Taiwan presidential election : ताइवान में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के विलियम लाई शिंग-ते विजयी घोषित हुए हैं.चीन ने ताइवान के नागरिकों को लाई शिंग-ते को वोट न देने की चेतावनी दी थी इसके बावजूद हुए चुनाव में वो जीतने में सफल रहे।चीन की तरफ से दी गई चुनौती के बाद भी ताइवान की जनता ने लाई का खुलकर समर्थन किया और उन्हें भारी मतों से विजयी बनाया है.ताइवान में केंद्रीय चुनाव आयोग के मुताबिक लाई शिंग-ते को 40.2 प्रतिशत वोट मिले हैं।
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लाई चिंग-ते ने ताइवान में जीता राष्ट्रपति चुनाव
राष्ट्रपति चुनाव में लाई चिंग ते के अलावा विपक्षी पार्टी कुओमिनतांग (केएमटी) के होउ यू इह और ताइवान पीपुल्स पार्टी के को वेन जे के बीच मुकाबला था. केएमटी को चीन समर्थित पार्टी माना जाता है. होऊ यू इह राजनीति में आने से पहले पुलिस फोर्स के हेड रह चुके हैं।ताइवान के चुनाव आयोग के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया कि,पूरे द्वीप पर 98 प्रतिशत मतों की गिनती पूरी हो चुकी है। प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार होउ यू-इह ने भी हार स्वीकार करते हुए लाई को जीत की बधाई दी है।
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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के रहे हैं विरोध
रूढ़िवादी पार्टी- कुओमितांग (के माई) के नेता होउ यू-इह और ताइवान पीपुल्स पार्टी के नेता को वेन-जे भी राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल थे। वेन-जे ताइपे के पूर्व मेयर रह चुके हैं। ताइवान में राष्ट्रपति चुनाव के बाद विलियम लाई की जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि विलियम लाई शपथ लेने के बाद चीन को खुलकर चुनौती देंगे। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रमुख लाई चीन और वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के धुर विरोधी माने जाते हैं।
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शी जिनपिंग से मिलेगी अब कड़ी चुनौती
माना जा रहा है कि ताइवान की स्वतंत्रता की पैरवी करने वाले लाई को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रशासन से कड़ी चुनौती मिलेगी। दरअसल, जिनपिंग अपनी महत्वाकांक्षी और विस्तारवादी- वन-चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को चीन का हिस्सा बताते रहे हैं। ये क्षेत्र राजनीतिक स्थिति के कारण बेहद महत्वपूर्ण भौगोलिग भूभाग है। ताइवान का चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि करीब आठ दशक से चीन इस पर नजरें गड़ाए बैठा है। 1940 के दशक से ही वास्तविक रूप से स्वतंत्र होने के बावजूद, चीन ताइवान के द्वीपों और उसके बाहरी क्षेत्रों पर दावा करता रहा है।