Supreme Court on adultery: केंद्र सरकार ने संसदीय समिति की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 से धारा 377 और 497 को बाहर रखने का फैसला किया है.धारा 377 अप्राकृतिक सेक्स यानि अननेचुरल सेक्स से संबंधित है,इसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से खारिज कर दिया गया था.समिति ने गैर सहमति से बने संबंधों के लिए इसे बनाए रखने की सिफारिश की थी.गृह मामलों से संबंधित संसदीय समिति ने शादी के बंधन की रक्षा के लिए व्यभिचार से संबंधित धारा 497 को भी बरकरार रखने का सुझाव दिया था.जबकि इन दोनों धाराओं को सुप्रीमकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
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SC ने एडल्ट्री को क्राइम की श्रेणी से किया था बाहर
आपको बता दें कि,भारतीय न्याय संहिता बिल में समिति की सिफारिश के बावजूद व्यभिचार और अननेचुरल सेक्स को क्राइम नहीं माना गया है। सुप्रीमकोर्ट ने 2018 में व्यभिचार यानि Adultery को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था क्योंकि इसको आधार मानकर कई तलाक होते रहे हैं.कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक कपल के बीच सहमति से सेक्स को भी क्राइम से मुक्त कर दिया था।हालांकि भारतीय न्याय संहिता विधेयक में दुष्कर्म और यौन अपराधों से पीड़ित लोगों की पहचान जाहिर होने से रोकने के लिए एक नई धारा 73 जोड़ी गई है.इससे महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों से निपटने के लिए प्रावधान किए गए हैं।
धारा 73 में किए गए बदलाव
इस विधेयक में धारा 73 में बदलाव किए गए हैं जिससे कोर्ट की ऐसी कार्यवाही प्रकाशित करने पर सजा दी जा सकेगी जिसमें कोर्ट की अनुमति के बिना दुष्कर्म या इस तरह के क्राइम के पीड़ितों की पहचान उजागर हो सकती है.धारा 73 में अब ये कहा गया है कि,जो कोई भी कोर्ट की अनुमति के बिना धारा 73 में लिखे क्राइम के संबंध में कोर्ट के सामने किसी भी मामले को प्रिंट या प्रकाशित करेगा उसे एक सामान्य अवधि के लिए सजा दी जाएगी ये सजा दो साल के लिए बढ़ाई भी जा सकती है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
गृह मंत्री ने 3 विधेयकों को वापस लिया
गृह मंत्री अमित शाह ने संसद की स्थायी समिति की ओर से सुझाए संशोधनों के आधार पर मंगलवार को लोकसभा में आपराधिक कानूनों से संबंधित तीन विधेयकों को वापस ले लिया और इसकी जगह तीन नए विधेयकों को पेश किया.भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेने के लिए लाया गया है.।गृह मंत्री अमित शाह ने मॉनसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को सदन में ये विधेयक पेश किए थे. बाद में इन्हें गृह मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था।
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संसदीय समिति ने 4 दिसंबर को पेश की रिपोर्ट
बृज लाल की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने 4 दिसंबर को संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में धारा 377 को जोड़ने की मांग की थी.जिसमें समलैंगिक सेक्स और असहमति से सेक्स पर सजा का प्रावधान था. अपनी सिफारिशों में कमेटी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के रद्द करने के बावजूद वयस्कों के साथ गैर-सहमति से शारीरिक संबंध, नाबालिगों के साथ शारीरिक संबंध के सभी कृत्यों और ऐसे दूसरे मामलों में धारा 377 के प्रावधान लागू होते हैं. इसने सुझाव दिया कि BNS में बताए गए उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आईपीसी की धारा 377 को फिर से पेश करना और बनाए रखना अनिवार्य है. व्यभिचार पर समिति ने कहा था कि भारतीय समाज में विवाह के संबंध को पवित्र माना जाता है और इसकी पवित्रता की रक्षा करने की जरूरत है.विवाह के संबंध की रक्षा के लिए इस धारा को बनाए रखना चाहिए।
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