Amroha Loksabha Seat 2024: लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से सभी राजनीतिक दलों की नजर यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर है. हर एक दल यहां पर अपनी धाक जमाना चाहता है. कहते है कि यूपी में जिस भी दल ने अपनी पकड़ बना ली, उसके लिए दिल्ली की कुर्सी पाने की राह आसान हो गई. ऐसे में प्राइम टीवी यूपी की कुछ अहम लोकसभा सीटों से आपका परिचय कराना चाहती है, जिसका राजनीति में काफी महत्व है.
चुनाव यात्रा में आज बात एक और एतिहासिक महत्व वाली सीट की है. ये शहर धर्मपनिरपेक्षता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. वक्त दर वक्त इसने कई बदलाव भी देखे हैं. लेकिन इसका अस्तित्व कायम रहा. राजनीतिक दृष्टी से ये क्षेत्र ज्यादा चर्चा में तो नहीं रहती लेकिन इसका महत्व काफी है. कौन सी है ये सीट, क्या है इसका इतिहास, भूगोल और राजनीतिक तौर पर ये सीट कितनी अहम है.देखते हैं ये रिपोर्ट..
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यूपी के ऐतिहासिक शहरों में से एक
गंगा और कृष्णा नदी के किनारे अमरोहा शहर बसा हुआ है. ये यूपी के ऐतिहासिक शहरों में से एक है. इसका इतिहास 2400 वर्षों से भी ज्यादा पुराना और दिलचस्प है.कहा जाता है. इसकी स्थापना 479 ईसा पूर्व में बंसी राजवंश के राजा अमरजदा के शासनकाल के दौरान हुई थी और इसे हस्तिनापुर से अलग किया गया था. तारिख-ए-अमरोही के मुताबिक इसका उल्लेख हिंदू राज्य के रूप में किया गया है.
क्या है अमरोहा की खासियत?
अमरोहा में कपास और वस्त्र का बड़े स्तर पर उत्पादन होता है और कॉटन के कपड़े, हथकरघा बुनाई, मिटटी के बर्तन, चीनी मिल और गलीचे उत्पादन के छोटे उद्योग भी हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी अमरोहा का ठीक ठाक चर्चित स्थान है. ये पहले मुरादाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था.
आजादी के बाद पहली बार यहां हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मोहम्मद हिफजुर रहमान ने जीत हासिल की. इसके बाद ये कांग्रेस और बसपा का गढ़ बन गया. 2014 की मोदी लहर में यहां बीजेपी ने एक बार फिर वापसी की.इस बार यहां कंवर सिंह तंवर ने जीत हासिल की. 2019 में यहां के मतदाता बसपा के साथ गए और यहां दूसरी बार बसपा ने जीत हासिल की. इस बार इस सीट से 2019 में बसपा के उम्मीदवार दानिश अली ने जीत दर्ज की, जो 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए है.
सामाजिक और जातीय समीकरण बेहद दिलचस्प
अमरोहा के संसदीय क्षेत्र में यूपी विधानसभा की 5 सीटें आती हैं. इनमें धनौरा, नौगावां सादत, अमरोहा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर शामिल है.साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 5 में से तीन पर बीजेपी और दो सीटों पर सपा का कब्जा रहा था.यहां के समाजिक और जातीय समीकरण भी दिलचस्प हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में दलित, सैनी और जाट वोटर अधिक मात्रा में हैं. इसके साथ ही मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 20 फीसदी से ऊपर हैं. यहीं वजह है कि यहां 17 बार हुए लोकसभा चुनाव में 7 बार मुस्लिम सांसद चुने गए हैं.
जातीय समीकरण
मुस्लिम | लगभग 6.5 लाख |
जाट | लगभग 2 लाख |
राजपूत | लगभग 1.5 लाख |
एससी | लगभग 3 लाख |
गुर्जर | लगभग 50 हजार |
अमरोहा लोकसभा सीट- 2014
कंवर सिंह तंवर | बीजेपी | 528796 वोट | 48.3 प्रतिशत |
हुमेरा अख्तर | सपा | 370646 वोट | 33.8 प्रतिशत |
अमरोहा लोकसभा सीट- 2019
कुंवर दानिश अली | बीएसपी | 600744 वोट | 51.8 प्रतिशत |
कंवर सिंह तंवर | बीजेपी | 536380 वोट | 46.2 प्रतिशत |
हर पांच साल पर जनता सांसद बदल देती
अमरोहा जिले के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड भी है. यहां की जनता हर 5 साल बाद अपना सांसद बदल देती है. साल 1952 से लेकर 2019 तक कोई सांसद ऐसा नहीं रहा, जो इस सीट से लगातार दो बार जीत हासिल कर सका हो. यहां के वोटर अपने सांसद को हर 5 साल बाद बदल देते है और नए प्रत्याशी को सांसद बना देते हैं. देखना होगा कि क्या यह अनोखा रिकॉर्ड इस बार टूट पाएगा और अमरोहा की प्राचीन परंपरा बनी रहेगी.
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