लोकसभा चुनाव: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं और कहा जाता हैं केंन्द्र की सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता हैं।
जानें साक्षी महाराज का जीवन
यूपी की लोकसभा 80 सीटों में से उन्नाव की सीट की कमान स्वामी सच्चिदानंद साक्षी महाराज के हाथ में हैं। बता दे कि स्वामी सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज का जन्म 12 जनवरी 1956, में हुआ था। साक्षी महाराज बीजेपी से संबंधित एक भारतीय राजनीतिक और धार्मिक नेता हैं। साक्षी महाराज का जन्म यूपी के कासगंज जिले के साक्षी धाम में हुआ था। उनके पिता आत्मानंदजी महाराज प्रेमी और माता मदालसा देवी लोधी थीं। बताते चले कि साक्षी लोध समुदाय से हैं जिसे उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है। साक्षी महाराज के पास श्री निर्मल पंचायती अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की उपाधि है। वह साक्षी महाराज समूह के निदेशक भी हैं जिसके भारत में 17 शैक्षणिक संस्थान और कई आश्रम हैं।
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साक्षी महाराज का राजनीति सफर
साक्षी महाराज ने शुरूआत भाजपा से की थीं और लोध समुदाय से आने वाले एक अन्य भाजपा नेता कल्याण सिंह और एक अन्य भाजपा नेता कलराज मिश्रा के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। 1991 में लोकसभा के लिए चुने गए मथुरा, 1996 और 1998 फर्रुखाबाद से, जहां लोधी बहुमत है। वहीं 1999 के आम चुनाव में, भाजपा द्वारा फर्रुखाबाद से टिकट नहीं दिए जाने के बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार किया।
1999 के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद मुलायम सिंह ने उन्हें औपचारिक रूप से समाजवादी पार्टी में शामिल कर लिया। साक्षी महाराज ने कहा कि भाजपा की नीतियां समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए अनुकूल नहीं हैं। बताते चले कि अटल बिहारी वाजपेई के आदेश पर उनका टिकट काट दिया गया था। उस समय साक्षी, वाजपेयी के करीबी सहयोगी ब्रह्म दत्त द्विवेदी की हत्या में आरोपी थे। 2000 में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया।
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बता दें कि भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित होने से पहले साक्षी महाराज 2000 से 2006 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री हासिल की है और साक्षी महाराज समूह के बैनर तले भारत भर में विभिन्न शैक्षणिक संस्थान और आश्रम चलाते हैं, जिसके लिए वह इसके वर्तमान निदेशक के रूप में भी काम कर रहे हैं। उन्होंने 2014 का आम चुनाव उन्नाव उत्तर प्रदेश से जीत हासिल की। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें लगता है कि यह देश का आखिरी चुनाव है।
वहीं जनवरी 2002 में उन्होंने समाजवादी पार्टी की आलोचना करते हुए उस पर तानाशाही, भाई-भतीजावाद, जातिवाद और पूंजीवाद का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वह समाजवादी पार्टी में बने रहेंगे लेकिन भाजपा उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे।
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साक्षी महाराज पर लगे आरोप
साक्षी महाराज राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल थे और बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के एक आरोपी के रूप में उनपर मुकदमा चल रहा है। अगस्त 2000 में, इटा के एक कॉलेज के प्राचार्य ने साक्षी और उनके दो भतीजों, पदम सिंह और शिवराम राम पर सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ़ शिकायत दर्ज की। उनके दावे का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत न होने के कारण उन्हें बरी कर दिया गया। दिसंबर 2005 में, कुछ सांसदों को एमपीएलएडीएस फंड का दुरुपयोग करते हुए एक रिपोर्ट जारी की साक्षी महाराज उन अभियुक्तों में से थे। 2012 में, पुलिस ने साक्षी और उनके सहयोगियों को 47 वर्षीय सुजाता वर्मा की हत्या के लिए गिरफ्तार किया, जिनकी इटा में साक्षी के आश्रम से लौटते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 2018 में श्मशान भूमि से जुड़े भूमि विवाद मामले में भाजपा सांसद साक्षी महाराज के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था।
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उन्होंने उन्नाव निर्वाचन क्षेत्र से 16वीं लोकसभा चुनाव लड़ा और 310173 मतों के अंतर से जीत हासिल की। अपने साथियों के बीच साक्षी महाराज के रूप में प्रसिद्ध ये बड़ा राजनीतिक नाम बलात्कार, हत्या और अपहरण से लेकर कई आपराधिक षड्यंत्रों में फंसा हुआ हैं। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया जा चुका है, लेकिन उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों का समर्थन करने के लिए सबूतों की कमी के कारण उन्हें बरी कर दिया गया था।
राजनीतिक घटनाक्रम
1991 उन्होंने मथुरा से संसदीय चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा और जद बी के लक्ष्मी नारायण चौधरी को 15512 मतों के अंतर से हराया।
1996 उन्हें फ़र्रुख़ाबाद से दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया जहाँ उन्होंने सपा के अनवर मोहम्मद खान को 84,978 मतों के अंतर से हराया।
1998 उन्होंने फर्रुखाबाद सीट के लिए सपा के अरविंद प्रताप सिंह को 32,211 मतों से हराया।
1999 उन्होंने संसदीय चुनाव में सपा के टिकट से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा छोड़ दी, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।
2000 वे राज्यसभा में चुने गए।
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2014 उन्होंने भाजपा के टिकट के साथ 16 वीं लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल कीह और सपा के अरुण शंकर शुक्ला को 21,873 मतों के अंतर से हराया।
2019 के लोकसभा चुनाव में साक्षी महाराज ने उन्नाव से रिकार्ड तोड़ जीत हासिल की थी, उस समय प्रचार करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें लगता है कि यह देश का आखिरी चुनाव है।
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निष्कर्ष: अगर उन्नाव लोकसभा सीट के समीकरण की बात करें तो निर्णायक भूमिका में यहां दलित, सवर्ण और मुस्लिम मतदाता मौजूद हैं। लगभग 21 लाख मतदाताओं वाली इस लोकसभा सीट में 13.63 लाख वोट दलित, सवर्ण और अल्पसंख्यक जाति से हैं, और यही मतदाता इस सीट पर विजेता का निर्णय करते हैं।
अब इस सीट पर सत्ता पक्ष यानि बीजेपी और विपक्ष किसको टिकट देता हैं वो भविष्य के गर्भ में निहित हैं पर समीकरण के मुताबिक यहां सबकी कोशिश निर्णायक भूमिका वाले वर्ग में से ही चुनने की होगी क्योंकि बिना जातीय समीकरण को संभाले उन्नाव जैसी महत्वपूर्ण लोकसभा सीट को जीतना संम्भव नहीं हैं।