Prime Chaupal: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे मलिहाबाद के ग्राम पंचायत कैथुलिया में ग्रामीण बेबस हैं जहां सड़क के किनारे नाली तो है लेकिन नाली में पानी नहीं कूड़े-कचरे की भरमार है।रास्ते हैं लेकिन रास्तों पर पानी भीषण जलभराव है पंचायत भवन है तो वहां ताला है।इससे ग्रामीणों में रोष है ऐसी तस्वीरें प्राइम टीवी ने कैमरे में कैद की जो डबल इंजन की सरकार के राज्य की हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि,भारत को विकसित देश घोषित करें लेकिन गांवों में आज भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए तरहस रहे हैं।माना जाता है असली भारत गांवों में बसता है लेकिन अगर गांवों की हालत यही है जहां आजादी के 50 सालों बाद भी अच्छे दिनों का इंतजार है तो ऐसी स्थिति में विकसित भारत का सपना मात्र सपना रह जाएगा।
ग्राम पंचायत कैथुलिया में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी योजनाएं
राजधानी लखनऊ से बेहद करीब मलिहाबाद के ग्राम पंचायत कैथुलिया में ग्रामीण कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं सड़कें उखड़ी हुईं जहां गड्ढे ही गड्ढे हैं।केद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार गावों के विकास के लिए कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए प्रयासरत है लेकिन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही ऐसी तमाम योजनाओं को लेकर जिम्मेदार बोलने के लिए कुछ तैयार नहीं हैं।जिस देश में 2 तिहाई से ज्यादा की जनसंख्या गांवों में रहती है वहां गांवों का विकास होना तो दूर मूलभूत सुविधाएं भी लोगों तक नहीं पहुंच रही।
राशन वितरण में बड़े स्तर पर घपलेबाजी का खुलासा
2022 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 68.8 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है ऐसी स्थिति में गांव के लोगों का सरकारी योजनाओं के लिए तरसना प्रशासन और जिम्मेदार लोगों पर सवाल खड़े करती है।ग्रामीणों का कहना है कि,कागजों में योजनाओं का लाभ दिखाना और उन योजनाओं को उंगली पर गिनाना आसान है लेकिन बात जब योजनाओं को धरातल पर उतारने की होती तो नील बटे सन्नाटा रहता।ग्रामीणों का कहना है प्रधान और अधिकारियों की मिलीभगत से राशन जो गरीबों में वितरित होना चाहिए उन्हें मिल नहीं पाता और चार पहिया वाहन से चलने वाले जिनके पास पक्के मकान हैं उन्हें आसानी से मिल जाता है।
अच्छे दिनों के इंतजार में आज भी ग्रामीण
जिन गांवों के विकास के लिए सरकार डंके की चोट पर तमाम दावे और वादे करती है उन्हीं गांवों में लोग जरूरत की सुविधाओं से महरूम हैं।दावों और हकीकत के बीच का अंतर पता लगाने के लिए जब हमारी टीम गांवों के बीच पहुंची तो सुरसा की तरह मुंह फैलाए तमाम समस्याएं हमारे सामने आ गईं।फिलहाल गांवों की हालत यही है कि,ग्रामीण क्षेत्र आज भी आजादी के दशकों बाद अपने कायाकल्प के लिए अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं।