लोकसभा चुनाव 2024 : आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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जानें बस्ती जिले का इतिहास
भारत के यूपी में स्थित बस्ती जिला हैं, बतादें कि बस्ती नगरपालिका इस जनपद का मुख्यालय हैं, यह जनपद मंडल का भी मुख्यालय हैं जिसके अंतर्गत कुल तीन जनपद आते है जैसे कि बस्ती, सिद्धार्थनगर और संत कबीर नगर। यहीं वह पावन भूमि है जहां पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम हुआ करता था जिसको लेकर ऐसी मान्यता है की भगवान श्री राम, भाई लक्ष्मण के साथ ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में रहे थे। जिसके चलते ऋषि वशिष्ठ के नाम पर ही इस स्थान का नाम बस्ती पड़ गया राजा कल्हल ने इसका नाम बस्ती रखा। यहाँ की पावन कृषि भूमि काफी उपजाऊ हैं। लगभग सोलहवी शतबादी में यहाँ पर कल्हन राजा का राज्य था। बस्ती सन् 1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बना और उसके बाद 1865 में जिला मुख्यालय के रूप में स्थापित हुआ।
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जिले की प्रचीन गाथा
बस्ती जिला की पावन भूमि पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम का हुआ करता था वहीं प्राचीन काल में बस्ती जनपद के आस-पास की जगह कौशल देश का हिस्सा था। कौशल देश वहीं हिस्सा है जहां भगवान रामचन्द्र राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम थे जिनकी महिमा कौशल देश में फैली हुई थी, जिन्होंने आदर्श राज्य और आलौकिक राम राज्य की स्थापना थी। वहीं परंपरा के अनुसार, राम के बड़े बेटे कुश कौशल के सिंहासन पर बैठे, जबकि छोटे बेटे लव को राज्य के उत्तरी भाग का शासक बनाया गया जिसकी राजधानी श्रावस्ती था। इक्ष्वाकु से 93वां पीढ़ी और राम से 30 वीं पीढ़ी में बृहद्वल था, यह इक्ष्वाकु शासन का अंतिम प्रसिद्ध राजा था, जो महान महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह में मारा गया था।
यह कहा जाता है कि प्रमुख राजपूत कुलों के आगमन से पहले, इन जिलों में स्थानीय हिंदू और हिंदू राजा थे और कहा जाता है कि इन्ही शासकों द्वारा भार, थारू, दोमे और दोमेकातर जैसे आदिवासी जनजातियों और उनके सामान्य परम्पराओ को खत्म कर दिया गया, ये सब कम से कम प्राचीन राज्यों के पतन के बाद और बौद्ध धर्म के आने के बाद हुआ। इन हिंदुओं में भूमिहार ब्राह्मण, सर्वरिया ब्राह्मण और विसेन शामिल थे। पश्चिम से राजपूतों के आगमन से पहले इस जिले में हिंदू समाज का राज्य था। 13वीं सदी के मध्य में श्रीनेत्र पहला नवागंतुक था जो इस क्षेत्र में आ कर स्थापित हुआ। जिनका प्रमुख चंद्रसेन पूर्वी बस्ती से दोम्कातर को निष्कासित किया था। गोंडा प्रांत के कल्हण राजपूत स्वयं परगना बस्ती में स्थापित हुए थे।
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चित्तौड़ से तीन प्रमुख मुकुंद भागे थे जिनका जिला बस्ती की अविभाजित हिस्से पर शासन था जो अब जिला सिद्धार्थ नगर में है। । 14वीं सदी की अंतिम तिमाही तक बस्ती जिले का एक भाग अमोढ़ा पर कायस्थ वंश का शासन था।
तहसील
बस्ती के प्रत्येक जिला तहसील में विभाजित है यह कलेक्टर मैजिस्ट्रेट द्वारा सशक्त है। सभी उप-विभाजन (तहसील) एसडीएम (उप-विभागीय मजिस्ट्रेट) के प्रभारी हैं। उत्तर प्रदेश स्थित बस्ती जिला, राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से एक है। यह सीट साल 1951 से अस्तित्व में है और अब तक 14 नेता सांसद हो चुके हैं। बस्ती जिले में पांच विधानसभा सीटें – बस्ती सदर, रुधौली, हर्रैया, कप्तानगंज और महादेवा हैं।
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बस्ती जिला के संसद सदस्य
- 1951 – उदय शंकर दुबे – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1957 – राम गरीब स्वतंत्र राजनीतिज्ञ – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1957^ – केशव देव मालवीय – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1962 – केशव देव मालवीय – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1967 – शेओ नारायण – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1971 – अनंत प्रसाद धूसिया – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1977 – शेओ नारायण – (जनता पार्टी)
- 1980 – कल्पनाथ सोनकर – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1984 – राम अवध प्रसाद – (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- 1989 – कल्पनाथ सोनकर – (जनता दल)
- 1991 – श्याम लाल कमल -(बी जे पी)
- 1996 – श्रीराम चौहान -(बी जे पी)
- 1998 – श्रीराम चौहान -(बी जे पी)
- 1999 – श्रीराम चौहान -(बी जे पी)
- 2004 – लाल मणि प्रसाद -(बहुजन समाज पार्टी)
- 2009 – अरविन्द कुमार चौधरी -(बहुजन समाज पार्टी)
- 2014 – हरीश द्विवेदी -(बी जे पी)
- 2019 – हरीश द्विवेदी -(बी जे पी)
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बस्ती का जातीय समीकरण
यह प्रख्यात साहित्यकार रामचंद्र शुक्ल की भी धरती है। बस्ती क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का सातवां सबसे बड़ा जिला है। यहां पर दलित, ब्राह्मण, क्षत्रिय, कुर्मी और मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक क्षेत्र में लगभग 6 लाख सवर्ण, 6.50 लाख ओबीसी, 5 लाख अनुसूचित जाति और 2 लाख मुस्लिम हैं। वहीं 2019 के मुताबिक कुल मतदाता 18,31,666 रहे। इनमें 990184 पुरुष, 841345 महिला और 137 थर्ड जेंडर के मतदाता थे।
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बस्ती सीट का इतिहास
जनपद बस्ती में एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र 61- बस्ती है। देश की आजादी के बाद बस्ती में 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ थे। उस समय चुनाव में हर तरफ कांग्रेस का ही परचम था। जिसमें पहले चुनाव में बस्ती से उदय शंकर दुबे ने जीत हासिल की थी। वहीं 1957 में हुए दूसरे चुनाव में निर्दल उम्मीदवार के तौर पर बस्ती से रामगरीब विजयी रहे। 1957 में ही हुए उपचुनाव और 1962 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा किया और जीत हासिल की। केशव देव मालवीय यहां से विजयी रहे। जिसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1967 में शिवनारायण और 1971 में अनंत प्रसाद धूसिया ने जीत हासिल की।
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1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर शिवनारायण जीते। 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) के उम्मीदवार कल्पनाथ सोनकर ने जीत हासिल की। 1984 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी राम अवध प्रसाद विजयी रहे। इसके बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर कल्पनाथ सोनकर विजयी रहे। रामजन्मभूमि आंदोलन के माहौल में 1991 में पहली बार बीजेपी ने यहां कमल खिलाया। इसके बाद लगातार 1996, 1998 और 1999 में भाजपा उम्मीदवार ही यहां से जीतते रही। फिर आया 2004 का चुनाव इस बार बसपा के लालमणि प्रसाद ने इस सीट पर नीला झंडा लहराया। 2009 के चुनाव में भी बसपा ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। इस बार अरविंद कुमार चौधरी यहां से सांसद बने।
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2014 में मोदी लहर में एक बार फिर से आई और भगवा का परचम लहराया। हरीश द्विवेदी ने जीत हासिल की जिसे 2019 में भी बरकरार रखा। हरीश द्विवेदी वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं। वहीं जातीय समीकरण के आधार पर बीजेपी को यहां ऐसे उम्मीदवार की दरकार है जो सपा-बसपा गठबंधन पर भारी पड़ी। 2019 में फिर से बस्ती में कमल खिला दे। कहा जा रहा है कि अगर इस सांचे में हरीश द्विवेदी फिट नहीं बैठे तो उनका पत्ता गोल भी हो सकता है। हालांकि इस बाबत भाजपा अभी कुछ नहीं बोल रही है।