Justice Yashwant Varma Case: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर नकदी की जली हुई गड्डियां मिलने के मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने इस मामले को “समय से पहले” बताया और कहा कि आंतरिक जांच पहले से चल रही है, इसलिए इस समय हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
जांच पूरी नहीं, तो कदम उठाना होगा गलत

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में ध्यान दिलाते हुए कहा कि, जब तक आंतरिक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक कोई ठोस कदम उठाना संभव नहीं है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने यह भी कहा कि जांच पूरी होने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पास कई विकल्प मौजूद होंगे। अगर जांच रिपोर्ट में कोई गड़बड़ी या अनियमितता दिखाई देती है, तो सीजेआई एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे सकते हैं या इस मामले को संसद के पास भेज सकते हैं।
कॉलेजियम की चुप्पी ने उठाए सवाल
यह जनहित याचिका अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी। नेदुम्परा ने तर्क दिया कि यह मामला पुलिस द्वारा जांचा जाना चाहिए, न कि आंतरिक समिति के माध्यम से। उनका कहना था कि आंतरिक समिति का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है और यह किसी आपराधिक मामले की जांच के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि इस मामले में जब्ती रिपोर्ट की अनुपस्थिति, सार्वजनिक जानकारी का विलंब और कॉलेजियम की चुप्पी ने आम जनता के मन में सवाल उठाए हैं, जिनका उत्तर दिया जाना चाहिए।
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हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को इस प्रक्रिया के समाप्त होने का इंतजार करने का निर्देश दिया और उन्हें यह आश्वासन दिया कि जांच पूरी होने के बाद, उपलब्ध विकल्पों का उपयोग किया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि इस समय जनता को मौजूदा प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है और इसे जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।