विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की दिसंबर के पहले सप्ताह में 24,454 करोड़ रुपये की शुद्ध लिवाली भारतीय शेयर बाजार में सकारात्मक संकेत के रूप में देखी जा रही है। यह दो महीने की लगातार बिकवाली के बाद हुआ है, जिससे बाजार में गिरावट देखने को मिली थी, लेकिन अब FPI की वापसी ने निवेशकों के बीच उम्मीदें जगा दी हैं कि घरेलू शेयर बाजार में एक बार फिर तेजी देखने को मिल सकती है।
ब्याज दरों में कटौती
वर्तमान वैश्विक आर्थिक माहौल में स्थिरता और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती करने की संभावना ने निश्चित रूप से बाजार की अनिश्चितता को कम किया है। इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भरोसा फिर से बाजार में बढ़ा है, खासकर भारत जैसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए।
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मौद्रिक नीति का नरम होना
अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती करता है, तो इससे वैश्विक स्तर पर धन की उपलब्धता बढ़ेगी। यह निवेशकों को अधिक जोखिम लेने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे वे उभरती अर्थव्यवस्थाओं, जैसे भारत, में निवेश करने के लिए तैयार हो सकते हैं।
डॉलर की कमजोरी
ब्याज दरों में कटौती से डॉलर की तुलना में अन्य मुद्राओं में गिरावट आ सकती है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए भारत जैसे देशों में निवेश करना सस्ता हो सकता है। इससे भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश बढ़ सकता है।
वैश्विक बाजारों में अस्थिरता का कम होना
अमेरिका और अन्य विकसित देशों में अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता के संकेत कम होने के साथ, निवेशकों को अब कुछ स्थिरता मिल रही है। इसके कारण विदेशी निवेशक ऐसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं जहां विकास की अधिक संभावनाएं हैं, जैसे भारत।
भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति
भारत के आर्थिक विकास में निरंतर सुधार हो रहा है। सरकार के सुधार कार्यक्रम, बढ़ती उपभोक्ता मांग और मजबूत विनिर्माण क्षेत्र ने भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य बना दिया है। इन सभी कारकों के चलते विदेशी निवेशक भारत को अपनी निवेश रणनीतियों का हिस्सा बना रहे हैं।अक्टूबर और नवंबर के महीनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल और जियो-पॉलिटिकल टेंशन के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय शेयर बाजार से भारी निकासी की थी। अक्टूबर में, FPI द्वारा की गई ₹94,017 करोड़ की निकासी भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में किसी एक महीने में की गई सबसे बड़ी निकासी थी, जो वास्तव में एक बहुत ही असामान्य घटना थी।
वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता
अक्टूबर और नवंबर में वैश्विक अर्थव्यवस्था में कई महत्वपूर्ण घटनाओं ने अस्थिरता पैदा की। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि, बढ़ती मुद्रास्फीति, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला संकट जैसे कारक निवेशकों को चिंतित कर रहे थे। इसके अलावा, दुनिया भर में ऊर्जा संकट और अन्य भू-राजनीतिक तनाव, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, ने भी अनिश्चितता बढ़ाई।
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जियो-पॉलिटिकल टेंशन
कई जियो-पॉलिटिकल संकट, जैसे चीन-ताइवान संकट और अन्य वैश्विक विवाद, ने बाजार में अस्थिरता को बढ़ाया। ये घटनाएं न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही थीं, बल्कि निवेशकों के बीच जोखिम की भावना को भी बढ़ा रही थीं, जिसके परिणामस्वरूप वे सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर बढ़ रहे थे और उच्च जोखिम वाले निवेश से बाहर निकल रहे थे।
ब्याज दरों में वृद्धि
फेडरल रिजर्व और अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से निवेशकों के लिए उधारी महंगी हो गई थी, और इसके चलते निवेशकों का झुकाव कम जोखिम वाले निवेशों की ओर बढ़ गया। इसके परिणामस्वरूप FPI ने भारतीय जैसे उभरते बाजारों से पूंजी बाहर निकाली, जहां जोखिम अपेक्षाकृत ज्यादा था।
स्थानीय बाजारों में गिरावट
भारतीय शेयर बाजार में भी कुछ समय तक लगातार गिरावट आई, जिससे निवेशकों को लगता था कि बाजार अब और गिर सकता है। ऐसे में विदेशी निवेशकों ने अपना निवेश कम किया या निकाल लिया, जिससे बाजार में और गिरावट आई।
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सकारात्मक बदलाव के संकेत
सितंबर में निवेश की वापसी हुई जब वैश्विक अनिश्चितता थोड़ी कम हुई थी, FPI ने भारतीय बाजार में ₹57,724 करोड़ का निवेश किया था, जो पिछले नौ महीनों में सबसे अधिक था। इसका मतलब यह है कि जब वैश्विक स्थितियां बेहतर होती हैं, तो भारतीय बाजार विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बन जाता है।
नवंबर में विदेशी निवेशकों की ₹21,612 करोड़ की शुद्ध निकासी के बाद दिसंबर के पहले सप्ताह में ₹24,454 करोड़ की शुद्ध लिवाली एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि विदेशी निवेशकों का रुख भारतीय बाजार में अब फिर से सकारात्मक हो सकता है, खासकर जब वैश्विक आर्थिक स्थिति स्थिर हो रही है और ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें बन रही हैं। अगर यह सिलसिला जारी रहता है, तो भारतीय शेयर बाजार में नई तेजी देखी जा सकती है।