सहारनपुर संवाददाता- नज़म मंसूरी
- एक कहावत है, “ खुद के लिए हर कोई जीता है, लेकिन दूसरे के लिए जीना, जीना होता है”
- इसे ही सार्थक बना रही है वरिष्ठ जेल अधीक्षक अमिता दुबे
- क्या आप जानते है: कोरोना काल के बाद क़रीब 150 बन्दियों को मिली जीने की आज़ादी
- कोरोना कॉल में फ़ाइले गुम होने से बंदियों की रुक गयी थी पेशी, एक-एक फाइल तलाश कर सभी की करायी गयी कोर्ट में पेशी, सभी आज ज़मानत पर बाहर…बदलाव की एक नई कहानी
- सेकड़ो दुआए मिल रही है वरिष्ठ जेल अधीक्षक अमिता दुबे को, यह निःस्वार्थ सेवा…वास्तव में आप सभी के लिये प्रेरणा और बधाई की पात्र
सहारनपुर: एक इंसान जो सबसे बड़ा काम कर सकता है वह है दूसरों की सेवा करना, उनकी मदद करना, निःस्वार्थ सेवा और मदद का सबसे सच्चा रूप वह है जब हम बदले में कुछ भी न चाहते हुए उन्हें देते हैं यही वह भावना है जिसमें हमें देना चाहिए, इसका मतलब यह है कि हम प्रशंसा, प्रशंसा, शक्ति, या नाम और प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी करते हैं उसे दूसरों को प्रसारित नहीं करते हैं बल्कि, हम दूसरों की मदद करने की भावना से अपने दिल और आत्मा से सेवा करते हैं क्योंकि सर्व-दाता सृष्टिकर्ता यह सब देख रहा है।
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एक बड़ा प्रदर्शन होकर सामने आता
उसी के रूप में ऐसा करना सही काम भी है, कहते है कि खुद के लिए हर कोई जीता है, लेकिन दूसरे के लिए जीना, जीना होता है” इसे ही चरितार्थ और सार्थक कर रही है सहारनपुर वरिष्ठ जेल अधिक्षका श्रीमती अमिता दुबे। वैसे तो उनसे बात हुई तो वह कुछ बता नही पायी बस उनके मुख से निकले शब्द यही थे कि ऐसा कुछ नही है! लेकिन जब कोई किसी की मदद करता है या सेवा करता है तो वह एक बड़ा प्रदर्शन होकर सामने आता है। लेकिन अमिता दुबे जी ने निःस्वार्थ सेवा व मदद को जेल की चार दिवारी में ही समेट दिया, जब हमने इसकी पड़ताल की तो बहुत सी बातें सामने आयी जिसे सुनकर हम भी भावुक हो गए। यह जानकारी सभी को मिलनी चाहिये और इसके लिये सभी को मदद के लिये आगे भी आना चाहिये, क्योकि आपकी निःस्वार्थ सेवा आपको सीधा ईश्वर से मिलाती है।
उसकी आँखों मे बदलाव की एक अलग ही कहानी
इसी सेवा की पूरी कहानी हम आपकों बता रहें है- जब हम जेल से जमानत पर बाहर आये एक कैदी से अचानक मिले तो उसकी आँखों मे बदलाव की एक अलग ही कहानी नज़र आई, हमने उससे सरल शब्दों में बात की तो उसने वह जानकारी साझा की जिससे हर कोई अनभिज्ञ है। यही जानकारी आज हम आप सभी के सामने लेकर आये है, मामला जुड़ा है। सहारनपुर जेल से- वर्ष 2020 में जब पूरी दुनिया पर कोरोना क़हर बरपा रहा था, यह सिलसिला यूही वर्ष 2021 तक चलता रहा। इस बीच लॉक डाउन लगा रहा, यह वह काल था जिसमें बहुत कुछ समा गया जिसे शब्दो मे बयां करें तो रूह कांप जाती है, इसी बीच अपराध कर जेल में अपना जीवन काट रहे बन्दियों के लिये यही कोरोना भी एक बड़ी मुसीबत लेकर सामने आया, यह वह मुसीबत थी जिसका कोई समाधान नही था।
कोरोना के चलते फाइल गुम हो चुकी थी
सहारनपुर जेल में करीब 150 बन्दी ऐसे थे जिनकी कोरोना के चलते फाइल गुम हो चुकी थी या मिल नही रही थी। जेल से जब सबकी कोर्ट में पेशी होने लगी तो उनका कभी नम्बर ही नही आया। ऐसे में वह अपने जीवन से हताश हो बैठे और ईश्वर से दुआए करने लगें। धीरे धीरे महीना फ़िर साल गुजरा तो उनकी दुआए कबूल होने लगी। कोरोना काल चल रहा था वर्ष 2021 फ़रवरी में प्रदेश सरकार ने जेलों में कुछ स्थान्तरण किये, इसी एक स्थान्तरण में सहारनपुर भी था।
सहारनपुर जेल की बागडोर एक महिला अधिकारी को सौपी गयी जिनका नाम है अमिता दुबे, उन 150 बन्दियों की दुआओं के रूप में उन्हें ईश्वर ने मदद को उनके लिये भेजा। चार्ज लेते ही अमिता दुबे जी ने पहले दिन ही जेल की बदहाल व्यवस्था को सुधारने का निर्णय लिया। एक के बाद एक व्यवस्था बदलती गयी और जेल प्रदेश की नम्बर वन जेल में सुमार हो गयी। जेल मंत्री भी कई बार जिला कारागार का विजिट कर यहां की प्रशंसा किये बगैर नही रह पाए। लेकिन इससे पहले उन 150 बन्दियों पर नजर डालते है-जब वरिष्ठ जेल अधीक्षक अमिता दुबे द्वारा देखा गया कि सभी बन्दी पेशी पर जाते है।
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उन्होंने एक -एक कर सभी बन्दियों से वार्ता की
लेकिन ऐसे करीब 150 बन्दी है जो उनके आने के बाद भी पेशी पर नही गये। ऐसे में उन्होंने इससे सम्बन्धित जानकारी ली और उसके बाद उन्होंने एक -एक कर सभी बन्दियों से वार्ता की। जब बन्दियों ने आंखों में आँसू लेकर और परिवार से दूर रहने का दर्द सुनाते हुए, उन्हें बताया कि वह कोरोना काल की शुरुआत से अब तक एक बार भी पेशी पर नही गए, तो मैडम भावुक हो गयी और उन्होंने सभी से वादा किया कि जल्द ही आपकी पेशी होगी। उन्होंने अधिनस्थों की मदद से सभी फाइलों की जानकारी जुटाई। लेकिन कोई सही और ठोस जानकारी नही मिल पायी, ऐसे में उन्होंने स्वयं पत्रचार व अधिनस्थों के माध्यम से एक एक फाइल को खोजने में बड़ी भूमिका निभाई।
धीरे धीरे वर्ष 2022 में सभी 150 फाइल तलाशने के बाद पूरी हो गयी, जब फाइले मिली तो सभी बन्दियों की धीरे धीरे एक एक कर पेशी हुई, जिसमें आज एक एक बन्दी यानी क़रीब 150 बन्दी आज जमानत पर अपने परिवार के साथ खुशी से जीवन बिता रहे है, यह कहानी जो बता रहें है वह भी भावुक थे और अपने जीवन को बेहतर जी रहे है, यह कोई फिल्मी कहानी नही है एक हक़ीक़त है, आज कोई अपने परिवार में एक बन्दे के लिये मदद नही कर रहा है लेकिन जानिये कैसे सहारनपुर वरिष्ठ जेल अधीक्षक अमिता दुबे ने 150 बन्दियों की मदद की है, यह महिलाओं के लिये ही नही सभी के लिये प्रेरणास्रोत है, जब हम मदद करते है तो उनके साथ मदद के नाम पर प्रचार करते है लेकिन उनकी निस्वार्थ मदद और सेवा को नमन है, क्योकि आपको जो दिख रहा है।
जेल अधीक्षक के रूप में एक देवी का आशीर्वाद मिला
उसकी मदद तो कर सकते है लेकिन जो दिख नही रहा है और जो बोलकर भी मदद नही ले सकता है। ऐसे में उसकी मदद करना उसकी सेवा करना कोई फ़रिश्ता ही कर सकता है। यह उन बन्दियों की कहानी है। जिन्होंने दिन रात बस अपने लिये पल पल ईश्वर से दुआए की है। जिनका फलस्वरूप उन्हें वरिष्ठ जेल अधीक्षक के रूप में एक देवी का आशीर्वाद मिला, जिस बन्दी ने यह जानकारी दी हम उसका कोई उल्लेख नही कर सकतें ना उसकी जानकारी साझा कर सकतें है।
बस उसने कहा उस भयानक दिनों को देखने के बाद मैं कई दिनों तक परेशान रहा और कुछ दिनों तक ठीक से खाना भी नहीं खा पाया। हालाँकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया। मेरे दिल में एक दृढ़ निश्चय बढ़ता गया। मैं दूसरों के लिए निस्वार्थ भाव से काम करना चाहता हूँ, निस्वार्थ मार्ग का पालन करना चाहता हूँ और अच्छे कार्यों का समर्थन करना चाहता हूँ और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करूँगा। एक बन्दी की यह बाते सुनकर में ही नही आप भी भावुक होंगे, क्योकि यह बदलाव की म्यार बह रही है।