गोरखपुर संवाददाता: धनेश कुमार
Gorakhpur: वैलेंटाइन डे यानी प्रेम के इजहार का दिन.. आमतौर पर इस दिन को प्रेमी प्रेमिका या पति पत्नी के बीच प्रेम के रूप में माना जाता है. लेकिन गोरखपुर में वैलेंटाइन की एक नई परिभाषा गढी जा रही है. माता पिता को भगवान मानकर उनकी पूजा और उनसे प्यार का इजहार करके गोरखपुर के एक स्कूलों में बच्चे अपने माता पिता को ही अपना वैलेंटाइन मानकर उनकी पूरे विधि विधान से पूजा कर रहे हैं और उनसे अपने प्रेम का इजहार कर रहे हैं।
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माहौल को बदलने का एक नया प्रयास
वैलेंटाइन डे यानी अपनो को यह जताने का दिन कि आप उनसे बेहद प्यार करते हैं और वह आपके लिए अनमोल हैं. आज के दिन अधिकतर युवा प्रेमियों के लिये उनकी दुनिया अपनी प्रेमिका तक ही सिमट कर रह जाती है. ऐसे माहौल को बदलने का एक नया प्रयास किया जा रहा है. गोरखपुर के एक स्कूलों में, जहां पर बच्चों को सबसे ज्यादा प्रेम करने वाले माता पिता को देवतुल्य मान आज के दिन को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है.
बच्चों ने गीतों के द्वारा अपनी भावनाएं बताई
इस कार्यक्रम में बच्चों ने अपने माता पिता के सामने अपने गीतों के द्वारा उनको अपनी भावनायें बताईं. इसके बाद बच्चों ने अपने माता पिता को एक साथ बैठाकर उनकी विधिवत पूजा आरती की और पुष्प अर्पित किया. इसके बाद बच्चो ने माता पिता के चारो ओर सात फेरे लेकर उनके चरण स्पर्श किया और यह जताया कि उनके लिये सभी देवी देवताओं और तीर्थों से महान उनके माता पिता हैं.
माता पिता हुए भाव विभोर
इस कार्यक्रम में आये बच्चो के माता पिता भी अपने बच्चों केा पूजा करते और इतना सम्मान देते देखकर भाव विभोर हो गये और उनकी आंखों में आंसू आ गये. अपने बच्चों को गले लगाकर इन्होने भी सदा उनका मार्गदर्शन देने का आशीष दिया और इस कार्यक्रम के आयोजन को अच्छा प्रयास बताया. बच्चों के माता पिता का कहना है कि आज जिस तरह से बच्चों में संस्कार खत्म होते जा रहे हैं और माता पिता के प्रति उनमें सम्मान का भाव कम होता जा रहा है, उसे देखकर छोटी कक्षाओं से ही उनमें इस तरह के कार्यक्रमों के द्वारा संस्कार का बीजारोपण करना काफी अच्छा प्रयास है.
वैलेंटाइन डे अपने माता-पिता के साथ ही मनाना चाहिए..
इस कार्यक्रम के आयोजक राकेश सिंह पहलवान का कहना है कि सच्चे अर्थ में वैलेंटाइन डे अपने माता-पिता के साथ ही मनाना चाहिए, क्योंकि हम सब से ज्यादा प्रेम माता-पिता से ही करते हैं। आज के दिन इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से वह बच्चों और उनके अभिभावकों के रिश्ते को और प्रगाढ़ करने के लिए एक मंच देते हैं। उन्होंने कहा कि धरती पर माता-पिता बच्चों के पहले गुरु और पहली पाठशाला होती है।
बच्चों के जीवन में संस्कार डालने का पहला काम घर से माता-पिता ही करते हैं। आजीवन उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करते लेकिन आज के दौर में जब बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को वृद्धा आश्रम भेजने लगे हैं, तो ऐसे में आवश्यकता इस बात की कि बच्चों में ऐसे संस्कार दी जाए. जिससे वह ताउम्र विवाह को अपना आदर्श मानते रहे। वह अपने माता पिता को अपना सबसे बडा प्रेम मानें और उनके लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार हों. इस तरह के कार्यक्रमो से वह बच्चों में संस्कार का बीजारोपण कर रहे हैं, जो आगे चलकर उन्हे एक अच्छा नागरिक बनायेगा।
बचपन से ही ऐसे संस्कार दिए जाए
कहते हैं कि धरती पर माता पिता बच्चों के सबसे बडे गुरूऔर पहली पाठशाला होते हैं. बच्चों के जीवन में संस्कार डालने का पहला काम घर पर माता पिता ही करते हैं और आजीवन उनके लिये सुरक्षा कवच का काम करते हैं. लेकिन आज के दौर पर जब बच्चे अपने बुजुर्ग माता पिता को ओल्ड डे होम भेजने लगे हैं. ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को बचपन से ही ऐसे संस्कार दिये जाए. जिससे वह ताउम्र अपने माता पिता को अपना आदर्श मानते रहें और उनके लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहें।
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