Champai Soren: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और आंदोलन के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चंपाई सोरेन (Champai Soren) का झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से दशकों पुराना रिश्ता अब समाप्त हो चुका है. करीब पांच दशकों तक जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन के करीबी रहे चंपाई सोरेन अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का हिस्सा बनने जा रहे हैं. चंपाई सोरेन 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. यह निर्णय झारखंड की राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है.
आंदोलन से राजनीति तक का सफर
बताते चले कि चंपाई सोरेन (Champai Soren) की राजनीति की शुरुआत 1970 के दशक में हुई जब वे दसवीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान शिबू सोरेन के नेतृत्व में अलग झारखंड राज्य आंदोलन से जुड़े. चंपाई सोरेन ने झारखंड आंदोलन के दौरान कोल्हान क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई. उन्हें ‘कोल्हान टाइगर’ के नाम से जाना जाने लगा. उस वक्त, कोल्हान क्षेत्र में निर्मल महतो, शैलेंद्र महतो और बागुन सुम्बरुई जैसे नेताओं के बीच चंपाई ने अपनी जगह बनाई.
चुनावी सफर और जीत
चंपाई सोरेन ने 1991 में पहली बार बिहार विधान सभा उपचुनाव में सरायकेला सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. इसके बाद से उन्होंने इस सीट पर लगातार 7 बार चुनाव लड़ा, जिसमें से सिर्फ 2000 के विधानसभा चुनाव को छोड़कर उन्होंने सभी चुनावों में जीत हासिल की। 2000 के चुनाव में उन्हें बीजेपी के अनंत राम टुडू से हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, 2005 में उन्होंने बीजेपी के लक्ष्मण टुडू को केवल 882 वोटों के अंतर से हराकर फिर से अपनी ताकत दिखाई.
कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया
चंपाई सोरेन (Champai Soren) का राजनीतिक सफर सिर्फ चुनावी जीत तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने 2010 में बीजेपी-जेएमएम गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया. इसके बाद 2013 में वे जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन की हेमंत सोरेन सरकार में उद्योग, परिवहन, और आदिवासी कल्याण मंत्री बनाए गए. 2019 में भी जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन की हेमंत सोरेन सरकार में उन्हें मंत्री पद सौंपा गया.
मुख्यमंत्री पद का सफर
आपको बता दे कि चंपाई सोरेन (Champai Soren) ने 2 फरवरी 2024 से 3 जुलाई 2024 तक झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भी सेवा दी. यह उनके राजनीतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पद था. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में कई अहम बदलाव हुए.
चुनावी चुनौतियां और अंत में बीजेपी का दामन
चंपाई सोरेन (Champai Soren) का पहला चुनाव 1991 में काफी रोचक रहा. उस चुनाव में चंपाई सोरेन और जेएमएम सांसद कृष्णा मार्डी की पत्नी मोती मार्डी को जेएमएम का सिंबल मिला था, लेकिन विवाद के कारण दोनों का सिंबल रद्द हो गया। इसके बाद चंपाई निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और मोती मार्डी को हराकर विधायक बने. अब, करीब पांच दशकों तक जेएमएम के साथ जुड़ाव के बाद चंपाई सोरेन ने बीजेपी में शामिल होने का निर्णय लिया है. इस बदलाव से झारखंड की राजनीति में नई संभावनाओं और चुनौतियों का दौर शुरू होने की उम्मीद है.
चंपाई सोरेन का राजनीतिक सफर संघर्ष और सफलता से भरा रहा है. जेएमएम से बीजेपी तक की उनकी यात्रा न केवल उनके व्यक्तिगत निर्णय का परिणाम है, बल्कि झारखंड की राजनीति में आने वाले परिवर्तनों का भी संकेत है. उनके इस निर्णय से राज्य की राजनीति में नया समीकरण बन सकता है, जिसका प्रभाव आने वाले चुनावों में देखने को मिलेगा.