – सेठ अचल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1967 – सेठ अचल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1971 – सेठ अचल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1977 – शम्भू नाथ चतुवेर्दी – जनता पार्टी
- 1980 – निहाल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1984 – निहाल सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1989 – अजय सिंह – जनता दल
- 1991- भगवान शंकर रावत – भारतीय जनता पार्टी
- 1996 – भगवान शंकर रावत – भारतीय जनता पार्टी
- 1998 – भगवान शंकर रावत – भारतीय जनता पार्टी
- 1999 – राज बब्बर – समाजवादी पार्टी
- 2004 – राज बब्बर – समाजवादी पार्टी
- 2009 – राम शंकर कठेरिया – भारतीय जनता पार्टी
- 2014 – राम शंकर कठेरिया – भारतीय जनता पार्टी
- 2019 – एसपी सिंह बघेल – भारतीय जनता पार्टी
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आगरा लोकसभा जातीय समीकरण
आगरा लोकसभा को लेकर अगर जातीय समीकरण की बात करें तो आगरा को दलित और मुस्लिम वोटरों का गढ़ माना जाता है। दलित वोटर होने के बाद भी यहां से बसपा को कभी फायदा नहीं मिला। वहीं आगरा में करीब 3.15 लाख वोटर वैश्य है, अगर बात करें अनुसूचित जाति की तो आगरा में करीब दो लाख 80 हजार वोटर हैं। वहीं अगर मुस्लिम मतदाताओं की बात करें तो यहां करीब दो लाख 70 हजार है। वहीं करीब 1 लाख 30 हजार बघेल वोटरों की संख्या है।
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आजादी के बाद से कब कौन बना सांसद
आगरा लोकसभा के अगर सांसदों की बात करें तो 1952 से लेकर 1971 तक आगरा सीट कांग्रेस के हाथों में रही। यहां से लगातार पांच बार सेठ अचल सिंह सांसद चुने गए। वहीं 1977 में इस सीट से भारतीय लोकदल के शंभूनाथ चतुर्वेदी ने चुनाव जीता। फिर 1980 में कांग्रेस ने फिर से परचम लेहराया और आगरा से निहाल सिंह सिंह सांसद बने। जिसके बाद 1984 में भी कांग्रेस के निहाल सिंह सांसद चुने गए। 1989 में जनता दल के अजय सिंह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।
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वहीं 1991 के आते ही 1998 तक आगरा सीट पर भाजपा ने राज किया और लगातार भगवान शंकर सिंह यहां से सांसद चुने गए। 1999 के चुनाव में ये सीट सपा ने कब्जा ली और राज बब्बर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। राजबब्बर 2004 का चुनाव भी जीता। जिसके बाद एक बार फिर भाजपा की किस्मत पलटी और 2009 के लोकसभा चुनाव से लगातार जीत हासिल की जिसके बाद से अब तक यहां बीजेपी भी कायम है। 2009 से लेकर 2014 तक भाजपा के राम शंकर कठेरिया सांसद चुने गए। 2019 में भी ये सीट भाजपा ने जीती लेकिन इस बार एसपी सिंह बघेल संसद पहुंचे।