सुपौल संवाददाता : चंदन कुमार
सुपौल: तटबंध के अंदर कोसी नदी में आई बाढ़ ने सैकड़ों लोगों को बेघर कर दिया है। तटबंध के अंदर बसे हजारों लोग अब बाढ़ के कारण सुरक्षित स्थानों पर निकल रहे हैं। इनमे से कुछ लोगों ने तटबंध पर झुग्गी बनाकर डेरा डाल दिया है तो कुछ लोग अपने सगे संबंधियों और रिश्तेदारों के घर पहुंच गए हैं। जो लोग ऊंचे स्थानों पर तटबंध के किनारे शरण लिए हैं उनकी स्थिति काफी मुश्किलों से भरा है। कुछ लोग तो आज भी झुग्गी बनाने के लिए ठिकाना ढूंढ रहे हैं। जो झुग्गी डालकर रह रहे हैं उन्हें भी काफी परेशानी के दौर से गुजरना पड़ रहा है।
बाढ़ पीड़ित।
दर्जनों गांव में बाढ़ का पानी फैला
मालूम हो कि पिछले दो दिनों से नेपाल में हुए मूसलाधार वारिश के कारण कोसी नदी के जलस्तर में बेतहाशा वृद्धि हुई।
जिस वजह से जलस्तर में कल रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई। कल कोसी बराज से देर रात दस बजे 4 लाख 14 हजार 60 क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज किया।जिसके चलते कोसी नदी पर बने बेराज के सभी 56 फाटक खोल दिये गए।हालांकि आज कोसी नदी के जलस्तर में काफी गिरावट हुई है।आज सुबह कोसी बराज से 2 लाख 56 हजार 830 क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज किया गया। इस बीच कल से लेकर आज तक कोसी तटबंध के अंदर बसे दर्जनों गांव में बाढ़ का पानी फैल गया।
बाढ़ अवधि में गुजारा
जिसके बाद तटबंध के अंदर बाढ़ में फंसे हजारों लोग सुरक्षित स्थान पर आने लगे। निजी नाव के सहारे या फिर सरकारी नाव के सहारे किसी तरह लोग बचते बचाते उपयोगी सामानों को लेकर बाहर निकल कर ऊंचे स्थान पर शरण ले रहे हैं। इन बाढ़ पीड़ितों के लिए सबसे महफूज जगह फिलहाल कोसी तटबंध ही नजर आ रहा है। जहां पीड़ित हजारों लोग तटबंध किनारे झोपड़ी बनाकर अपना बसेरा बनाये हुए है पॉलिथीन टांग कर घर बनाकर या फिर पुराने घर का ठाठ लाकर लोग किसी तरह तटबंध किनारे घर बनाकर बाढ़ अवधि में गुजारा करना चाह रहे हैं।
पीड़ितों ने कहा कि
स्थिति फिलहाल काफी दुर्भर है क्योंकि तटबंध पर हजारों लोग अपना-अपना झुग्गी झोपड़ी डाल रहे हैं जिसके चलते नए लोगों को यहां भी भारी मशक्कत करनी पड़ रही है पीड़ितों ने कहा कि जहां भी झोपड़ी बना रहे हैं। वहां कोई ना कोई रोक-टोक कर रहा है जिससे उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि बारिश का मौसम है ऐसे में जल्दबाजी में रहने का ठिकाना नहीं बनाया गया तो फिर बारिश उसके बाद तेज धूप से उसे भारी मशक्कत का सामना करना पड़ेगा। हालांकि जुगाड़ करके किसी तरह लोग तटबंध के किनारे झोपड़ी तो डाल दिए हैं कुछ लोग झोपड़ी बना भी रहे हैं।
सहजता से अंदाजा लगाया
तटबंध के किनारे झुग्गी बनाकर शरण रह रहे बाढ़ पीड़ितों के सामने खाने-पीने की भारी समस्या उत्पन्न हो गई है खासकर बच्चे बुजुर्गों की स्थिति काफी दयनीय है चुकी जो भी सामान था वह सारा कोसी नदी में बह गया मुश्किल से कुछ सामान किसी तरह नाव पर लादकर यह लोग तटबंध पर पहुंचे तो गए हैं लेकिन अब रोजी-रोटी कैसे चलेगी इसकी चिंता उन्हें सताने लगी है थक हार कर लोग सरकार की तरफ देख रहे हैं कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें चुरा और पॉलिथीन दिया गया है लेकिन चुरा और पॉलिथीन ना काफी है सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है।
पानी मे फंसे मवेशियों
इधर प्रशासन का दावा है की जो पीड़ित हैं उन्हें ड्राई राशन और शिविर में भोजन का भी प्रबंध करवाया गया है बावजूद इसके समस्या थमने का नाम नहीं ले रहा है। तटबंध के अंदर बसे गांव के बाढ़ पीड़ितों लोगो की माने तो सबसे ज्यादा दिक्कत मवेशियों को लेकर भी है जल्दबाजी में पानी मे फंसे मवेशियों को निकाल नही सके अलबत्ता जितने पशु को निकाला गया है अब उनके चारे की समस्या भी परेशान कर रही है।
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पीड़ितो की दास्तान दर्द से भरी
बाढ़ अवधि तटबंध के अंदर बसे लोगों के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। प्रभावित लोग जब तटबंध के अंदर रहते हैं तो खेती बारी के साथ रोजी रोटी चलती है। लेकिन जब कोसी में पानी का स्तर बढ़ता है तो इसके लिए मुश्किल का दौर शुरू हो जाता है। एक तरफ रोजी रोटी है तो दूसरी तरफ जिंदगी। बीच में फंसे बाढ़ पीड़ितो की दास्तान दर्द से भरी पड़ी है। न जाने कब इन लोगों की मुश्किलें समाप्त होगी।