National Education Day: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस को मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के अवसर में मनाया जाता है, उनके सम्मान के रूप में इसको जाना जाता है। जो एक प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान और स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री और सबसे कम उम्र के अध्यक्ष भी थे। उनकी मार्गदर्शन क्षमता और सोच ने भी आधुनिक भारत को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई है। उन्होंने IIT और UGC जैसे संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मानव संसाधन विकास मंत्रालय जो अब शिक्षा मंत्रालय हैं उन्होंने 2008 में स्थापित किया। शिक्षा के क्षेत्र में योगदान और एक शिक्षित और प्रगतिशील भारत के लिए उनके दृष्टिकोण का सम्मान करता है।
आज़ाद का योगदान
बता दे, शिक्षा मंत्री के रूप में मौलाना अबुल कलाम आजाद के योगदान को याद किया जाता है। 1920 में, उन्हें अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना के लिए बनी समिति में चुना गया था। इसके बाद में मौलाना आजाद ने साल 1934 में विश्वविद्यालय परिसर को नई दिल्ली ट्रांसफर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज, परिसर के मुख्य द्वार का नाम उनके नाम पर है।
ग्रामीण गरीबों और लड़कियों को शिक्षा प्रदान की
शिक्षा मंत्री के रूप में, मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ग्रामीण गरीबों और लड़कियों को शिक्षा प्रदान किया। प्राथमिकताओं में बालिग साक्षरता को बढ़ावा देना, 14 वर्ष तक के सारे बच्चों के लिए फ्री और आवश्यक शिक्षा सुनिश्चित करना, व्यावसायिक प्रशिक्षण और सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा का विस्तार करना पर बल देने के साथ ही माध्यमिक शिक्षा को विविधता प्रदान किया था। आजाद का योगदान स्वतंत्रता आंदोलन से आगे था। एक शिक्षित, धर्मनिरपेक्ष और एकीकृत भारत के लिए उनका दृष्टिकोण देश को दिशा दे रहा है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म
हम आज जिस महान व्यक्तित्व के नाम पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाते हैं आइए बात करते हैं उनके बारे में…… मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का शहर, सऊदी अरब में हुआ था। उनका Original name मुहिउद्दीन अहमद था। उन्होंने अपनी शिक्षा शुरूआत अपने पिता के के माध्यम से ही की थी।
इसके बाद मौलाना आजाद ने मिश्र के मकबूल शैक्षणिक संस्थान जामिया अजहर में प्रवेश ले लिया। बता दे, अबुल कलाम को कई भाषाओं के ज्ञान था। उन्हें उर्दू, फारसी, हिंदी, अरबी और अंग्रेजी आती थी। मौलाना आजाद ने सऊदी अरब को छोड़कर हिंदुस्तान में शरण लेने का फैसला किया था, वे जब हिंदुस्तान आए तो कलकत्ता में रहना शुरू किया। उन्होंने कलकत्ता में रहकर पत्रकारिता और राजनीति में अपना सिक्का चलाना शुरू कर दिया।