farmers movement : जहां एक तरफ लोकसभा चुनाव हैं, तो वहीं दूसरी तरफ किसान लगातार मोर्चे पर डटी है। कई दिनों से पंजाब और हरियाणा के किसान एमएसपी गारंटी कानून और अन्य मांगों को लेकर दिल्ली जाने की हठ किए बैठे हैं, तो वहीं चंडीगढ़ में किसान संगठनों और केंद्रीय मंत्रियों के बीच हुई कई दौर की वार्ता भी सफल नहीं हो सकी।कारण, किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की अपनी मांग पर अड़े रहे,सरकार ने किसानों की 10 मांगें मान ली हैं, लेकिन तीन मांगों पर बात अटकी है। जिसको लेकर किसान अपनी बातों पर अड़े हुए है, तो वहीं आज केंद्र से चौथे दौर की बैठक होगी । ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार की बैठक में कोई समाधान निकल सकता है…
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आंदोलन में कुछ महिलाएं बच्चों को भी साथ ले आईं..
वहीं कुछ महिलाएं बच्चों को भी साथ ले आईं हैं। वहीं, झड़प में घायल किसान इलाज करवाकर वापस मोर्चे में शामिल हो रहे हैं। बॉर्डर पर लगातार किसानों की गिनती बढ़ रही है। बॉर्डर से पहले करीब पांच किलोमीटर तक सड़क हजारों ट्रैक्टर-ट्रालियों से पट गई है। इनकी संख्या सात हजार के करीब बताई जा रही है।
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“अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करेंगे”
आपको बता दें कि चौधरी राकेश टिकैत ने फिर से सरकार को चेतावनी देते हुए दिल्ली घेरने की तैयारी कर ली है। सिसौली के किसान भवन में बोलते हुए चौधरी राकेश टिकैत ने कहा है कि-” केंद्र की सरकार किसी राजनीतिक पार्टी की नहीं बल्कि पूंजीपतियों की सरकार है और पूंजीपतियों की सरकार किसानों से उनकी जमीन और रोटी छीनना चाहती है। दिल्ली हमसे दूर नहीं है अगर रविवार को पंजाब के किसानों के साथ केंद्रीय मंत्रियों के बीच होने जा रही वार्ता का कोई हल नहीं निकलता है तो 21 फरवरी को पूरे देश में सभी किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करेंगे।”
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“देश को एक बड़े आंदोलन की जरूरत”
इस दौरान उन्होनें आगे कहा कि- ” 21 फरवरी के बाद 26 और 27 फरवरी को उत्तराखंड से लेकर दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर तक सभी किसान नेशनल हाईवे पर ट्रैक्टर ट्रॉलियों की लाइन लगाकर खड़े हो जाए। इस देश को एक बड़े आंदोलन की जरूरत है और किसान आंदोलन जब तक चलते रहेंगे तब तक सरकार किसानों की मांगें पूरी नहीं करेगी। वहीं उन्होनें आगे ये भी कहा कि-“किसान आंदोलन टिकैत परिवार के किसी एक सदस्य की कुर्बानी चाहता है। भारतीय किसान यूनियन की इस मासिक पंचायत में पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ उत्तराखंड के किसानों ने भी हिस्सा लिया।”