BRICS Summit: रूस के कजान शहर में ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन का 16वां संस्करण चल रहा है। इस बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा नेता शामिल हुए हैं। वैश्विक राजनीति में ब्रिक्स की बढ़ती अहमियत के बीच एक बार फिर सऊदी अरब की इस समूह में संभावित एंट्री चर्चा का केंद्र बनी हुई है।
2023 में सऊदी अरब को ब्रिक्स में मिला था निमंत्रण
ब्रिक्स, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, ने 2023 में अपने विस्तार की दिशा में कदम बढ़ाते हुए कई नए देशों को शामिल करने का फैसला किया था। इनमें सऊदी अरब का नाम प्रमुख था। सऊदी अरब को फरवरी 2024 से ब्रिक्स का औपचारिक सदस्य बनने की योजना थी, लेकिन हाल ही में सऊदी अरब ने संकेत दिया कि वह अभी ब्रिक्स में शामिल नहीं हो रहा है।
ब्रिक्स में शामिल होने पर विचार कर रहा सऊदी अरब
फरवरी 2024 में सऊदी अरब के एक आधिकारिक सूत्र ने रॉयटर्स को जानकारी दी थी कि सऊदी अरब ब्रिक्स समूह में शामिल होने पर विचार कर रहा है। फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब को इस साल के ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण भी मिला था, लेकिन उसने अभी तक इसका कोई ठोस जवाब नहीं दिया है।
ब्रिक्स में शामिल होने पर सऊदी की दुविधा
सऊदी अरब के ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। ब्रिक्स को पश्चिमी देशों के समूहों के एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है, जिसमें रूस और चीन मिलकर नई वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। सऊदी अरब, जो अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है, इस गठबंधन का हिस्सा बनने में हिचकिचाहट महसूस कर रहा है। इस वजह से उसने ब्रिक्स की सदस्यता को लेकर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं दी है, जिससे इस पर सस्पेंस बना हुआ है।
अमेरिका से जुड़े रहने पर बना संदेह
विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब को ब्रिक्स में शामिल होने से पहले कई राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर विचार करना पड़ रहा है। ब्रिक्स में शामिल होना सऊदी अरब के लिए उसके पारंपरिक सहयोगी अमेरिका से संबंधों पर प्रभाव डाल सकता है। रूस और चीन के साथ मिलकर काम करना अमेरिका के साथ सऊदी के रणनीतिक हितों के खिलाफ जा सकता है।
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कई तरह की अटकलें जारी
सऊदी अरब के ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर फिलहाल कई अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब को ब्रिक्स के राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को लेकर कुछ संदेह हैं। वहीं, कुछ का मानना है कि सऊदी अरब ब्रिक्स में शामिल होने से पहले अपने संबंधों को पूरी तरह से संतुलित करना चाहता है, ताकि अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ उसके संबंधों में कोई खटास न आए।
क्या अमेरिका की वजह से हो रही है देरी?
सऊदी अरब का अमेरिका के साथ दशकों पुराना संबंध है। ऊर्जा क्षेत्र से लेकर सामरिक सहयोग तक, अमेरिका और सऊदी अरब के संबंध गहरे और मजबूत हैं। ऐसे में सऊदी अरब के लिए ब्रिक्स का सदस्य बनना, जिसमें रूस और चीन का दबदबा है, अमेरिका के साथ उसके संबंधों पर सीधा असर डाल सकता है। इसी कारण से सऊदी ब्रिक्स में शामिल होने के मामले में कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहा है।
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अंतिम निर्णय का इंतजार
सऊदी अरब के ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, सऊदी अरब की एंट्री से ब्रिक्स का प्रभाव वैश्विक राजनीति में और अधिक बढ़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सऊदी अरब इस मसले पर कब और क्या निर्णय लेता है, और इसका वैश्विक राजनीति पर क्या असर पड़ता है।
ब्रिक्स के विस्तार के दौर में सऊदी अरब की संभावित सदस्यता इस समूह की ताकत और उसकी भूमिका को और अधिक बढ़ाने वाली हो सकती है। लेकिन फिलहाल, सऊदी अरब की स्थिति पर सस्पेंस बना हुआ है। उसका अमेरिका के साथ मजबूत संबंध और रूस-चीन के नेतृत्व वाले इस समूह में शामिल होने को लेकर उसके रुख पर सभी की नजरें टिकी हैं।
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