लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं और कहा जाता हैं केंन्द्र की सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता हैं।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें सत्यदेव पचौरी का राजनीतिक शुरुआत
नरेंद्र मोदी का इतिहास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के महेसाणा स्थित वडनगर में हुआ था। मोदी ने मात्र 17 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था, जिसके बाद आरएसएस प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का चुनौतीपूर्ण सफर की शुरुवात की थी। मोदी छह भाई- बहनों में से तीसरे नंबर पर हैं इनका स्वभाव बाकी बच्चों से बचपन से ही अलग ही था। मोदी की मां नरेंद्र को प्यार से नरिया बुलाती थी वहीं दोस्तों के बीच वो एनडी के नाम से प्रिय थे। नरेन्द्र मोदी का बचपन बेहद संघर्ष भरा रहा है। उनका घर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना हुआ बेहद छोटा घर था जिसमें न कोई खिड़की थी और ना ही बाथरूम। वहीं परिवार पालनपोषण करने के लिए उनके पिता दामोदरदास मोदी वडनगर रेलवे स्टेशन के सामने चाय बेचते थे। जहां पर 6 साल के छोटे मोदी पढ़ाई से समय निकाल कर पिता के साथ दुकान में उनका हाथ बंटाया करते थे, और चाय बेचने में मदद करते थे।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर जानें यह जानकारी…
आखिर क्यों छोड़े घर
मोदी ने 17 साल की किशोरावस्था तक आते आते उनके भीतर का द्वंद्व आकार लेने लगा था। यह द्वंद्व था देश के लिए कुछ कर गुजरने का… जिसके चलते नरेन्द्र मोदी ने एक असाधारण निर्णय लिया। उन्होंने घर छोड़कर देश भ्रमण करने का फैसला किया। परिवार का हर सदस्य उनके इस फैसले से चकित था, लेकिन मोदी की जिद के आगे किसी की नहीं चली और इसे स्वीकार किया। घर त्यागने के दिन मां ने नरेन्द्र मोदी के लिए विशेष अवसरों पर बनाया जाने वाला मिष्ठान बनाया और मस्तक पर परम्परागत तिलक लगाकर विदा किया।
जब मोदी ने घर छोड़ा तो वो देश के हर हिस्से में गए। जिसके साथ ही हिमालय के वह गुरूदाचट्टी में ठहरे जबकि पश्चिम बंगाल में रामकृष्ण आश्रम को ठिकाना बनाया। देश के पूर्वोत्तर हिस्सों में भी गए। भारत भ्रमण के दौरान उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों का अनुभव किया। इन यात्राओं ने उनके व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया। यह पीएम मोदी की आध्यात्मिक जागृति का वह समय था जब वह स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुए। पीएम मोदी स्वामी विवेकानंद के बड़े प्रशंसकों में शामिल हैं।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें कानपुर का चुनावी इतिहास
मोदी का सियासी सफर
जब नरेन्द्र मोदी दो साल के भारत भ्रमण के बाद घर वापस तो लौटे लेकिन खुद को रोक नहीं पाए और महज दो हफ्तों के बाद अगले सफर की शुरुआत कर दी, मगर इस बार उनका लक्ष्य बेहद स्पष्ट और निर्धारित था। जिसके बाद से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ने का निश्चय करके अहमदाबाद के लिए रवाना हुए। उन्होंने देशसेवा का प्रण लिया और आरएसएस का नियमित सदस्य बन गए। वर्ष 1972 में उनको प्रचारक की जिम्मेदारी मिली। इसके साथ उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें लखनऊ के सांसद का राजनीतिक सफर
संघ के शीर्ष नेताओं से मुलाकात
संघ के प्रचारक के रूप में वह गुजरात के हर हिस्से में गए। यह 1973 का दौर था जब मोदी को सिद्धपुर में एक विशाल सम्मलेन आयोजित करने जिम्मेदारी मिली जहां संघ के शीर्ष नेताओं से उनका मिलना हुआ। यह ऐसा समय था जब गुजरात समेत पूरा हिन्दुस्तान बेहद अस्थिर माहौल से गुजर रहा था। उस समय अहमदाबाद साम्प्रदायिक दंगों से जूझ रहा था। देशभर में लोग कांग्रेस से नाराज थे नतीजतन कांग्रेस को 1967 के लोकसभा चुनावों में करारी हार मिली। तब कांग्रेस इंदिरा एवं अन्य असंतुष्ट गुट में बंट गई।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर का राजनीति सफर
अकाल और महंगाई से गुजरात में भड़की चिंगारी
वर्ष 1970 के शुरुआत में इंदिरा की अगुवाई वाली कांग्रेस से लोगों का मोहभंग होने लगा। इसी दौरान अकाल और महंगाई ने आम लोगों का जीना दूर्भर कर दिया। यह वह दौर था जब आम आदमी के लिए सरकार से कोई राहत नहीं मिल रही थी। दिसम्बर 1973 में मोरबी (गुजरात) इंजीनियरिंग कॉलेज से विरोध की चिंगारी भड़की जिसने अन्य राज्यों को भी अपनी चपेट में ले लिया। बड़ी संख्या में महंगाई और बेरोजगारी से परेशान लोग इन प्रदर्शनों में जमा होने लगे और सरकार के खिलाफ एक बड़ा आन्दोलन खड़ा हो गया।
वहीं जयप्रकाश नारायण भी इस आन्दोलन के साथ उतरे और अहमदाबाद आगमन पर उनकी मुलाकात नरेन्द्र मोदी से हुई। आखिरकार जनआक्रोश के चलते गुजरात में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। जनाक्रोश की आंच केंद्र की सत्ता तक महसूस की गई नतीजतन 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल में विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, मोरारजी देसाई समेत कई नेता जेल में डाल दिए गए। आपातकाल के दौरान पीएम मोदी ने पर्दे के पीछे रहकर महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें रीता बहुगुणा जोशी का सियासी सफर
इंदिरा गांधी ने लगाया आपातकाल विरोध
नरेन्द्र मोदी ने आपातकाल विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। वह इस तानाशाही के खिलाफ गठित की गई गुजरात लोक संघर्ष समिति (जीएलएसएस) के सदस्य थे। बाद में उन्हें महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। मोदी इस आंदोलन में भेष बदल कर अपनी सक्रिय की भूमिका निभा रहे थे। आखिरकार आपातकाल खत्म हुआ जिसके बाद साल 1977 के संसदीय चुनावों में इंदिरा गांधी की करारी शिकस्त हुई।
1985 में आरएसएस ने नरेंद्र मोदी को भाजपा को सौंपा था। इस चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली। 1987 में नरेंद्र मोदी को गुजरात ईकाई का ऑर्गेनाइजिंग सचिव बनाया गया। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा और 1991 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा को आयोजित करने में मदद की। नरेन्द्र मोदी के संगठनात्मक काम की सराहना हुई और उन्हें दिल्ली बुलाया गया। नरेन्द्र मोदी संघ के काम में जुटे हुए थे।
जिसके बाद में 1988-89 के दौरान नरेन्द्र मोदी को गुजरात भाजपा में महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई और फिर मोदी का सियासी सफर तेजी से आगे बढ़ा। नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की। इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए। 1995 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की संसदीय सीट का इतिहास…
गुजरात से दिल्ली के केंद्र तक का सफर
पीएम मोदी जिसके बाद पांच राज्यों के प्रभारी बनाए गए। साल 2001 में गुजरात में एक विनाशकारी भूकंप आया जिसमें 20 हजार लोगों की मौत हो गई। प्रशासनिक लापरवाही के चलते तत्कालीन सीएम केशुभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा। पीएम मोदी को दिल्ली से गुजरात भेजा गया। वह मुख्यमंत्री बनाए गए। साल 2012 से उन्हें पीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रचारित किया जाने लगा। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी ने पीएम उम्मीदवार के तौर पर भाजपा को बड़ी सफलता दिलाई। इसके बाद वे लगातार देश की कमान संभाल रहे हैं।
1995 में नरेंद्र मोदी को भाजपा का राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया और वह गुजरात से दिल्ली पहुंचे। उन्होंने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी के चुनाव अभियान का नेतृत्व भी किया। इसके एक साल बाद ही उनका प्रमोशन हो गया। पार्टी ने उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया।
6 वर्षों तक केंद्रीय टीम में काम करने के बाद बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को फिर गुजरात वापस भेजा। 7 अक्टूबर 2001 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राजकोट में उन्होंने कांग्रेस के अश्विनी मेहता को 14 हजार से अधिक मतों से चुनाव हरा दिया। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी का यह पहला चुनाव था। नरेंद्र मोदी 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहे। उस समय गुजरात में भूकंप आया था और भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें बनारस सीट चुनाव का धार्मिक और राजसी इतिहास
मोदी सत्ता का दिल दहला देने वाला हादसा
जब मोदी मुख्यमंत्री पद पर सत्ता संभाल रहे थे तक लगभग पांच महीने बाद ही गोधरा रेल हादसा हुआ जिसमें कई हिंदू कार्यसेवक मारे गए। इसके ठीक बाद फरवरी 2002 में ही गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ दंगे भड़क उठे। इन दंगों में सरकार के मुताबिक एक हजार से ज्यादा और ब्रिटिश उच्चायोग की एक स्वतंत्र समिति के अनुसार लगभग 2000 लोग मारे गए। जिसमें ज्यादातर मुसलमान थे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौर किया तो उन्होंनें उन्हें ‘राजधर्म निभाने’ की सलाह दी जिसे वाजपेयी की नाराजगी के संकेत के रूप में देखा गया।
जिसके बाद मोदी पर आरोप लगे कि वे दंगों को रोक नहीं पाए और उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया। जब भारतीय जनता पार्टी में उन्हें पद से हटाने की बात उठी तो उन्हें तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे की ओर से समर्थन मिला और वे पद पर बने रहे। फिर भी गुजरात में हुए दंगों का असर ये हुआ कि इस मामले को लेकर कई बात देशों में उठी और नतीजें के तौर पर मोदी को अमरीका जाने का वीजा नहीं मिला इतना ही नहीं ब्रिटेन ने भी दस साल तक उनसे अपने रिश्ते तोड़े रखे।
कोर्ट ने दी मोदी को क्लीन चिट
गुजरात में हादसे को लेकर मोदी पर आरोप लगते रहे लेकिन राज्य की राजनीति पर उनकी पकड़ लगातार मजबूत होती गई। वहीं मोदी के खिलाफ दंगों से संबंधित कोई आरोप किसी कोर्ट में सिद्ध नहीं हुए हैं। हालांकि, खुद मोदी ने भी कभी दंगों को लेकर न तो कोई अफसोस जताया है और न ही किसी तरह की माफी मांगी है। महत्वपूर्ण है कि दंगों के चंद महीनों के बाद ही जब दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में मोदी ने जीत दर्ज की थी तो उन्हें सबसे ज्यादा फायदा उन इलाकों में हुआ जो दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित थे। इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया और फिर जीतकर लौटे, फिर 2012 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी रहे और अब केंद्र में अपने नेतृत्व में सरकार चला रहे हैं।
इंटरनेट पर पॉपुलर नेताओं में नं. 1 पर मोदी
नरेंद्र मोदी तकनीक का इस्तेमाल भी बखूबी करते हैं। वहीं अगर आज फेसबुक और ट्विटर पर देखें तो सबसे ज्यादा उनके फॉलोअर्स मिल जाएंगे। इंटरनेट पर पॉपुलर नेताओं की सूची में वो अव्वल हैं। वर्ष 2008 में मोदी ने टाटा को नैनो कार संयंत्र खोलने के लिए आमंत्रित किया, अब तक गुजरात बिजली, सड़क के मामले में काफी विकसित हो चुका था। वर्ष 2008 में मोदी ने टाटा को नैनो कार संयंत्र खोलने के लिए आमंत्रित किया। देश के धनी और विकसित राज्यों में उसकी गिनती होने लगी थी। मोदी ने अधिक से अधिक निवेश को राज्य में आमंत्रित किया।
पीएम मोदी का राजनीतिक घटनाक्रम
22 अक्टूबर, 2012 को ब्रिटिश उच्चायुक्त ने मोदी से मिलकर गुजरात की तारीफ की और वहां निवेश किए जाने की बात की, इसके साथ दंगों के बाद बाधित हुए ब्रिटेन और गुजरात के संबंध फिर से बहाल हो गए। नरेंद्र मोदी ने विवेकानंद युवा विकास यात्रा के जरिए अपने लिए काफी जनसमर्थन जुटाया। 20 दिसंबर, 2012 को मोदी ने फिर बहुमत हासिल किया और राज्य में तीसरी बार अपनी सत्ता का डंका बजाया। 2012 में मोदी फिर से मणिनगर से चुने गए। इस बार उन्होंने भट्ट श्वेता संजीव को 34097 मतों से पराजित किया। उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री के रूप में चौथे कार्यकाल के लिये शपथ ली। बाद में उन्होंने 2014 में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया।
2014 में नरेंद्र मोदी 14वें और भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री के रूप में चुने गए। मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली थी। वह ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की आजादी के बाद पैदा हुए पहले प्रधान मंत्री बने। जिसके बाद 2019 की 23 मई को नरेंद्र मोदी एक बार फिर वाराणसी से सांसद चुने गये। उन्होंने लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट पर कांग्रेस के नेता अजय राय को हराया। इसी जीत के साथ उन्हें फिर से भारत का प्रधानमंत्री चुना गया।
2019 की 30 मई को नरेंद्र मोदी ने फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 31 मई को कैबिनेट का विस्तार किया। पीएमओ के अलावा डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, मिनिस्ट्री ऑफ पर्सनल, पब्लिक ग्रिएवांसेस एंड पेंशन, डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस और वो सभी मंत्रालय स्वयं के पास रखे, जो किसी अन्य मंत्री को आवंटित नहीं हुए। उन्हें 2015, 2016 और 2018 में दुनिया में 9वें सबसे शक्तिशाली व्यक्ति का दर्जा मिला। 2015 में मोदी दुनिया के सबसे महान नेताओं “की पहली वार्षिक सूची में पांचवें स्थान पर थे।
Read More: लोकसभा चुनाव 2024: जानें उन्नाव सीट का चुनावी इतिहास
2024 का प्रयास
वहीं 2024 लोकसभा चुनाव से पहले पीएम देश के साथ विदेश का भी भ्रमण कर रहे हैं, वहीं पीएम से मुकाबले को लेकर और चुनाव में जीत के लिए विपक्ष ने भी गठबंधन कर I.N.D.I.A का गठन किया हैं ऐसे में पीएम अब India का नाम बदल कर भारत रखने जा रहे हैं। वहीं हाल में भारत में आयोजित G-20 ने भी भारत को आर्थिकव्यवस्थाओं के साथ विदेशी सम्बन्धों में सुधारने के लिए कारागार साबित हो रहा हैं।
वहीं एक समय ऐसा भी था जब पीएम को विदेशी वीजा देने के लिए मना कर दिया गया था मगर आज की बात करें तो पीएम देश के साथ विदेश में पसंद किये जाने वाले नेता हैं जिन्हें कई विदेश के लोग आंमत्रित करते हैं आपको बतादें कि अब तक में सभी नेताओं में से सबसे ज्यादा विदेश का दौरा करने वाले नेता पीएम मोदी हैं। जिन्होंने देश की व्यवस्था के सुधार के साथ विदेश से भी मजबूत रिश्ते जोड़ने का काम किया हैं। वहीं अब देखना हैं कि इस बार कौन सत्ता पर आएंगा, मोदी का साथ या विपक्ष का गठबंधन…