औरंगाबाद संवाददाता: नीरज सेन
- पवित्र रिश्तों का बंधन है रक्षाबंधन
- मुस्लिम समुदाय के लोगों ने संदेश दिया की रक्षा बंधन के मौके पर एक दुसरे सुमदाए के बिच बंधवाए राखी
औरंगाबाद: रक्षाबंधन के पूर्व संध्या पर पैगाम यह इंसानियत मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने अध्यक्ष मो शहनवाज रहमान उर्फ सल्लू खान के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय के बच्चे बच्ची ने राखी पर्व के पूर्व सांध्य पर बहन की रक्षा करने का संकल्प लिया और एक संदेश दिया कि रक्षाबंधन किसी मजहब या संप्रदाय का नहीं बल्कि भाई-बहन की मोहब्बत का बंधन है। रक्षाबंधन तो पवित्र रिश्तों का बंधन है। बहन-भाई का रिश्ता तो दिल से जुड़ा है। एक वक्त था जब कि हुमायू को भी रानी पदमावती ने राखी भेजी थी और मदद मांगी थी। रक्षाबंधन तो ऐसा त्योहार है, जिसे बिना भेदभाव के पूरा देश मनाता है।
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यह त्योहार बहन की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता
इस्लाम तो औरों की भावनाओं की कद्र करने की सीख देता है और रक्षाबंधन का त्योहार भी बहन की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है। हम सबको त्योहार मनाने के पीछे छिपे मकसद को समझना चाहिए। जिसमें खून के नहीं बल्कि रिश्तों के बंधन ज्यादा मायने रखते हैं। भाई-बहन के प्यार का बंधन है ही इतना खास जो न धर्म देखता है न जाति। कुल मिलाकर कहा जाए तो ये पूरी तरह से हिंदुस्तानी रक्षाबंधन हैं, जहां पर हिंदू बहनें मुस्लिम भाईयों को राखी बांध कर पैगाम देती हैं कि अभी फिजा में इंसानियत और अमन बाकी है। जिसे कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम बांटकर असली हिंदुस्तान को बांटना चाहते हैं। सल्लू खान और मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने संकल्प लिया है की किसी भी धर्म की हो वह मेरी बहन है।
जीवन भर सुरक्षा करने का संकल्प लिया
उसकी हिफाजत करना मेरा कर्तव्य है बहनों के जीवन भर सुरक्षा करने का संकल्प लिया। कहा कि ये तो हमारे मुल्क है जो आपको एक दूसरे के धार्मिक कार्यक्रमों में देखने को मिल जाती है। आज मुझे बेहद खुशी हो रही है जहां लोग सांप्रदायिकता की बातें करते हैं ऐसे में हम सौहार्द की मिसाल पेश करते हैं। कहा कि ये त्योहार है ही ऐसा, जिसमें मजहब की दीवारें टूट जाती हैं।
मुस्लिम समुदाय: सद्भाव का पैगाम देता रक्षाबंधन
वैसे तो सभी त्योहार प्यार की सीख देते हैं। लेकिन रक्षाबंधन ऐसा पवित्र रिश्ता है जिसका महत्व हिंदू परिवारों के साथ मुस्लिम तथा इसाई भी समझने लगे हैं। रक्षाबंधन अब एक वर्ग विशेष के लोगों तक सीमित न रहकर मजहब व जाति के भेदभाव से ऊपर उठ गया है। बहुत से उदाहरण हैं जिनके रिश्ते भले ही खून के न हो लेकिन इंसानियत और मुहब्बत के रिश्तों की डोर को राखी के बंधन से ऐसे बांधे रखा है जिसकी दुहाई हर कोई देता है।
इस मौके पर रहमतुल्लाह, सदरुल हुडा, मोहम्मद अली, मोहम्मद अब्दुल्ला, मोहम्मद सोहराब, मोहम्मद तकीम, रोशनी, अलीशा परवीन, मोहम्मद फैजान, मोहम्मद कमाल ,मुसबीर तोहिद, मोहम्मद वजीर, हलीमा खातून, आयशा मोहम्मद ,रेहान मोहम्मद फैज ,उपस्थित रहे।