- याश्स्वी योद्धा के संघर्ष का युद्ध
- पेट पालने के लिए बेचता था पानीपूरी
- जिस पर नाज करता है हिन्दुस्तान
Yashasvi Jaiswal: हर इंसान को जिंदगी में कभी न कभी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ता है। कोई उसमें टूट जाता है तो कोई निखर जाता है। जो उस दौर का डटकर सामना करता है और उसको पार करता है। वही यशस्वी बन पाता है। ये कहानी है उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सुरियावां निवासी यशस्वी जायसवाल की जिन्होंने संघर्ष के एक लंबे दौर का सामना किया। गोलगप्पे तक बेचे, लेकिन कभी टूटे नहीं, बस आगे बढ़ते गए और आज बन चुके हैं विश्व रिकॉर्डधारी…
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दास्तान-ए- याश्स्वी जायसवाल
जब इंसान के पास खोने को कुछ न हो और पाने की ललक हिचकोले खाते समंदर से भी बड़ी हो तो फिर प्रकृति पाने की हर राह खोल देती है। अपने आसमानी जज्बात और चट्टानी इरादों के बलबूते इंसान क्या कुछ नहीं हासिल कर सकता। बस जरूरत है तो निरंतर आगे बढ़ते रहने का हुनर और कठिन लक्ष्य को भेद देने वाले महाशपथ की कहते तो ये भी हैं, कि अगर किसी इंसान को मुफलिसों से लड़ने का हुनर आ गया तो फिर क्या मजाल किसी और कठिनाई की जो उसे उसके लक्ष्य को पाने की राह में कठिनाइयां पैदा कर सके।
अभाव की आग में तपकर कनक बनते कई सितारों के बारें हम आप पहले भी सुन चुके हैं। लेकिन का एक ऐसा सितारा जो मैदान पर उतरा तो उसकी चमक पूरी दुनिया ने देखी। लेकिन यहां तक पहुंचने की राहें। उसकी कितनी मुश्किल रही, कैसी कैसी राते गुजारकर वो एक महान यशस्वी योद्धा बनकर सबकुछ साबित कर दिया। माता पिता ने भले ही नाम उसका नाम यशस्वी रखा था।
जिस पर नाज करता है हिन्दुस्तान
लेकिन उसने हाथों की लकीरों को खुद उकेरा और फिर बन गया हिन्दुस्तान का सबसे चमकदार सितारा, उत्तर प्रदेश की संगम नगरी से सटे जिले भदोही का एक होनहार लड़का जब पिता से कहता है कि क्रिकेट की बारिकियां सीखने के लिए मुंबई जाना है। तो पिता सीधे तौर पर मना कर देते है, लेकिन उसका कोच उसके भीतर छिपे अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी को बचपन में देख रहा होता है और फिर एक साल बाद पिता से गुजारिश करता है, पिता मान जाते हैं…बेटा मुंबई जाता है…खेल की दांव पेंच तो सीखने लगता है…लेकिन अपनी जिंदगी के सारे अभाव के आगे उसे बहुत कुछ झेलने पड़ा है।
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उत्तर प्रदेश के भदोही के इस किशोर के लिए क्रिकेटर बनने की राह आसान नहीं रही. जब वह 2012 में क्रिकेट का सपना संजोए अपने चाचा के पास मुंबई पहुंचा, तब वह महज 11 साल का था। चाचा के पास इतना बड़ा घर नहीं था कि वह उसे भी उसमें रख सकें। फिर वो एक डेयरी दुकान में अपनी रातें गुजारते थे। यशस्वी अपना पेट पालने के लिए आजाद मैदान में राम लीला के दौरान गोलगप्पे भी बेचे।
पेट पालने के लिए बेचता था गोलगप्पे
लेकिन उन्होंने क्रिकेट नहीं छोड़ा और जब भी मौका मिला। उसने हर मौके को जमकर भुनाया। उनकी जिन्दगी में हर पड़व आया मगर इस याश्स्वी योद्ध ने कभी हौसले से हार नहीं मानी, याश्स्वी की जिदंगी में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जव 2019 के ऑक्शन में यशस्वी जयसवाल को राजस्थान रॉयल्स ने 2.40 करोड़ रुपये में खरीदा। इसके बाद इस रियाल योध्द ने कभी पीछे मुड़ कर नही देखा आज वो टीम इंडिया में शामिल है।
यशस्वी जयसवाल के पानी पूरी वेंडर से एक स्टार क्रिकेटर बनने के सफर ने दुनिया को दिखा दिया कि अगर आप कड़ी मेहनत और लगन के साथ चलोगे तो आप हर मंजिल हासिल कर सकते हो, हर चुनौती को पार कर सकते हो। याश्स्वी के लिए प्राईम टीवी विश करता है कि तुम्हारा यश यू ही बढ़ता रहे।