Input: Arti
- आजादी दी नहीं जाती…ली जाती है- नेताजी
- “तुम मुझे खून दो मैं तूम्हें आजादी दूंगा”
- “आज़ादी दी नहीं जाती, छीनी जाती है”
- “सफलता हमेशा असफलता की स्तंभ पर खड़ी होती हैं”
- “सफलता दूर हो सकती है,
- लेकिन वह मिलती जरूर है”
Subhash Chandra Bose: दे सलामी इस तिरंगे को जिससे तेरी शान है! सर ऊंचा रखना हमेशा इसका, जब तक दिल में जान है -आजादी की बात हो और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जिक्र ना हो, ऐसा भला हो सकता हैं.. क्या… सुभाष चन्द्र बोस केवल एक इंसान का नाम नही हैं। बल्कि ये नाम हैं उस वीर का, जिनकी रगों में केवल देशभक्ति का खून बहता था। बोस भारत मां के उन वीर सपूतों में से एक हैं। जिनका कर्ज आजाद भारतवासी कभी नहीं चुका सकता हैं। अपनी मातृभूमि को गुलामी की जंजीर से आजाद कराने के लिए खुशी-खुशी अपना लहू बहाने वाले इस लाल के बारे आइए जानते हैं विस्तार से…
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भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस के रुप में मना रहा
15 अगस्त का दिन हर भारतीय नागरिकों के लिए बेहद ही खास है..क्यूकि इस दिन ही भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी… इस लिए इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रुप मानाते हैं। भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस के रुप में मना रहा हैं। इस आजादी में एक वीर जिनका महत्तवपूर्ण योगदान रहा। जी हा हम बात कर रहे सुभाषचन्द्र बोस जी की। जिनका जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था।
जलियावाला बाग वाला नरसंहार देखा
उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के महशहूर वकील थे। बोस एक संभ्रात परिवार से थे। इसलिए इन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई थी। इन्होनें कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की थी और साल 1919 में भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड पढ़ने गए और भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1920 में आवेदन किया और परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया। लेकिन भारत मां के इस दुलारे बेटे ने जब जलियावाला बाग वाला नरसंहार देखा। जब फिर इनका मन व्यथित हो गया और 1921 प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद सुभाषचन्द्र बोस महात्मा गांधी के पास आए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए।
“ तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूंगा”
आइसीएस अफसर बनकर उन्होनें अपनी काबिलियत का लोहा अपने दुश्मनों को मनवा दिया था। लेकिन उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन को न सिर्फ तहे दिल से अंगीकार किया। बल्कि “ तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा देकर खुद आजादी की प्रेरणा बन गए..वह इसी हुकार के साथ पूरे देश को जगाने में लग गए। उनके विचारों और व्यक्त्तिव में ऐसा करिश्मा था..कि जो भी सुनता ,वह उनका हो जाता..उनकी लोकप्रियता आसमान चूमने लगी..और वह जन-जन के नेताजी हो गए।
बंगाल आन्दोलन का नेतृत्व किया
सुभाष चन्द्र बोस ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत देश में चल रह असहयोग आन्दोलन से की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता हासिल की। 20 जुलाई ,1921 को उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। लेकिन ,वैचारिक समानता न होने के कारण उन्होंने देशबेधु चितरंजन दास के साथ मिलकर बंगाल आन्दोलन का नेतृत्व किया। सुभाष चन्द्र बोस क्रांतिकरी विचारों के व्यक्ति थे। उनके अन्दर असीम साहस, अनूठे शौर्य और अनूठी संकल्प शक्ति का अनंत प्रवाह विघमान था।
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छह महीने के लिए जेल जाना पड़ा
उन्हें वर्ष 1921 में अपने क्रांतिकारी विचारों और गातिविधियों का संचालन करने के कारण पहली बार छह महीने के लिए जेल जाना पड़ा था। इसके बाद तो जेल यात्राओं, अंग्रजी अत्याचरों और प्रताड़नाओं को झेलने का सिलसिल चलता रहा। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा कई बार लंबे समय तक नजरबंद भी रखा गया। फिर भी सुभाष चन्द्र बोस अपने इरादों से कभी भी टस से मस नही हुए।
ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने की जिद्दो जहद में पूरा देश उबल रहा था। तब देश में और देश के बाहर कई वीर सपूतों ने अपने खून से आजादी की इस अग्निकुंड में लौह प्रचुलित कर रहे थे। जिनसे अंग्रेज भी खौफ खाते थे। ऐसे ही एक महान सपूत थे। जिनका नाम सुभाष चन्द्र बोस था। जिन्होने भारत से हजारों किलों मीटर दूर एक ऐसी सेना का निर्माण किया। जिसके नाम से ब्रिटिश हुकूमत भी कापती थी।
भारत के बड़े भू भाग को आजादी…
नेता जी की नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने अपनी बहादुरी से ना केवल गोरी सेना को कई मोर्चो पर हराया बल्कि भारत के एक बड़े भू भाग को आजाद भी करा दिया। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से स्वतंत्रता इस लड़ाई के दौरान देश के बाहर आ विभाजित भारतीय सरकार भी बनाई थी और उस सरकार का नाम था। आजाद हिन्द सरकार के पास अपनी फौज और अपनी बैंक औऱ अपना अधिकारिक तंत्र था और सुभाष चन्द्र बोस ही भारत की पहली आजाद सरकार के प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, विदेश मंत्री थे और उनका एक सपना था कि लाल किले से तिरंगा फैराना और देश को गुलामी की जंजीरो से मुक्त काराना।
हर कसौटी पर महारथी बनकर उभरे
सुभाष चन्द्र बोस ने हमेशा अपनी इस सोच को जिया और दूसरों को जीने के लिए प्रेरित किया कि सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती हैं। नेताजी को बार-बार असफलताएँ मिली। मगर उन्होनें उन असफलताओं को अपने संघर्ष से विजायागाथा में परिवर्तित कर दिया। नगर निगम की राजनीति हो, आम कांग्रेसी से कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक का सफर हो या फिर आजाद हिंद फौज का संघर्ष, वह हर कसौटी पर महारथी बनकर उभरे।