लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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जानें कैसे पड़ा जिले का नाम
भारत में सबसे ज्यादा यूपी की 80 सीटे है जिसमें से बाराबंकी जिला उत्तर प्रदेश राज्य के मध्य भाग में अवध क्षेत्र में स्थित है। इसका मुख्यालय बाराबंकी है। आपको बतादें कि बाराबंकी जिले को ‘पूर्वांचल के प्रवेश द्वार’ के रूप में भी जाना जाता है, जिसे कई संतों और साधुओं की तपस्या स्थली होने का गौरव प्राप्त है। वहीं इस जिले के नामकरण की कई प्राचीन कथाएं भी हैं। इसे ‘भगवान बारह’ के पुनर्जन्म की पावन भूमि मानते है। जिसके चलते इस जगह को ‘बानह्न्या’ के रूप में जाना जाने लगा, जो वर्तमान में बाराबंकी के नाम से प्रसिद्ध हैं। जिला का मुख्यालय दरियाबाद में 1858 ई. तक था, जिसे बाद में 1859 ई. में नवाबगंज में स्थानांतरित कर दिया गया था, जो बाराबंकी का दूसरा लोकप्रिय नाम भी है।
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बाराबंकी का इतिहास
यूपी के बाराबंकी जिले को लेकर यह भी मान्यता है कि प्राचीन समय में यह जिला सूर्यवंशी राजाओं द्वारा शासित राज्य का हिस्सा था, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। वहीं यह जिला चंद्रवंशी राजाओं के शासनकाल में बहुत लंबे समय तक रहा था। महाभारत युग के दौरान, यह ‘गौरव राज्य’ का हिस्सा था, पांडव ने अपनी मां कुंती के साथ, अपने राज्य निर्वासन का कुछ समय घाघरा नदी के तट पर व्यतीत किया था। यह स्थान सूर्यवंशियों द्वारा शासित क्षेत्र का हिस्सा था। भगवान राम एक ही वंश के थे।
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वहीं इस जिले को दारियाबाद के नाम से जाना जाता था, जिसका मुख्यालय दारियाबाद शहर था, जिसे मोहम्मद शाह शारिकी की सेना के एक अधिकारी दरिआब खां द्वारा स्थापित किया गया था। यह 1858 ई. तक जिला मुख्यालय बना रहा। 1859 ई. में जिला मुख्यालय को नवाबगंज में स्थानांतरित कर दिया गया था जिसे अब बाराबंकी कहा जाता है। जिले के विस्तार के लिये अंग्रेजों द्वारा, तब दरियाबाद जिले में कुर्सी को जिला लखनऊ और हैदरगढ़ को जिला रायबरेली से जोड़ा गया था।
वहीं अगर ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की माने तो महमूद ग़ज़नी के भाई सैय्यद सालार मसूद ने 1030 ई. में इस क्षेत्र पर आक्रमण किया था। उसी शताब्दी में मदीना के कुतुबुद्दीन गहा ने हिंदू रियासतों पर कब्जा कर लिया और फिर मुस्लिम प्रभुत्व स्थापित किया। महान मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान इस जिले को अवध और मानिकपुर सरकार के अधीन विभाजित किया गया था।
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उस अवधि के दौरान, कई राजाओं और राजकुमारियों ने उनके खिलाफ युद्ध छेड़कर इस जिले में ब्रिटिश शासन के विस्तार का विरोध किया। ब्रिटिश शासन के दौरान, कई राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और ऐसा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया, राजा बलभद्र सिंह, चेहलारी, महान क्रांतिकारियों के साथ-साथ लगभग 1000 क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया, प्रथम युद्ध की आखिरी लड़ाई भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई दिसंबर 1858 ई. में इसी जिले में लड़ी गई थी।
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जानें जिले का पर्यटन व धार्मिक स्थल
- लोधेश्वर महादेव मंदिर (महादेवा)
- देवा शरीफ
- पारिजात वृक्ष (किन्तूर)
- कुंतेश्वर महादेव
- मेड़नदास बाबा (अटवा धाम)
- कोटवा धाम
- सिद्धेश्वर महादेव, सिद्धौर
- सूफी सन्त हाजी वारिस अली शाह का मजार
- मरकामऊ में पूर्णेश्वर महादेव का मंदिर
- श्री समर्थ स्वामी जगजीवनसाहेब की तपोस्थली कोटवाधाम
- सिद्धौर
- बदोसराय
- किन्तूर
- सत्रिका
- भिताली
- मसौली
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बाराबंकी का बुनियादी नींव
बतादे कि इस जिले का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यहां कि मुख्य फसलें चावल, गेहूं, दालें और अन्य खाद्यान्न और गन्ना हैं। बाराबंकी को तीन नदियों में घाघरा, गोमती और कल्याणी है। इस जिले का ऊपरी हिस्सा रेतीला है जबकि निचला हिस्सा चिकनी मिट्टी वाला है। वहीं इस जिले में कुछ हस्तशिल्प और लघु उद्योग भी हैं। यहां कि यब भी मान्यता है कि नवाबों के शासनकाल के बाद से ही बाराबंकी बुनाई के लिए भी प्रसिद्ध है।
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बाराबंकी का राजनीतिक सफर
बाराबंकी लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो साल 1951—52 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहन लाल सक्सेना रहे। तो वहीं साल 1957 में कांग्रेस के ही स्वामी रामानंद शास्त्री चुने गये। हालांकि इसी साल हुए उपचुनाव में सोशलिस्ट पार्टी रामसेवक यादव यहां से चुनाव जीते। उसके बाद 1962 और 1967 में भी वह सोशलिस्ट पार्टी पार्टी से सांसद रहे। जिसके बाद साल 1971 में यह सीट फिर कांग्रेस के पास आ गयी जिसमें रूद्र प्रताप सिंह जीत हासिल किए।
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वहीं, 1977 और 1980 के लोकसभा चुनाव में यह भारतीय लोकदल और जनता पार्टी सेक्युलर के पास चली गई। साल 1984 में ‘इंदिरा लहर’ के दौरान कमला रावत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। उसके बाद साल 1989, 1991 और 1996 में राम सागर रावत ने यहां से जीत हासिल किए। जिसके बाद साल 1998 में पहली बार बाराबंकी सीट भाजपा के पलरे में गई। फिर साल 2004 में कमला रावत बसपा के टिकट पर सांसद बने। साल 2009 में कांग्रेस के पी.एल. पुनिया ने यहां से जीत हासिल की। वहीं, 2014 में ‘मोदी लहर’ ने प्रियंका रावत ने जीत हासिल की थी। वहीं अगर बात करें 2019 की तो उपेन्द्र सिंह रावत बीजेपी से जीते।
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संसद सदस्य
1952 – मोहनलाल सक्सेना (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1957 – स्वामी रामानंद शास्त्री (स्वतंत्र राजनीतिज्ञ)
1957- राम सेवक यादव (समाजवादी पार्टी)
1962 – राम सेवक यादव (सोशलिस्ट पार्टी)
1967 – राम सेवक यादव (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1971 – रूद्र प्रताप सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 – राम किंकर (जनता पार्टी)
1980 – राम किंकर (जनता पार्टी)
1984 – कमला प्रसाद रावत (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 – राम सागर रावत (जनता दल)
1991 – राम सागर रावत (जनता पार्टी)
1996 – राम सागर रावत (समाजवादी पार्टी)
1998 – बैजनाथ रावत (बी जे पी)
1999 – राम सागर रावत (समाजवादी पार्टी)
2004 – कमला प्रसाद रावत (बहुजन समाज पार्टी)
2009 – पीएल पुनिया (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2014 – प्रियंका सिंह रावत (बी जे पी)
2019 – उपेन्द्र सिंह रावत (बी जे पी)
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बाराबंकी का जातीय समीकरण
बाराबंकी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के सदस्यों के लिए आरक्षित है और यहां दलित आबादी अधिक होने के साथ-साथ कुर्मी प्रभाव भी काफी है यहां यादव बिरादरी के मतदाताओं की भी खासी तादाद है।